सरकार ने सिक्कों का उत्पादन किया बंद, देश के चारों टकसालों ने किया प्रोडक्शन बंद
देश की टकसालों में सिक्कों का ऐसा ढेर लग गया है कि सिक्के बनाने का काम रोक दिया गया है। मामले की जानकारी रखने वालों ने बताया कि आरबीआई के कोषागार नोटबंदी के दौरान लोगों के घंटों-घंटों तक कतारों में लगकर जमा कराई गई करेंसी से भरे हुए हैं और इसके चलते आरबीआई टकसालों से कम सिक्के उठा रहा है। इसी के चलते सिक्के बनाना रोक दिया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र की सिक्यॉरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के पास मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और नोएडा में टकसाल हैं।
बुधवार को जारी मुंबई मिंट के इंटरनल नोटिस में कहा गया, ‘एसपीएमसीआईएल से मिले निर्देश के अनुसार, सभी कर्मचारियों को सूचित किया जा रहा है कि इंडिया गवर्नमेंट मिंट, मुंबई में सर्कुलेशन कॉइंस का उत्पादन तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाएगा।’
इस कदम से आम लोगों को परेशानी होने का डर नहीं है क्योंकि आरबीआई के पास सिक्कों की पर्याप्त आपूर्ति है। 24 नवंबर 2016 को उसके पास 1, 2, 5 और 10 रुपये के 676 करोड़ रुपये मूल्य के सिक्के थे। आरबीआई के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि टकसालों से सिक्के इसलिए कम उठाए जा रहे हैं क्योंकि आरबीआई के कोषागारों में पर्याप्त जगह ही नहीं है। उन्होंने कहा कि वहां तो 500 और 1000 रुपये के वे नोट भरे हुए हैं, जिन्हें रद्द करार दिया गया था। नवंबर 2016 में नोटबंदी के चलते उस वक्त सर्कुलेशन में रहे नोटों का करीब 85 पर्सेंट हिस्सा अवैध करार दिया गया था। आरबीआई ने इस संबंध में सवालों के जवाब नहीं दिए हैं।
हालांकि सिक्का ढलाई रोकने के कदम से कर्मचारी खुश नहीं हैं क्योंकि इससे उनके ओवरटाइम पर मार पड़ी है। मुंबई मिंट के नोटिस में कहा गया, ‘मिंट में अब 9 जनवरी से सामान्य वर्किंग आवर्स रहेंगे। अगले आदेश तक कोई ओवरटाइम नहीं होगा।’
नोएडा यूनिट ने कहा कि उसके स्टॉक में 2.53 अरब के सिक्के हैं और आरबीआई ने इन्हें लेना बंद कर दिया है। आरबीआई की 2016-17 की ऐनुअल रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 में सर्कुलेशन में रहने वाले कॉइंस की वैल्यू 14.7 पर्सेंट बढ़ी, जबकि सर्कुलेशन वॉल्यूम 8.5 पर्सेंट बढ़ा। सर्कुलेशन वॉल्यूम में 1 और 2 रुपये के सिक्कों का हिस्सा 69.2 पर्सेंट था, जबकि वैल्यू के लिहाज से इनका हिस्सा 44.8 पर्सेंट था। आरबीआई 5 और 10 रुपये के नोटों के बजाय इनके सिक्कों के उपयोग को बढ़ावा देता रहा है क्योंकि कागज के मुकाबले मेटल ज्यादा लंबा चल सकता है।