April 19, 2024

हरेला: हरियाली, पर्यावरण संरक्षण का पर्व

देवभूमि उत्तराखण्ड जहां अपने तीर्थ स्थलों के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है, वही उत्तराखण्ड को देश में सबसे ज्यादा लोक पर्वो वाला राज्य भी कहा जात है, इन्हीं में से एक है हरेला।

खास बात है कि कोई भी त्योहार साल में जहां एक बार आता है, वहीं हरेला के साथ ऐसा नहीं है। देवभूमि से जुड़े कुछ लोगों के यहां ये पर्व चैत्र, श्रावण और आषाढ़ के शुरू होने पर यानी वर्ष में तीन बार मनाया जाता है, तो कहीं एक बार. इनमें सबसे अधिक महत्व श्रावण के पहले दिन पड़ने वाले हरेले पर्व का होता है, क्योंकि ये सावन की हरियाली से सराबोर होता है।

हरेला के साथ ही सावन होता है शुरू

श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला को ही अधिक महत्व दिया जाता है। क्योकि श्रावण का महिना भगवान शंकर विशेष प्रिय है, और हरेला पर्व से साथ ही सावन की शुरूआत हो जाती है। दरअसल, हरेला का पर्व नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है, वहीं सावन मास के हरेले का महत्व उत्तराखंड मे इसलिए बेहद महत्व है, क्योंकि देव भूमि को देवों के देव महादेव का वास भी कह जाता है।

दसवें दिन हरेला को पतीसा जाता है

इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है. नवें दिन इनकी एक स्थानीय वृक्ष की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानी कि हरेले के दिन इसे काटा जाता है. काटने के बाद गृह स्वामी द्वारा इसे तिलक-चन्दन-अक्षत से अभिमंत्रित किया जाता है, जिसे हरेला पतीसना कहा जाता है. उसके बाद इसे देवता को अर्पित किया जाता है. इसके बाद घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को हरेला लगाती हैं. हरेला लगाने का तरीका यह है कि हरेला सबसे पहले पैरो, फिर घुटने, फिर कन्धे और अन्त में सिर में रखा जाता है और आशीर्वाद स्वरुप यह पंक्तियां, ’जी रये, जागि रये..धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये..सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो..दूब जस फलिये, सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये’ कहीं जाती हैं.

हरेला में बड़े बुजुर्ग देते हैं दुआएं

ज्योतिषाचार्य गणेश दत्त त्रिपाठी ने आईपीएन को बताया कि इनका अर्थ है कि हरियाला तुझे मिले, जीते रहो, जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान,आकाश के समान प्रशस्त (उदार) बनो, सूर्य के समान त्राण, सियार के समान बुद्धि हो, दूर्वा के तृणों के समान पनपो,इतने दीघार्यु हो कि (दंतहीन) तुम्हें भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग करना पड़े. बड़े बुजर्गो की ये दुआएं छोटों के जीवन में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक बनती हैं. हरेले का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि अगर परिवार का कोई सदस्य त्योहार के दिन घर में मौजूद न हो, तो उसके लिए बकायदा हरेला रखा जाता है और जब भी वह घर पहुंचता है तो बड़े-बजुर्ग उसे हरेले से पूजते हैं. वहीं कई परिवार इसे अपने घर के दूरदराज के सदस्यों को डाक द्वारा भी पहुंचाते हैं.

एकजुट रहने का संदेश देता है हरेला

एक अन्य विशेष बात है कि जब तक किसी परिवार का विभाजन नहीं होता है, वहां एक ही जगह हरेला बोया जाता है, चाहे परिवार के सदस्य अलग-अलग जगहों पर रहते हों. परिवार के विभाजन के बाद ही सदस्य अलग हरेला बो और काट सकते हैं. इस तरह से आज भी इस पर्व ने कई परिवारों को एकजुट रखा हुआ है.


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