March 29, 2024

केंद्र सरकार ने जस्टिस जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट भेजने की कलीजियम की अनुशंसा मानी: सूत्र

ऐसा माना जा रहा है कि मोदी सरकार ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ  को सुप्रीम कोर्ट भेजने के कलीजियम के फैसले को स्वीकार कर लिया है। जस्टिस जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट भेजे जाने के फैसले को लेकर पिछले छह महीने से कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक टकराव देखने को मिल रहा था। सूत्रों के हवाले से आ रही इस खबर के बाद टकराव खत्म होने की उम्मीद जताई जा रही है। 

सरकार के सूत्रों ने बताया कि केंद्र ने जस्टिस जोसेफ के साथ मद्रास हाई कोर्ट चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी और ओडिशा हाई कोर्ट चीफ जस्टिस के लिए विनीत सरन के नाम की अनुशंसा की फाइल क्लियर कर दी है। सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस  दीपक मिश्रा के नेतृत्व में कलीजियम ने 10 जनवरी को एससी जज के रूप में जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश की थी। इसके दो दिनों बाद ही सुप्रीम कोर्ट में अभूतपूर्व विरोध देखने को मिला था। 

12 जनवरी को कलीजियम के चार अन्य सदस्य जस्टिसचेलमेश्वर  , रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ ने सीजेआई के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था। केंद्र ने 30 अप्रैल को जस्टिस जोसेफ पर कलीजियम की सिफारिश को लौटा दिया था। केंद्र ने अनुभव का मसला उठाते हुए तर्क दिया था कि जस्टिस जोसेफ वरीयता क्रम में देश में 42वें स्थान पर आते हैं। ऐसे में उन्हें सुप्रीम कोर्ट भेजना हाई कोर्ट के दूसरे वरिष्ठ जजों की वैध उम्मीदों के लिहाज से ठीक नहीं होगा। 

केंद्र ने यह भी कहा था कि सर्वोच्च न्यायपालिका में एससी/एसटी समुदाय का भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। जस्टिस जोसेफ के नाम पर केंद्र की आपत्ति को उनके उत्तराखंड चीफ जस्टिस के तौर पर सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को खारिज करने से जोड़ कर देखा जा रहा था। जस्टिस जोसेफ की बेंच के इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। इसके बाद कांग्रेस की हरीश रावत की सरकार की वापसी हुई थी। 

हालांकि कलीजियम 16 मई को सैद्धांतिक तौर पर जस्टिस जोसेफ के नाम को फिर से भेजने पर सहमत हो गया। इसके बावजूद सरकार को अनुशंसाएं नहीं भेजी गईं। कलीजियम सुप्रीम कोर्ट में मौजूद 6 खाली पदों के लिए और कैंडिडेट्स का चुनाव करना चाहता था। सूत्रों का कहना है कि केंद्र द्वारा जस्टिस जोसेफ के नाम को लौटाना, कलीजियम द्वारा इसे फिर भेजना और केंद्र द्वारा इसे स्वीकार कर लेने के फैसले में कुछ भी अनोखा नहीं है। उनके मुताबिक यह तीनों कदम उस प्रक्रिया के अंग हैं जिसके तहत 1990 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने ही दो फैसलों में जजों की नियुक्ति के लिए कलीजियम सिस्टम बनाया था। 

उन्होंने बताया कि केंद्र ने वरिष्ठता के आधार का सवाल उठाया था। केंद्र का कहना था कि दूसरे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और जस्टिस जोसेफ से दूसरे वरिष्ठ जजों की वरिष्ठता दरकिनार नहीं होनी चाहिए। कलीजियम से देश के दूसरे हिस्से के प्रतिनिधित्व पर भी ध्यान देने की दरख्वास्त की गई थी। जस्टिस जोसेफ केरल से आते हैं और यहां से पहले से सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कुरियन जोसेफ मौजूद हैं। 

सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जस्टिस जोसेफ के साथ जस्टिस बनर्जी और जस्टिस सरन के नाम की अनुशंसा करके कलीजियम ने एक तरह से हमारे विचारों का सराहा है और हम कलीजियम के फैसले को सराह रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि सरकार सर्वोच्च अदालत में पिछड़ा और SC/ST वर्ग के लोगों के उचित प्रतिनिधित्व के पक्ष में है। 


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