April 26, 2024

समलैंगिकता अपराध है या नहीं: सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, 2013 में समलैंगिकता को कोर्ट ने माना था अपराध

सु्प्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में दोबारा शामिल करने के फैसले को चुनौती वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित करने का केंद्र का अनुरोध ठुकरा दिया। अब इस मामले पर आज (मंगलवार) से सुनवाई शुरू होगी। 

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने सुनवाई टालने से इनकार कर दिया। केंद्र सरकार ने समलैंगिक संबंधों पर जनहित याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त देने का अनुरोध किया था। पीठ ने कहा, इसे स्थगित नहीं किया जाएगा।
 
नए सिरे से पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को आज से चार महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई शुरू करनी है जिनमें समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंधों का मुद्दा भी है। उच्चतम न्यायालय ने 2013 में समलैंगिक वयस्कों के बीच संबंधों को अपराध की श्रेणी में बहाल किया था। 
न्यायालय ने समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 2009 के फैसले को रद्द कर दिया था। 

इसके बाद पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गईं और उनके खारिज होने पर प्रभावित पक्षों ने मूल फैसले के पुन: अध्ययन के लिए सुधारात्मक याचिकाएं दाखिल की थीं। सुधारात्मक याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान अर्जी दाखिल की गई कि खुली अदालत में सुनवाई होनी चाहिए जिस पर शीर्ष अदालत राजी हो गया। इसके बाद धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के लिए कई रिट याचिकाएं दाखिल की गईं।

किन लोगों ने दायर की है याचिका
 
नवतेज सिंह जौहर, सुनील मेहरा, अमन नाथ, रितू डालमिया और आयशा कपूर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर समलैंगिकों के संबंध बनाने पर IPC 377 के कार्रवाई के अपने फैसले पर विचार करने की मांग की है। उनका कहना है कि इसकी वजह से वो डर में जी रहे हैं और ये उनके अधिकारों का हनन करता है। इसके अलावा एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए मुंबई के गैर सरकारी संगठन हमसफर ट्रस्ट की भी याचिका शामिल है।

2013 में समलैंगिकता को कोर्ट ने माना था अपराध

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था। 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था। इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर, डी वाय चंद्रचूड़, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच कर रही है।

क्या है धारा 377

आईपीसी की धारा 377 के अनुसार यदि कोई वयस्‍क स्वेच्छा से किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करता है तो, वह आजीवन कारावास या 10 वर्ष और जुर्माने से भी दंडित हो सकता है। 


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