असल मुद्दों से दूर चुनावी संग्राम
रितिक भंडारी (Citizen journalist)
भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इन दिनों भारत में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व शुरू हो चुका है। लेकिन सवाल यह भी कि इस पर्व में आम लोगों के मुद्दे ही गायब है। हालात यह है कि राजनीतिक पार्टियों में खींचातानी शुरू हो चुकी है। हरेक व्यक्ति धनबल, बाहुबल के सहारे राजनीति में घुसा जा रहा है। आम आदमी का कहीं कोई सवाल नहीं है। नये-नये प्रपंच रचे जा रहे हैं। चुनाव प्रचार से असल मुद्दे गायब है।
कहां तो सत्ता में रहे सांसद को अपने 5 साल का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रखना था और भविष्य की योजनाओं से वोटरों को अवगत करना था। लेकिन हालात इसके ठीक उलट है। आज के समय में जनप्रतिनिध को सोशल मीडिया साइट पर अपने विजन और जनता के लिए किये गये कार्यों को जिक्र करना चाहिए था। लेकिन यही जनप्रतिनिधि सोशल मीडिया साइट पर भद्दे और बेहुदा कांटेंट डाल कर अपने आपको सुर्खियों में ला रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता अंध भक्तों की तरह लाइक और शेयर के विकल्पों तक ही सीमित है। उन्हें अपने क्षेत्र से कोई सरोकार नहीं है। दूसरी ओर प्रतिपक्ष भी लुंजपुंज है, उसमें विपक्ष वाली कोई धार नहीं है। सिर्फ अपनी डपली अपना राग वाला तराना गा रहे हैं।
गरीबी ,शिक्षा ,किसान ,रोजगार ,पलायन, महंगाई ,कानून व्यवस्था ,उच्च शिक्षा, पर्यावरण, इन मुद्दों पर तो कोई बात ही नहीं कर रहा। यदि मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ा जाएगा तो आने वाला समय लोकतंत्र के लिए घातक होगा। लिहाजा आम आदमी को भी सोचना होगा वह आखिर अपने वोट का कैसे इस्तेमाल करे। एक जागरूक नागरिक होकर हमें ऐसे व्यक्ति को अपना मत देना होगा जो आम जन से जुड़ा हो जिसके पास विजन हो और भविष्य के लिए आशावान हो।