April 25, 2024

अटल बिहारी वाजपेयी: इस तरह से विदेशी मीडिया ने दी श्रद्धांजलि

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत के एक ऐसे नेता थे जिन्हें ना केवल देश बल्कि विदेश भी ध्यान से सुना करता था। गुरुवार को 93 साल की उम्र में उन्होंने दिल्ली के एम्स अस्पताल में आखिरी सांस ली। जहां उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। वहीं विदेशी मीडिया में भी उनके निधन की खबर को व्यापक तौर पर कवर किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट और सीएनएन ने बताया है कि प्रधानमंत्री रहते हुए कैसे उन्होंने भारत-अमेरिका के बीच रिश्तों को सुधारने का कार्य किया था। इसके अलावा कैसे उन्होंने भारत को परमाणु संचालित राष्ट्रों की सूची में लाकर खड़ा कर दिया था।

न्यूयॉर्क टाइम्स

न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है- अटल बिहारी वाजपेयी, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री का 93 साल की उम्र में निधन। अखबार ने वाजपेयी जी को एक साहसी राजनेता बताया है जिन्होंने 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों पुराने प्रतिबंध को खत्म करके पूरी दुनिया को परमाणु हथियारों का परीक्षण करके चौंका दिया था। अखबार लिखता है, कानूनविद, एक प्रख्यात कवि, वाजपेयी जी पत्रकार और युवावस्था से ही ब्रिटिश राज्य के खिलाफ थे। राजनीति के अपने लगभग 50 दशक में वह भारत के बाहर भी जाने जाते थे। 70 के अंत में वाजपेयी का चेहरा दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र के लिए दादा वाला था। भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को पाटने के बारे में अखबार कहता है। जैसे ही शीत युद्ध का अतं हुआ, वह भारत को अमेरिका के करीब ले आए। उन्होंने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को साल 2000 में भारत आने का न्यौता दिया और आपसी रिश्तों को मजबूत बनाने के साथ ही 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकी हमलों को दौरान मदद की। 

वाशिंगटन पोस्ट

वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री जिन्होंने भारत को परमाणु समृद्ध बनाया, उनका 93 की उम्र में निधन हो गया। अखबार उन्हें भारत को एक परमाणु संपन्न देश बनाने का श्रेय देता है लेकिन यह भी बताता है कि कैसे परमाणु हथियारों का परीक्षण करने के भारत के फैसले ने उसके और अमेरिका के संबंधों के बीच तनाव पैदा कर दिया था। भारत ने सबसे पहले 1974 में परीक्षण किया था और वह लंबे समय तक कहता रहा कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांति के लिए है। नए परीक्षणों ने भारत को एक अतिव्यापी परमाणु हथियार राज्य के रूप में स्थापित किया। परीक्षण के तुरंत बाद राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने दक्षिण एशिया की स्थिरता को कमजोर करने के लिए भारत की निंदा की। हालांकि बंद दरवाजों में वाजपेयी ने कूटनीतिक रिश्तों पर काम किया और क्लिंटन के साथ दोस्ताना बातचीत की। जिसके बाद वह 2000 में भारत दौरे पर गए, जो किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की दो दशकों से ज्यादा समय बाद की गई भारत यात्रा थी। 

सीएनएन

सीएनएन लिखता है कि आर्थिक प्रतिबंधों के डर के बावजूद वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण किए। वह एक ऐसे नेता थे जो अतंर्राष्ट्रीय दबाव के आगे झुके नहीं। भारत की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को लेकर उन्हें देश में और विदेशों में भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। आर्थिक प्रतिबंधों के खतरे के बावजूद उन्होंने संसद में कहा था, हमने कभी कोई फैसला अतंर्राष्ट्रीय दबाव में नहीं लिया है और ना ही भविष्य में ऐसा करेंगे। लेख में भाजपा को पुनर्जीवित करके सत्ता में लाने का श्रेय वाजपेयी को दिया गया है। अपने राजनीतिक करियर के दौरान वाजपेयी का नाम भाजपा के समानार्थी हो गया जिसका निर्माण उन्होंने 1980 के अंत में किया था।


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