April 26, 2024

हरिद्वार के इस अस्पताल में अपने पैसों से गरीबों का इलाज कराते हैं डॉक्टर-कर्मचारी

महंगे उपचार के दौर में उत्तराखंड का एक अस्पताल ऐसा भी जहां डॉक्टर और कर्मचारी अपने पैसों से गरीब-असहाय लोगों का इलाज कराते हैं। जी हां, हरिद्वार का निराश्रित वार्ड मिसाल बन गया है। इस वार्ड में भर्ती होने वाले गरीब, असहाय व निराश्रित मरीजों के इलाज का खर्च स्वयं अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी उठाते हैं। स्वस्थ होने के बाद रोगियों को घर तक पहुंचाने का खर्च भी डॉक्टर और कर्मचारी ही उठाते हैं। जिला अस्पताल के सीएमएस अर्जुन सिंह सेंगर ने बताया कि अस्पताल के सभी डॉक्टरों और कर्मचारियों की सहायता से रोगियों को इलाज किया जाता है। हर कर्मचारी अपनी इच्छानुसार हर महीने चंदा देता है।

नर्स संतोषी देवी ने शुरू की अस्पताल में यह पहल

जिला अस्पताल में निराश्रित वार्ड की शुरुआत वर्ष 2010 में अपर वार्ड इंचार्ज संतोष देवी ने की थी। संतोष देवी कहती हैं कि 2010 में वे श्रीनगर से ट्रांसफर होकर हरिद्वार आयीं। यहां अस्पताल में आए दिन निराश्रित और लावारिस रोगी आते थे। रोगियों के पास न तो पैसे होते थे और न ही उनकी देखभाल करने वाला कोई। ऐसे में उन्होंने डॉक्टरों से बातकर ऐसे रोगियों के लिए अलग से वार्ड की व्यवस्था कराई। इसके बाद रोगियों के इलाज, खाने-पीने और उनके कपड़ों के लिए अस्पताल के स्टाफ से चंदा लेना शुरू किया। वर्ष 2011 में अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक स्वर्गीय डॉ. अजब सिंह रावत के सुझाव पर चंदे का रिकॉर्ड रखने के लिए रजिस्टर बनाया गया। इसके बाद हर महीने प्रथम से लेकर तृतीय श्रेणी के सभी कर्मचारियों से चंदा लिया जाता है। कई रोगियों के लिए बैसाखी, दवाई और वॉकर की व्यवस्था की निशुल्क की जाती है।

कपड़े भी दिए जाते हैं 

इस वार्ड में भर्ती मरीजों के लिए कपड़ों की व्यवस्था भी अस्पताल के कर्मचारी करते हैं। संतोष देवी ने बताया कि कर्मचारी अपने पुराने कपड़े अस्पताल में रखते हैं। जरूरत पड़ने पर इन कपड़ों को निराश्रित वार्ड के रोगियों को दान कर दिया जाता है। कई बार रोगियों के लिए डॉक्टर खुद ही बाहर से दवाएं भी खरीदकर लाते हैं।

दूसरे राज्यों के मरीजों को छोड़ते हैं घर तक 

हरिद्वार में बीमार या दुर्घटनाग्रस्त होने पर दूसरे राज्यों के भी कई गरीब यात्री इस वार्ड में भर्ती होते हैं। नर्सिंग अधीक्षिका मंजु त्रिपाठी ने बताया कि ऐसे मरीजों का पूरा इलाज कर उन्हें घर भेजने के लिए भी चंदे के पैसों से ही व्यवस्था की जाती है।

हर साल सौ से ज्यादा रोगी होते हैं भर्ती 

निराश्रित वार्ड में हर साल सौ से ज्यादा मरीज भर्ती होते हैं। जिनकी देखरेख के लिए ठेके पर कर्मचारियों को तैनात किया जाता है। पहले चार लोग मरीजों की देखभाल के लिए रखे गए थे। इन दिनों दो लोग यह काम कर रहे हैं। इन दोनों का वेतन भी चंदे के पैसों से ही दिया जाता है। उपचार के दौरान जिन रोगियों का निधन हो जाता है उनका दाह संस्कार श्रीगंगा सभा कराती है।


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