March 28, 2024

राफेल विमान सौदे का ऑडिट करेगा कैग, विपक्ष ने लगाया है ज्यादा कीमत देने का आरोप

वायुसेना को अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों से लैस करने के लिए फ्रांस के साथ हुए राफेल सौदे की लेखा परीक्षा ‘ महा लेखा नियंत्रक एवं परीक्षक (कैग)’ करने जा रहा है। राफेल सौदे को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर रहा है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि वर्तमान सरकार ने राफेल विमानों के लिए यूपीए कार्यकाल में तय कीमत से कहीं ज्यादा दाम चुकाएं हैं।

कैग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने  बातचीत में कहा कि किसी भी ऐसे सौदे का ऑडिट करना कैग की जिम्मेदारी है, जिसमें देश का काफी पैसा लगा हो। राफेल सौदा भी इसी श्रेणी में शामिल है। इसलिए जल्द ही राफेल सौदे का ऑडिट शुरू किया जाएगा। मालूम हो, वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच राफेल सौदे को लेकर अंतिम समझौता हुआ था।  मोदी सरकार का दावा है कि यह सौदा उसने यूपीए से कम कीमत में किया है और 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं। हालांकि सरकार ने गोपनीयता समझौते का हवाला देते हुए 36 विमानों के लिए हुए सौदे की लागत का पूरा विवरण जारी नहीं किया।

वहीं, कांग्रेस का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है। इस तरह अब एक विमान की लागत 1555 करोड़ रुपये पड़ रही है, जबकि यूपीए सरकार इन्हें 428 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर पर खरीद रही थी।

तथ्य 
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान राफेल पर अंतिम समझौता हुआ
12,600 करोड़ रुपये बचाने का दावा एनडीए सरकार ने किया है

कांग्रेस के आरोप
126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी यूपीए सरकार
428 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर पर खरीद रही यूपीए सरकार
36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है वर्तमान एनडीए सरकार
1555 करोड़ रुपये पड़ रही है एक विमान की कीमत

कई साल तक लटका रहा समझौता
2011 में भारतीय वायुसेना ने घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं। कई विमानों के तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन के बाद यह घोषणा हुई।
2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके निर्माता दसाल्ट एविएशन के साथ बातचीत शुरू हुई।
2014 तक यह बातचीत आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से अधूरी रही।

यूपीए सरकार में समझौता नहीं 
यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाया, क्योंकि खासकर टेक्नोलॉजी स्थानांतरण के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बन गया था। निर्माता कंपनी दसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। दसाल्ट का कहना था कि भारत में विमानों के उत्पादन के लिए तीन करोड़ मानव घंटों की जरूरत होगी, लेकिन एचएएल ने इसके तीन गुना ज्यादा मानव घंटों की जरूरत बताई, जिसके कारण लागत कई गुना बढ़ जानी थी।


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