तेजाब हमला बर्बर और हृदयहीन अपराध, दोषी नरमी के हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तेजाब से हमला एक बर्बर और हृदयहीन अपराध है जिसके दोषियों के प्रति किसी प्रकार की नरमी नहीं बरती जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने करीब 15 साल पहले 2004 में 19 वर्षीय लड़की पर तेजाब फेंकने के अपराध में पांच साल जेल में गुजारने वाले दो दोषियों को आदेश दिया कि वे पीड़ित लड़की को डेढ़-डेढ़ लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा भी दें।
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को भी निर्देश दिया कि वह पीड़ित मुआवजा योजना के तहत तेजाब हमले की पीड़ित को मुआवजा दे। जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी की बैंच ने कहा, निश्चित ही इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस मामले में प्रतिवादियों (दोनों दोषियों) ने पीड़ित के साथ बर्बर और हृदयहीन अपराध किया और इसलिए उनके प्रति नरमी सोचने के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है।.
बैंच ने कहा कि यह कोर्ट इस स्थिति से बेखबर नहीं रह सकता कि पीड़ित को इस हमले से जो भावनात्मक आघात पहुंचा है उसकी भरपाई दोषियों को सजा देने या फिर किसी भी मुआवजे से नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने दोनों दोषियों की दस-दस साल की सजा घटाकर पांच-पांच साल करने के हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 24 मार्च, 2008 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर यह निर्णय सुनाया है।.
पीड़िता के अनुसार, वह 12 जुलाई, 2004 को कॉलेज जा रही थी तभी दुपहिया वाहन पर दो लोग आए और उस पर तेजाब फेंक कर भाग गए। इस हमले में वह 16 फीसदी तक झुलस गई थी। निचली अदालत ने दोषियों को दस-दस साल की कैद और पांच-पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। लेकिन, बाद में हाईकोर्ट ने उनकी कैद की सजा घटाकर पांच-पांच साल और जुर्माने की राशि 25-25 हजार रुपए कर दी थी। कोर्ट को बताया गया कि दोनों दोषी पांच-पांच साल की सजा पूरी कर चुके हैं और उन्होंने हाईकोर्ट के आदेशानुसार जुर्माने की राशि का भी भुगतान कर दिया है और पिछले साल नौ दिसंबर को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया है। बैंच ने कहा कि दोनों दोषियों को दोषी ठहराने के हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और उसने उन्हें पीड़िता को डेढ़-डेढ़ लाख रुपए का अतिरिक्त मुआवजा अदा करने का आदेश दिया।