सौर ऊर्जा के नाम पर करोड़ों के घोटाले में उरेडा दोषी
ऊर्जा प्रदेश कहे जाने वाले उत्तराखंड में ऊर्जा के नाम पर अधिकारी करोड़ों की लू़ट मचा रहे हैं. जो सब्सिडी जनता को दी जानी थी उस पैसे से विभाग के अधिकारियों ने अपनी जेबें गर्म कर लीं. लूट-खसोट में कोई कमी न रह जाए इसलिए अधिकारियों ने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी करोड़ों की बंदरबाट में साझेदार बनाया. यह मामला प्रमुखता से उठाया तो जांच शुरू हुई और उसके बाद उरेडा को दोषी पाया गया.
दरअसल मामला यह है कि MNRE ने उत्तराखंड के लिए 2022 तक 300 मेगावाट के सोलर सयंत्र लगाने का लक्ष्य रखा. इसके बाद उरेडा ने 2016 की शुरुआत में प्रदेश में ‘पहले आओ पहले पाओ’ योजना के तहत विज्ञप्ति निकाली.
इसके बाद आश्चर्यजनक तेज़ी दिखाते हुए उरेडा ने 28 से 30 मार्च, 2016 के बीच 93 सोलर प्लांटों प्रोजेक्ट का आंवटन कर दिया. कमाल यह हुआ कि 7 प्लांट 31 मार्च यानि प्लांट आवंटन के दूसरे ही दिन तैयार हो गए और काग़ज़ों में 7 सोलर प्लांट बनकर तैयार भी हो गए.
ये सौर ऊर्जा प्लांट घर की छत या बंजर ज़मीन पर लगने थे लेकिन यहां कृषि भूमि पर ही प्लांट लगा दिए गए. ये 93 सौर ऊर्जा प्लांट आम जनता के लिए थे लेकिन अधिकारियों ने उन्हें अपने चहेतों को दे दिया और इन पर मिलने वाली70 फीसदी की सब्सिडी यानि छूट या तो अधिकारी डकार गए या चहेतों ने कमा ली.
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- अधिकारीयों ने जिन सौर प्लांटों को करीब 70 करोड़ सब्सिडी बांटी, उनके मानक क्या रखे?
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- आखिर एक दिन में 500 किलोवाट का प्लांट कैसे बनकर तैयार हुआ?
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- उसी एक दिन में UPCL ने ट्रांसमीशन लाइन कैसे तैयार कर ली?
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- एक ही दिन में प्लांट की सुरक्षा जांच कैसे हो गई? और
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- बिना सुरक्षा उपायों के प्लांट कमीशन कैसे हुए?
ख़बर प्रकाशित करने के बाद शासन ने मामले की जांच की और इसमें उरेडा को दोषी पाया गया. ऊर्जा सचिव राधिका झा ने कहा कि जांच रिपोर्ट में उरेडा दोषी पाया गया है और जल्द ही दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी.