April 16, 2024

बर्थडे स्पेशल: जानिए क्या है शहीद चंद्रशेखर आजाद के बारे में ‘सबसे कड़वा सच’

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा वीर सपूत जिसके सामने अंग्रेज थर-थर कांपते थे। वह इतना शातिर था कि उसे जिंदा पकड़ना ब्रिटिश हुकूमत के लिए सबसे बड़ी चुनौती था। हम बात कर रहे हैं पंडित चंद्रशेखर तिवारी उर्फ चंद्रशेखर आजाद की। 

आजाद के जन्मदिन पर जानिए उनके शहीद होने के बाद क्या हुआ परिवार का हाल….
 
चंद्रशेखर आजाद का नाम असल में चंद्रशेखर तिवारी ही था लेकिन बाद में इन्होंने खुद को आजाद घोषित कर दिया था और कभी अंग्रेजों के हाथो ना मरने की कसम खाई थी। पंडित सीताराम तिवारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के बदर गांव के रहने वाले थे। लेकिन भीषण अकाल के चलते वे मध्यप्रदेश के ग्राम भाबरा में जा बसे थे। जी हां 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में ही सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर एक बच्चा पैदा हुआ था। नाम रखा गया चंद्रशेखर तिवारी। 

चंद्रशेखर तिवारी का जन्मदिन आज पूरा भारत चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस के नाम से मना रहा है। जैसा कि इन्होंने कभी भी अग्रेंजों के हाथों न मरने की कसम खाई थी वैसा ही इन्होंने किया भी। 27 फरवरी, 1931 को जब इलाहाबाद के एलफ्रेड पार्क में आजाद को अग्रेजों ने घेर लिया था तो काफी देर तक वह अकेले उनका मुकाबला करते रहे लेकिन जब अंत में उनके पास केवल एक गोली बची थी तो उन्होंने खुद को गोली मार ली थी।

क्या आप जानते हैं आजाद के शहीद होने के खबर उनकी मां को कई महीने बाद मिली थी। वो पहले ही ऐसी दुख की घड़ी से गुजर रही थी उस पर से जब उन्हें यह पता चला कि उनका बेटा नहीं रहा तो वह पूरी तरह टूट गई। आपको बताने जा रहा है कि चंद्रशेखर आजाद के शहीद होने के बाद उनकी मां ने कैसे जिदंगी काटी।
बतातें हैं कि चंद्रशेखर ने अपनी फरारी के करीब 5 साल बुंदेलखंड में गुजारे थे। इस दौरान वे ओरछा और झांसी में रहे। ओरछा में सातार नदी के किनारे गुफा के समीप कुटिया बना कर वे डेढ़ साल रहे थे।

फरारी के समय सदाशिव उनके सबसे विश्वसनीय लोगों में से एक थे। आजाद इन्हें अपने साथ मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा गांव ले गए थे और अपने पिता सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी से मुलाकात करवाई थी। सदाशिव आजाद के शहीद होने के बाद भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करते रहे और कई बार जेल गए। देश को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद वह चंद्रशेखर के माता-पिता का हालचाल पूछने उनके गांव पहुंचे। वहां उन्हें पता चला कि चंद्रशेखर की शहादत के कुछ साल बाद उनके पिता का भी देहांत हो गया था।

आजाद के भाई की मृत्यु भी उनसे पहले ही हो चुकी थी। पिता के देहांत के बाद चंद्रशेखर की मां बेहद गरीबी में जीवन जी रहीं थी। गरीबी के बावजूद उन्होंने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। वो जंगल से लकड़ियां काटकर लाती थीं और उनको बेचकर ज्वार-बाजरा खरीदती थी। भूख लगने पर ज्वार-बाजरा का घोल बनाकर पीती थीं। उनकी यह स्थिति देश को आजादी मिलने के 2 साल बाद (1949) तक जारी रही।

आजाद की मां का ये हाल देख सदाशिव उन्हें अपने साथ झांसी लेकर आ गए। मार्च 1951 में उनका निधन हो गया। सदाशिव ने खुद झांसी के बड़ागांव गेट के पास शमशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया था। घाट पर आज भी आजाद की मां जगरानी देवी की स्मारक बनी है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com