April 19, 2024

समलैंगिक संबंध अपराध है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 पर अपने ही फैसले पर फिर से विचार करने के लिए तैयार है। आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से हटाने की मांग करने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी पीठ के पास भेजा। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच जिसका नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा कर रहे हैं, धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर विचार करेगी। इस कानून के तहत साल 2013 में देश में गे सेक्स को अपराध घोषित किया गया था

साल 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को रद्द कर दिया था। दिल्ली स्थित ज्योतिष सुरेश कुमार कौशल उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए थे। 11 दिसंबर, 2013 सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने अपने फैसले में अप्राकृतिक यौन अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 की वैधता बरकरार रखी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उस समय कहा था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को बदलने के लिए कोई संवैधानिक गुंजाइश नहीं है। धारा 377 के तहत दो व्यस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध माना गया है।

क्या है धारा 377

धारा 377 के दायरे में समलैंगिक, लेस्बियन, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स संबंध रखने वाले लोग आते हैं। ब्रिटिश राज में सन् 1860 में लॉर्ड मैकाले द्वारा इस पर कानून बनाने की सहमति हुई थी जो आज धारा 377 को रूप में संविधान में इंगित है। इस कानून में स्पष्ट वर्णन किया गया है कि प्रकृति के खिलाफ अगर कोई भी पुरुष, महिला अपने ही समान लिंग वालों से शारीरिक संबंध बनाता है या विवाह करता है तो इस अपराध के लिए उसे सजा दी जा सकती है और साथ में उसे आर्थिक जुर्माना भी भरना पढ़ेगा। इस धारा के अधीन, कारावास बढ़ाकर 10 साल तक किया जा सकता है।

समलैंगिक अधिकारों के पक्षधरों का आरोप है कि पुलिस इस कानून का गलत इस्तेमाल करती है। इसी आधार पर देश में पहली बार इस कानून को लेकर नाज फाउंडेशन इंडिया ट्रस्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में 2001 में एक जनहित याचिका भी दायर की थी जिस पर हाल में आए फैसले के बाद यह मुद्दा गर्माया है। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है। भारत में यह कानून अभी मौजूद है, लेकिन इंग्लैंड में ऐसा कानून समाप्त किया जा चुका है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com