मदरसों में ड्रेस कोड लागू किए जाने के वक्फ मंत्री के बयान पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मदरसा संचालकों ने कड़ी आपत्ति जाहिर की है।
उनका कहना है कि आधुनिकीकरण के नाम पर मदरसों की दशा सुधारने के दावे कोरे ही साबित हुए हैं। आश्रम पद्धति विद्यालय और गुरुकुलों में भी अपना ड्रेस कोड होता है।
क्या उनमें भी बदलाव करने जा रहे हैं। अमर उजाला ने जब मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मदरसा संचालकों की राय जानी तो उन्होंने कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं है।
कुर्ता-पायजामा इस्लामी लिबास है, इसमें बदलाव का सवाल ही नहीं उठाता है। सरकार आधुनिकीकरण के नाम पर मदरसों के स्वरूप से छेड़खानी नहीं कर सकती है। बुनियादी सुविधाएं बढ़ाई नहीं गई हैं। आधुनिक विषयों के शिक्षकों को दो साल से मानदेय दिया नहीं जा रहा है। ऐसे में इस तरह की बयानबाजी करके मंत्री केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। -मौलाना मोहम्मद उजैर आलम, उपाध्यक्ष, दीनी मदारिस बोर्ड, मदरसा संचालक
मदरसों में दीन के साथ आधुनिक विषय पढ़ाए जा रहे हैं। ड्रेस कोड आश्रम पद्धति और गुरुकुल विद्यालयों में भी है। ऐसे में मदरसों में ड्रेस कोड लागू करने का बयान से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर कोई नियम बनाना है तो मदरसा बोर्ड के अधिकारियों से भी मशविरा होना चाहिए। मदरसों में ड्रेस कोड लागू करने के बयान ठीक नहीं है। ऐसा है तो उच्च पदों पर बैठे लोग भी अपने लिबास को बदलें। -समी आगाई, अध्यक्ष, भारतीय मुस्लिम विकास परिषद
मदरसों में स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराया जाता है कि नहीं, इसको लेकर भी वीडियोग्राफी करवाई गई। फिर बेव पोर्टल और अब ड्रेस कोड का बयान। इस तरह की बातों के कोई मायने नहीं हैं। ज्यादातर मदरसे आज भी चेरिटी से चल रहे हैं। ऐसे में जब मदरसों की दशा सुधारने को कदम नहीं उठा सकते हैं तो गैर जरूरी फैसले भी नहीं थोपे जा सकते हैं। हालांकि कुछ मदरसों में छात्र कई साल से यूनिफार्म (पैंट- शर्ट) पहनते हैं। -मोहम्मद मुजम्मिल, सचिव, सोसाइटी फॉर सोशल डेवलपमेंट