April 25, 2024

भारत में स्वदेशी आंदोलन का दूसरा नाम आचार्य बालकृष्ण

हरिद्वार का पतंजलि योगपीठ। रात के 7 बजे हैं। बड़े-से कमरे में सामने जो शख्स बैठा है, उसका नाम फोर्ब्स की 100 भारतीय धनकुबेरों की लिस्ट में शुमार है, यकीन नहीं होता। वजह, उनका पहनावा। उन्होंने साधारण-सा कुर्ता और लुंगी पहनी हुई है। चेहरे पर भी सरलता और सहजता। बर्ताव में आत्मीयता। अपने बाल सखा बाबा रामदेव से अलग उनका धीर-गंभीर और संकोची व्यक्तित्व है। पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों को लेकर उनमें जूनून है। वह ‘पतंजलि आयुर्वेद लि.’ के सीईओ हैं। इसके 97% शेयरों के मालिक हैं। इनकी कंपनी ने आयुर्वेद और स्वदेशी के नारे के दम पर रोजमर्रा की चीजों के बाजार में धूम मचा दी है। एक अनुमान के मुताबिक, वह 25,000 करोड़ रुपये की जायदाद के मालिक हैं।

देश के सबसे अमीर लोगों में शुमार होकर कैसा महसूस कर रहे हैं?
बालकृष्ण: (अपनी धूल भरी चप्पलों को दिखाते हुए) इन्हें देख कर बताइए कि कैसा महसूस कर रहा होऊंगा। किसी लिस्ट में शामिल कर लेने से मुझमें कोई बदलाव नहीं आ सकता। मैं पहले जैसा था, अब भी वैसा हूं। रहता भी पहले की तरह हूं और कपड़े भी पहले ही तरह ही पहनता हूं। आपको एक और बात बताऊं? मैंने जो कपड़े पहन रखे हैं, वे भी मेरा कोई परिचित ही सिला कर दे देता है।

तो फिर आपको धनकुबेरों की लिस्ट में शामिल कैसे कर लिया गया?
बालकृष्ण: यह तो मेरी भी समझ से बाहर है। मेरी जानकारी के मुताबिक ऐसी लिस्ट में किसी भी अनलिस्टेड कंपनी को शामिल नहीं किया जाता। अगर इसके सकारात्मक पहलू की बात करें तो यह गौरव का विषय है कि एक अनलिस्टेड कंपनी को इतना ताकतवर समझा गया कि उसे इस लिस्ट का हिस्सा बनाया गया। इसके पीछे की सबसे बड़ी ताकत वे आम लोग हैं जो इस कंपनी के प्रॉडक्ट्स पर, उनकी शुद्धता पर भरोसा करते हैं।

कुछ तो होगा जिसकी वजह से कंपनी की वैल्यू इतनी ज्यादा बताई गई है
बालकृष्ण: यह तो मेरी समझ से भी बाहर है कि 5 हजार करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी की कीमत 6 गुना ज्यादा कैसे निकली। हमें 10-15% प्रॉफिट होता भी है, तो उत्तराखंड के टैक्स-फ्री जोन की वजह से। इसके अलावा जो पैसा भी है, वह किसी की पॉकेट में नहीं है। जो है, वह काम को आगे बढ़ाने में खर्च हो रहा है।

तो एक हिसाब से आप खुद को अमीर नहीं मानते। फिर भी आपके रेग्युलर खर्चे, सैलरी आदि क्या है, कुछ बताएं।
बालकृष्ण: मेरे सारे खर्चे ‘पतंजलि’ देखती है। मुझे नहीं पता कि कहां जाने का खर्च क्या है और वहां कैसे पहुंचना है। मैं गाड़ी से एयरपोर्ट तक पहुंचा दिया जाता हूं। मेरे पास मेरा टिकट होता है और मैं यात्रा कर लेता हूं। जहां पहुंचता हूं, वहां भी एयरपोर्ट पर कोई लेने आ जाता है।

फिर भी कुछ तो रुपये रखते होंगे?
बालकृष्ण: (अपने टेबल की ड्रॉअर खोलते हुए) आप देखिए इसमें तकरीबन 40 हजार रुपये होंगे, जिसे मैं दिन भर आने वाले जरूरतमंद लोगों को सुविधानुसार देता हूं। मिसाल के तौर पर किसी कर्मचारी के घर पर शादी है या कोई ऐसा जरूरतमंद है जिसके पास कुछ भी नहीं है। मेरे सामने अगर कोई ऐसा शख्स आता है तो उसे में ‘ना’ नहीं बोल पाता। मदद जरूर करता हूं।

बस इतना ही पैसा है आपके पास?
बालकृष्ण: नहीं और है (झोला उठाते हुए)। इसमें करीब 40 हजार रुपये कैश है जो शायद 6-7 महीने से पड़े हैं। खर्च ही नहीं हो रहे। मेरी हर जरूरत यहीं पूरी हो जाती है तो मैं खर्च कहां करूं?

‘पतंजलि’ के सीईओ होने के नाते कुछ सैलरी तो पाते होंगे। आपके सैलरी अकाउंट में कुछ तो आता होगा?
बालकृष्ण: मेरा कोई सैलरी अकाउंट नहीं है तो इसमें पैसे आने का सवाल ही नहीं उठता। मैं किसी भी तरह की कोई सैलरी नहीं लेता।

कोई क्रेडिट-डेबिट कार्ड तो होगा?
बालकृष्ण: मेरे नाम पर एक क्रेडिट कार्ड है जो मेरे पास न होकर ऑफिस में रहता है। इसे भी मजबूरी में विदेशों से किताबें आदि खरीदने के लिए बनाया गया है क्योंकि वे और किसी तरीके से खरीदने नहीं देते। चूंकि क्रेडिट कार्ड कंपनी के नाम नहीं बन सकता, इसलिए मेरे नाम पर बनवाया गया।

आप लोग स्वदेशी की बात करते हैं लेकिन आपके पास आईफोन है, रेंज रोवर गाड़ी से आप चलते हैं।
बालकृष्ण: मैं कुछ खरीदता नहीं। लोग दे जाते हैं। यह आईफोन भी किसी परिचित ने दिया है। कोई साथी देसी मोबाइल दे देगा तो वही इस्तेमाल करने लगूंगा। जहां तक रेंज रोवर की बात है तो जड़ी-बूटियों के सिलसिले में पहाड़ों पर जाना रहता है इसलिए ऐसी गाड़ी लेनी थी, जो हर जगह जा सके। वैसे भी अब रेंज रोवर को भारतीय कंपनी ने खरीद लिया है।

लेकिन फिर भी यह गाड़ी बनती तो विदेश में ही है?
बालकृष्ण: तो क्या हुआ! हमारा टेक्नॉलजी से किसी तरह का विरोध नहीं है। कंप्यूटर विदेश में बनता है तो क्या उसे हम इस्तेमाल न करें? स्वदेशी की हमारी परिभाषा को समझने की जरूरत है।

क्या है आपकी स्वदेशी की परिभाषा?
बालकृष्ण: विदेशी कंपनियां देश के पानी और दूसरे संसाधनों के जरिए चीजें बनाती हैं। बनानेवाले देश के, इस्तेमाल करनेवाले देश के। हम विदेशी लोगों को मुनाफा क्यों कमाने दें? ये सारी चीजें जीरो टेक्नॉलजी की हैं। इन्हें खरीदने से हम बच सकते हैं और विदेशी चीजें वहां भी नहीं खरीदनी चाहिए जहां हमारे पास स्वदेशी का विकल्प है। इसका मतलब नहीं कि हम दकियानूसी होकर तकनीक से मुंह चुराएं। तकनीक तो चाहिए। हमें कहा जाता है कि तुम्हारी मशीनें भी तो बाहर की बनी हैं और स्वदेशी की बात करते हो। सचाई यही है कि इन्हीं मशीनों की बदौलत ही देश के लोगों को बेस्ट क्वॉलिटी की चीजें उपलब्ध करा पा रहे हैं। तमाम जरूरी बड़ी मशीनें जर्मनी, जापान, अमेरिका या कनाडा में बनती हैं। यह स्थिति बदले, इसलिए हमने पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन बनाया है। इस पर हम 150 करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं।

आपका पतंजलि ग्रुप में रोल क्या है?
बालकृष्ण: (हंसते हुए) मेरा काम यहां पर हुक्का भरने का है। मेरा कहने का मतलब है कि पहले के जमाने में घर में एक को मेहमानों के लिए हुक्का भरने का काम सौंप दिया जाता था। बस मेरा काम भी कुछ वैसा ही है। दिन भर लोग आते हैं, मैं उन्हें सुनता हूं। उसी के मुताबिक निर्देश आदि देता हूं। बस, इसके अलावा मेरा कोई खास काम नहीं है। दुनिया में भगवान ने लोगों को एक ही चीज बराबरी से दी है, वह है समय। अमीर-गरीब, राजा-रंक, संन्यासी-सेठजी सबके पास दिन में 24 घंटे ही हैं। अब चैलेंज है कि उनका इस्तेमाल कैसे करना है। हम जहां हैं या जहां पहुंचेंगे, अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर पहुंचेंगे।

आप अपने पेज पर कई तरह के देसी नुस्खे देते रहते हैं। नुस्खों में चीजों की मात्रा, सेवन विधि और अवधि के बारे में सटीकता से नहीं बताया जाता। मिसाल के तौर पर अभी फेसबुक पेज पर आपने बताया था कि फलां चीज लगाने पर बाल झड़ने बंद हो जाते हैं, पर यह नहीं बताया कि कितने दिन तक लगाएं?
बालकृष्ण: आपका सुझाव अच्छा है। मैं कोशिश करूंगा कि आगे से पूरी तरह से सटीक जानकारी दी जाए।

ऐसा कौन-सा प्रॉजेक्ट है जो दिल के सबसे करीब है, जिसे करने से आपको संतुष्टि मिली हो?
बालकृष्ण: हमने जो हर्बल गार्डन तैयार किया है, वह मेरे दिल के वाकई सबसे करीब है। मेरी गाएं, मेरी बतखें मेरे दिल के काफी करीब हैं। जब मैं इनके बीच होता हूं तो जड़ी-बूटी वाला बालकृष्ण बन जाता हूं। उस माहौल में मैं किसी ऑफिस में काम करनेवाले से कतई अलग नजर नहीं आता हूं।

फिर तो आप यहां खुद को फंसा महसूस करते होंगे?
बालकृष्ण: शुरुआत में कई बार लगता था। अब नहीं लगता। अब कई तरह से मैं भीड़ में होते हुए भी जंगल में रहता हूं। मैं इस वक्त आपको अपनी कहानी सुना रहा हूं लेकिन दिन भर में यहां लोगों की कहानियां सुनता रहता हूं। यह सब मुझे काफी बिजी रखता है। अब खाली वक्त ही नहीं है जो ऐसा कुछ महसूस कर सकूं।

कई तरह के विवादों की वजह से आप लोगों पर कई तरह की कार्रवाईयां भी हुईं। आपका क्या कहना है?
बालकृष्ण: ऐसी घटनाओं से दिल दुखता है। लगता है कि हम तो दूसरों का भला करना चाहते हैं लेकिन हमें यह सब सहना पड़ रहा है। फिर हमने सोचा कि आजादी की लड़ाई लड़नेवालों को जब कोई नहीं पूछता तो हमें कौन पूछेगा। देश के लिए मर-मिटने वाले भगत सिंह को आज तक शहीद का दर्जा नहीं मिला। अब इससे आगे क्या कह सकते हैं?

आपके और स्वामी रामदेव के बीच इतने अच्छे तालमेल का राज क्या है?
बालकृष्ण: हमें मिले तकरीबन 30 साल हो गए हैं। शुरुआत में सोचा नहीं था कि हम साथ में मिलकर ऐसा कुछ करेंगे। बस थोड़ी-बहुत दोस्ती थी। हम साथ में गुरुकुल में थे। ज्यादातर हम लोग जींद के गुरुकुल में रहे। वह हमेशा मुझे पढ़ाते और समझाते रहते थे। कभी-कभी उन पर गुस्सा आता था। हालांकि बाद में लगता था कि बड़े भाई की तरह समझाते हैं तो इसमें बुराई क्या है। मुझे हर चीज बड़े सलीके से रखने की आदत है। स्वामी जी हमेशा मस्ती में रहते हैं और बड़े बिंदास हैं। वह मंच पर बिंदास योग करते हैं और खुल कर बातें करते हैं। हालांकि मेरा स्वभाव कुछ अलग है। स्वामी जी काफी मेहनती हैं। मैं इतनी शारीरिक मेहनत नहीं कर पाता। स्वामी जी तो दिमाग और शरीर, दोनों से जम कर मेहनत करते हैं। सबसे पहले स्वामी जी ने मिशन बनाया कि गरीब लोगों को पढ़ा-लिखा कर आईएएस बनाया जाए। लेकिन बाद में लगा, गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए। फिर लगा, किसी आश्रम में जाकर पढ़ाएं। वहां पर कई तरह के आडंबर नजर आए तो हमने उस आइडिया को खारिज कर दिया। हमने कुछ अपना शुरू करने की सोची। हमारा स्वामी शंकरदेव जी से परिचय था तो हमने उनकी जगह में ही रह कर काम करना शुरू किया। हमने बाद में उस जगह को ट्रस्ट बना दिया। मैं अब भी वहीं रहता हूं।

फिलहाल किस मिशन में लगे हैं?
बालकृष्ण: अभी मैं 1000 से 1400 साल पुरानी भारतीय पांडुलिपियां इकट्ठा कर रहा हूं। इस काम के लिए मैं लोगों को तैयार कर रहा हूं कि उन्हें ढूंढने में मदद मिल सके। मैंने वर्ल्ड योग इनसाइक्लोपीडिया और वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया बनाई है। हमने 60 हजार से ज्यादा मेडिसिनल पौधों का डेटाबेस तैयार किया है। लोग पौधों के नाम तो जानते हैं लेकिन उन्हें पहचान नहीं सकते। इसके लिए उनकी पेंटिंग तैयार करवा रहा हूं। वैसे मैं कविताएं भी लिखता हूं।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com