कैग का खुलासा: लड़ाकू विमानों के टायर-ट्यूब की खरीदारी में 9 साल से चल रही धांधली
राफेल विमान सौदे का मामला पहले से ही गर्माया हुआ है और अब भारतीय वायु सेना के मिग लड़ाकू विमानों के टायर-ट्यूब की खरीदारी में भी बड़ी धांधली का पर्दाफाश हुआ है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के मुताबिक वायु सेना के एमआई-17 IV हेलीकॉप्टरों की मरम्मत पर तीन गुना ज्यादा खर्च किया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह धांधली पिछले 9 साल से चली आ रही थी, जिसका अब खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक, नियमों को ताक पर रखकर मिग लड़ाकू विमानों के टायर-ट्यूब की खरादारी पोलैंड की एक कंपनी से की रही है। पिछले नौ सालों में करीब 6 हजार करोड़ रुपये के 3,080 खराब टायर-ट्यूब खरीदे गए, जिनका इस्तेमाल अब तक नहीं किया गया है। इन्हीं खराब टायर-ट्यूब की वजह से पिछले सात साल में मिग लड़ाकू विमानों के 32 टायर-ट्यूब फट गए। जांच में पता चला कि इनमें से 84 फीसदी टायर-ट्यूब्स पहले से ही खराब थे।
लड़ाकू विमानों का टायर-ट्यूब फटना कोई आम बात नहीं है। इससे बड़ी दुर्घटना भी हो सकती है। बता दें कि एक टायर-ट्यूब से 25-30 बार विमानों की लैंडिंग कराई जा सकती है। इसके बाद ये बेकार हो जाते हैं। एक टायर-ट्यूब की कीमत 20 हजार रुपये के आसपास होती है।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एमआई-17 IV हेलीकॉप्टरों की मरम्मत की सुविधा अगर देश में समय से स्थापित की जाती तो इतने पैसे बर्बाद नहीं होते। यह काम महज 196 करोड़ रुपये में ही हो जाता। इसके अलावा रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि वायु सेना ने विमानों के उपकरणों की खरीद के टेंडर और अन्य प्रक्रियाओं में देरी की, जिसकी वजह से हेलीकॉप्टरों की मरम्मत विदेशों में करानी पड़ी। इसके कारण 600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, हेलीकॉप्टरों की मरम्मत का 85 फीसदी काम देश में मौजूद मरम्मत केंद्र पर ही हो सकता था, जबकि सिर्फ 15 फीसदी काम के लिए 196 करोड़ रुपये की लागत से मरम्मत केंद्र बनाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
कैग रिपोर्ट की मानें तो देश में ही टायर-ट्यूब बनाने की कंपनी मौजूद है, लेकिन फिर भी विदेशों से इनकी खरादारी की गई। रिपोर्ट के मुताबिक, एमआरएफ कंपनी से टायर-ट्यूब लेने की पहल 2010 में हुई थी। इसके लिए एमआरएफ ने वायु सेना से सैंपल भी मांगा था, लेकिन वायु सेना मुख्यालय से 11 महीनों तक कोई भी जवाब नहीं आया। बाद में मुख्यालय की ओर से बेतुका जवाब दिया गया कि मिग लड़ाकू विमानों की लाइफ खत्म हो रही है, ऐसे में टायर-ट्यूब बनाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि पहले से ही भंडार में उचित मात्रा में टायर-ट्यूब मौजूद हैं। लेकिन कुछ महीनों के बाद ही वायु सेना ने 11,425 टायर-ट्यूब खरीदने का ऑर्डर पोलैंड की कंपनी को दे दिया।
कैग ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के खिलाफ भी सवाल खड़े किए हैं। कैग का कहना है कि ड्रोन के विकास का कार्य समय से पूरा नहीं हुआ और 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि खर्च भी हो गई। लेकिन इसके बावजूद सेना को ड्रोन नहीं मिले, जिससे हवाई निगरानी क्षमता प्रभावित हुई है।