April 26, 2024

बर्थडे स्पेशल: संगीत का जादूगर आरडी बर्मन

कामयाब पिता की संतान भी कामयाब हो, ऐसा बहुत कम होता है क्योंकि विशाल वृक्ष के नीचे पौधा ठीक से पनप नहीं पाता। लेकिन विरले उदाहरण भी हैं। जैसे सचिन देव बर्मन और आर.डी. बर्मन। बर्मन परिवार ने अपने मधुर संगीत के जरिये करोड़ों लोगों का मनोरंजन किया है। निराशा के समय प्रेरणा दी और दर्द के समय अपने संगीत के जरिये राहत। सचिन देव बर्मन नामी संगीतकार थे और उनके घर संगीत जगत के बड़े-बड़े दिग्गजों का आना-जाना लगा रहता था। उनकी महफिलें जमती थीं और छोटे राहुल भी उसमें गुपचुप हिस्सा लिया करते थे। संगीत का जादू उन पर बचपन से छा गया था।

प’ ने बनाया पंचम

राहुल देव बर्मन का बचपन कलकत्ता में दादी के पास गुजरा था। अक्सर वह मुंबई पिता सचिनदेव के घर आते-जाते रहते थे। सचिनदा के घर के पास अनादि बनर्जी का निवास था। वहां ‘स्ट्रगलर-म्युजिशियन-सिंगर्स’ का जमावड़ा लगा रहता था। उन्हीं के घर पर उस दौर के लोकप्रिय गीत ‘डोल रही है नैया मेरी’ की रिहर्सल हुई थी। दादा मुनि अशोक कुमार बालक राहुल से भी सुर लगाने को कहते। राहुल सुर लगाते समय सा-रे-ग-म से लेकर जब ‘प’ पर आते, तो अटक जाया करते थे। इसी बात को लेकर हंसी-मजाक में उनका नामकरण हो गया -पंचम। यह सारी जिंदगी उनकी पहचान बन गया। 

मेहमूद ने दिया पहला अवसर

एसडी बर्मन की वजह से आरडी को फिल्म जगत के सभी लोग जानते थे। पंचम को माउथआर्गन बजाने का बेहद शौक था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल उस समय ‘दोस्ती’ फिल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथआर्गन बजाने वाले की जरूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें, लेकिन उनसे कैसे कहें क्योंकि वे एक प्रसिद्ध संगीतकार के बेटे थे। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए। मेहमूद से पंचम की अच्छी दोस्ती थी। मेहमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें जरूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब’ के जरिये मेहमूद ने अपना वादा निभाया।

नाम सचिन का, काम राहुल का

संगीत विशेषफ पंकज राग ने अपनी पुस्तक धुनों की यात्रा में पंचम को लेकर कुछ दिलचस्प बातें उजागर की हैं। पंचम बचपन से ही संगीतकार बनने की तमन्ना लेकर बड़े हो रहे थे। अपने पिता की कई फिल्मों की धुनें उन्होंने रची थी। परदे पर नाम तो सचिन-दा का गया था। पंकज राग लिखते हैं कि नवकेतन की फिल्म ‘फंटूश’ का मशहूर गीत ‘आँखों में क्या जी? रूपहला बादल’ और ‘अरे यार मेरी तुम भी हो गज़ब’ की धुनों को कम्पोज करने का श्रेय भी पंचम को है। फिल्म सोलवां साल का माउथ ऑर्गन और उसकी धुन पर थिरकता गाना ‘है अपना दिल तो आवरा’ पंचम की कलाकारी था। राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म दोस्ती का माउथ ऑर्गन बजाकर तो उन्होंने कमाल कर दिया था। 
एसडी बर्मन हमेशा आरडी को अपने साथ रखते थे। इस वजह से आरडी को लोकगीतों, वाद्यों और आर्केस्ट्रा की समझ बहुत कम उम्र में हो गई थी। जब एसडी ‘आराधना’ का संगीत तैयार कर रहे थे, तब काफी बीमार थे। आरडी ने कुशलता से उनका काम संभाला और इस फिल्म की अधिकतर धुनें उन्होंने ही तैयार की। आरडी को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे भी प्रतिभाशाली हैं।

कैबरे डांस को नई पहचान

साठ-सत्तर के दशक में हिन्दी फिल्मों में कैबरे डांस की प्रस्तुति लगभग अनिवार्य हुआ करती थी। इसके लिए उस दौर की कैबरे डांसर्स का अपनी कला में कुशल होना भी था। पहली कतार में हेलन, पद्मा खन्ना, बिंदू, लक्ष्मी छाया, टी-सिस्टर्स (जयश्री एवं मीना), कल्पना अय्यर के नाम गिनाए जा सकते हैं। इन सबकी सिरमौर हेलन रही हैं। राहुल देव ने अपने संगीत के जरिये कैबरे को नई पहचान देकर उसे दर्शनीय के साथ श्रवणीय भी बनाया। फिल्म कारवां (1971) का यह कैबरे गीत ‘पिया तू अब तो आ जा’ (आशा-आरडी) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। फिल्म जीवन साथी (1972) का गीत ‘आओ न गले लगा लो ना’ में आशा की आवाज का मादक तथा उत्तेजक उपयोग करने में आरडी सफल रहे हैं। आशा से कैबरे सांग गवाकर उनकी आवाज का नशीला जादू जगाने में आरडी पूरी तरह कामयाब रहे हैं। चंद और उदाहरण प्रस्तुत हैं- * तेरी-मेरी यारी बड़ी पुरानी (चरित्रहीन/1974)
* आज की रात कोई आने को है… (अनामिका/1973)
* आज की रात, रात भर जागेंगे (जागीर/1984)

इतना ही नहीं आरडी ने लता मंगेशकर जैसी कोमल और मधुर आवाज से भी कैबरे-गीत गवाकर श्रोताओं को चकित किया है। जैसे-
* शराबी, शराबी मेरा नाम हो गया… (चंदन का पलना)* हां जी हां, मैंने शराब पी है (सीता और गीता)

इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल… 

किशोर कुमार और आशा भोसले आरडी के पसंदीदा गायक-गायिका रहे हैं, यह बात सब जानते हैं। उन्होंने मुकेश से कम गवाया, मगर जितना भी गवाया वह लोकप्रिय हुआ है। सबसे अधिक राज कपूर की फिल्म ‘धरम करम’ (1976) रही। ‘इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल’ गीत की धुन पह ली बार सुनकर राजकपूर ने फाइनल कर दी थी। इसकी लोकप्रियता इस बात से पता चलती है कि यह बिनाका गीतमाला के सालाना प्रोग्राम में दूसरी पायदान पर बजा था। लता के साथ फिल्म ‘तीसरा कौन’ (1968) में मुकेश से गवाया था- प्यार का फसाना, बना ले दिल दीवाना’ जब श्रोताओं ने बेहद पसंद किया, तो यह सिलसिला फिल्म ‘कटी पतंग’ (1970) के गीत ‘जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा’ पर जाकर ठहरा था। इसी तरह फिल्म ‘फिर कब मिलोगी’ का स्पेनिश धुन पर आधारित यह गीत ‘कहीं करती होगी वो मेरा इंतजार’ ऐसा गीत है जो आगे चलकर रीमिक्स वालों के लिए चांदी की फसल काटने जैसा साबित हुआ। मुकेश से गवाए कुछ और लोकप्रिय गीतों की संक्षिप्त तालिका देकर बाकी काम श्रोताओं पर छोड़ते हैं-* जिंदगी में आप आए, हो गई दुनिया हसीं (छलिया/1973/ वाणी जयराम-मुकेश)
* सूरज से फिर किरण का नाता (हंगामा/1971/ लता-मुकेश)
* हां, तो मैं क्या कह रहा था (राजा रानी/लता-मुकेश)
* सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती (मुक्ति/1977/मुकेश)
* लल्ला लल्ला लोरी (मुक्ति/1977/मुकेश)

सीढ़ियों पर बैठकर लता ने गाना गाया

अपनी पहली फिल्म में ‘घर आजा घिर आए बदरा’ गीत आरडी लता मंगेशकर से गवाना चाहते थे और लता इसके लिए राजी हो गईं। आरडी चाहते थे कि लता उनके घर आकर रिहर्सल करें। लता धर्मसंकट में फँस गईं क्योंकि उस समय उनका कुछ कारणों से आरडी के पिता एसडी बर्मन से विवाद चल रहा था। लता उनके घर नहीं जाना चाहती थीं। लता ने आरडी के सामने शर्त रखी कि वे जरूर आएँगी, लेकिन घर के अंदर पैर नहीं रखेंगी। मजबूरन आरडी अपने घर के आगे की सीढि़यों पर हारमोनियम बजाते थे और लता गीत गाती थीं। पूरी रिहर्सल उन्होंने ऐसे ही की।

प्रयोग के हिमायती

आरडी को संगीत में प्रयोग करने का बेहद शौक था। नई तकनीक को भी वे बेहद पसंद करते थे। उन्होंने विदेश यात्राएँ कर संगीत संयोजन का अध्ययन किया। सत्ताईस ट्रैक की रिकॉर्डिंग के बारे में जाना। इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया। कंघी और कई फालतू समझी जाने वाली चीजों का उपयोग उन्होंने अपने संगीत में किया। भारतीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत का उन्होंने भरपूर उपयोग किया।

युवा संगीत

आरडी द्वारा संगीतबद्ध की गई फिल्में ‘तीसरी मंजिल’ और ‘यादों की बारात’ ने धूम मचा दी। राजेश खन्ना को सुपर सितारा बनाने में भी आरडी बर्मन का अहम योगदान है। राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आरडी बर्मन की तिकड़ी ने 70 के दशक में धूम मचा दी थी। आरडी का संगीत युवा वर्ग को बेहद पसंद आया। उनके संगीत में बेफिक्री, जोश, ऊर्जा और मधुरता है, जिसे युवाओं ने पसंद किया। ‘दम मारो दम’ जैसी धुन उन्होंने उस दौर में बनाकर तहलका मचा दिया था। जब राजेश खन्ना का सितारा अस्त हुआ तो आरडी ने अमिताभ के लिए यादगार धुनें बनाईं। आरडी का संगीत आज का युवा भी सुनता है। समय का उनके संगीत पर कोई असर नहीं हुआ। पुराने गानों को रीमिक्स कर आज पेश किया जाता है, उनमें आरडी द्वारा संगीतबद्ध गीत ही सबसे अधिक होते हैं।
ऐसा नहीं है कि आरडी ने धूम-धड़ाके वाली धुनें ही बनाईं। गीतकार गुलजार के साथ आरडी एक अलग ही संगीतकार के रूप में नजर आते हैं। ‘आँधी’, ‘किनारा’, ‘परिचय’, ‘खुशबू’, ‘इजाजत’, ‘लिबास’ फिल्मों के गीत सुनकर लगता ही नहीं कि ये वही आरडी हैं, जिन्होंने ‘दम मारो दम’ जैसा गाना बनाया है।

समय से आगे के संगीतकार

आरडी बर्मन के बारे में कहा जाता है कि वे समय से आगे के संगीतकार थे। उन्होंने अपने संगीत में वे प्रयोग कर दिखाए थे, जो आज के संगीतकार कर रहे हैं। आरडी का यह दुर्भाग्य रहा कि उनके समय में फिल्मों में एक्शन हावी हो गया था और संगीत के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। अपने अंतिम समय में उन्होंने ‘1942 ए लव स्टोरी’ में यादगार संगीत देकर यह साबित किया था कि उनकी प्रतिभा का सही दोहन फिल्म जगत नहीं कर पाया। 4 जनवरी 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन दुनिया को गुनगुनाने लायक ढेर सारे गीत वे दे गए।


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