April 24, 2024

उत्तराखंड: कैबिनेट में आएगी कूडे़ से बिजली बनाने की नीति, सरकार के पास पहुंचे कंपनियों के प्रस्ताव

शहरों में जमा होने वाले कूडे़ से बिजली बनाने की नीति जल्द ही कैबिनेट में लाने की तैयारी है। सरकार के पास कई निजी कंपनियों के प्रस्ताव पहुंचे हैं।इन्वेस्टर समिट के दौरान भी रैम्की और डॉटर जैसी कंपनियों ने कूडे़ से बिजली बनाने के प्रस्ताव सरकार को दिए हैं, लेकिन कोई नीति न होने के कारण इस मामले में बात आगे नहीं बढ़ पाई है। सरकार अब इस मामले में देरी नहीं करना चाहती। इस पूरी कवायद के बीच ये भी शुभ संकेत है कि विद्युत नियामक आयोग तीन महीने पहले ही कूडे़ से बनने वाली बिजली का मूल्य तय कर चुका है।

यानी कूडे़ से बिजली बनाने वाली कंपनियों के सामने उसे बेचने को लेकर कोई परेशानी नहीं रहेगी। देशभर में सिर्फ चार जगह इस समय कूडे़ से बिजली बनाने का काम हो रहा है। इसमें मध्य प्रदेश के जबलपुर के अलावा दिल्ली के तीन प्लांट शामिल हैं।

कूडे़ से बिजली-ये है स्थिति और ये है संभावना

1000 मीट्रिक टन कूड़ा रोजाना उपलब्ध हो रहा है  प्रदेश में 92 नगर निकाय हैं प्रदेश में, जिसमें आठ नगर निगम हैं 50 मीट्रिक टन बिजली उत्पादन हो सकता है उत्तराखंड में 03 साल पहले रुड़की में हुई कसरत, पर नाकाम हो गई थी

वेस्ट टू एनर्जी (कूडे़ से बिजली) के संबंध में जल्द ही कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जाएगा। नगर निकायों में कूडे़ निस्तारण की समस्या के हल के अलावा ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत विकसित करने के लिहाज से भी इस दिशा में काम होना जरूरी है। अफसरों के साथ इस संबंध में विचार विमर्श किया गया है। नीति आने के बाद इस संबंध में तेजी से काम हो पाएगा।
-मदन कौशिक, शहरी विकास मंत्री, उत्तराखंड

बिजली बनेगी, तो तुरंत मिलेगा उचित मूल्य

कूडे़ से बिजली बनाने के मामले में शुरू में यह एक अहम सवाल उठ रहा था कि उत्पादक कंपनियों को उसकी कीमत मिलेगी भी या उसे घाटा उठाना पडे़गा। मगर तीन महीने पहले विद्युत नियामक आयोग इस संबंध में अधिसूचना जारी कर चुका है। सॉलिड वेस्ट और अन्य स्रोतों से बिजली उत्पादन के संबंध में आयोग ने सारी स्थिति साफ कर दी है। अब बस देर, इस संबंध में काम करने की है।

दरअसल, ये चिंता जताई जा रही थी कि महंगे प्लांट लगाना कंपनियों के लिए कितना फायदेमंद होगा। शीशमबाड़ा देहरादून में रैम्की ही जिस प्लांट का खाका खींच रहा है, वह 150 करोड़ का है। इसे देखते हुए जब सरकार के सामने कूडे़ या अन्य स्रोतों से बिजली उत्पादन का मामला आया और बिजली मूल्य की बात हुई, तो नियामक आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी। अधिसूचना में आयोग ने बुनियादी बिजली मूल्य तय करते हुए ये भी साफ किया है कि आने वाले 20 सालों तक किस मूल्य में बिजली खरीदी जा सकेगी।

अधिसूचना में सॉलिड वेस्ट से बनने वाली बिजली का बुनियादी खरीद मूल्य छह रुपये 59 पैसा प्रति यूनिट तय किया है। इसी तरह रिफ्यूज ड्राइव फ्यूल से बनने वाली बिजली के लिए खरीद मूल्य चार रुपये 27 पैसा प्रति यूनिट तय की गई है। नॉन फोसिल फ्यूल से बनने वाली बिजली का बुनियादी खरीद मूल्य तीन रुपये 52 पैसा प्रति यूनिट तय किया गया है। इसी तरह आयोग ने अन्य कई श्रेणियां बनाकर बिजली खरीद का बुनियादी मूल्य तय किया है।

रैम्की कंपनी का प्रस्ताव आया सबसे पहले

कूडे़ से बिजली बनाने का प्रस्ताव सबसे पहले रैम्की कंपनी लेकर आई है। प्रस्ताव में देहरादून शीशमबाड़ा स्थित प्लांट में कूडे़ की प्रोसेसिंग से निकले आरडीएफ (रिफ्यूज ड्राइव फ्यूल) के जरिये बिजली पैदा करने की बात कही गई है। करीब 150 करोड़ की लागत से बनने वाले वेस्ट टू एनर्जी प्लांट से छह मेगावाट तक बिजली का उत्पादन संभव हो पाएगा।

हालांकि दून वैली नोटिफिकेशन 1988 लागू होने की वजह से पर्यावरणीय अनुमति लेना भी एक बड़ा काम है। हालांकि रैम्की कंपनी के प्रस्ताव को राज्य स्तरीय पर्यावरण कमेटी से हरी झंडी मिल गई है।

मगर सूत्रों के अनुसार, कुछ एक मामलों में केंद्र सरकार की कमेटी तक भी मामला जा सकता है। दून वैली नोटिफिकेशन 1988 में देहरादून को ऑरेंज श्रेणी में रखा गया है, यानी जिन उद्योगों से पर्यावरण को जरा भी नुकसान पहुंचने का अंदेशा हो, उसे पहले संबंधित कमेटी से अनुमति लेना अनिवार्य है।

तीन विभागों की अहम भूमिका, होगा पीपीए

कूडे़ से बिजली बनाने के प्रस्ताव को जमीन पर उतरने के लिए तीन विभागों की अहम भूमिका होगी। एक, शहरी विकास विभाग, जिसके अंतर्गत निकायों से कंपनियों को बिजली के लिए कूड़ा उपलब्ध होगा।

दो, उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (उरेडा), जिस पर ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा देने का जिम्मा है। तीन, उत्तराखंड पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल), जो बिजली खरीदने के लिए ऊर्जा विभाग की अधिकृत एजेंसी है। नीति बन जाने के बाद तीनों विभागों के बीच बेहतर तालमेल हो पाएगा।

मौजूदा स्थिति में विभागों के बीच तालमेल बिखरा-बिखरा है। कूडे़ से बिजली बनाने की इच्छुक कंपनियों को जमीन सरकार के स्तर पर ही उपलब्ध करानी होगी। बाकी सारा खर्चा संबंधित कंपनी का होगा। इसके अलावा, कंपनी को बाद में यूपीसीएल के साथ पीपीए (पावर पर्चेजिंग एग्रीमेंट) करना होगा।


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