April 26, 2024

औरतों के लिए वेश्यावृत्ति की तरह है हलाला-तनवीर हैदर उस्मानी,अध्यक्ष,राज्य अल्पसंख्यक आयोग

राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष तनवीर हैदर उस्मानी का कहना है कि तीन तलाक और हलाला किसी कुरीति से कम नहीं है। खासकर हलाला औरतों के लिए वेश्यावृत्ति की तरह है। इसमें शरीयत के नाम पर महिलाओं से जबरन वेश्यावृत्ति कराई जा रही है।

मालूम हो कि कभी ससुर, देवर तो कभी मौलवी के साथ हलाला का दर्द सह चुकी महिलाएं इंसाफ की आस में बुधवार को राज्य अल्पसंख्यक आयोग पहुंची। बरेली की स्वयं सेवी संस्था की फरहत नकवी व तीन तलाक पीड़ित निदा खान समेत आधा दर्जन महिलाओं ने आयोग के अध्यक्ष तनवीर हैदर उस्मानी को हलफनामा देकर इन कुरितियों को खत्म करने की मांग की। 

तीन तलाक और हलाला पीड़िताओं की आपबीती सुनकर अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष तनवीर हैदर उस्मानी ने कहा कि हैरान करने वाली बात ये है कि औरतों के इस पीड़ा पर मुस्लिम धर्म गुरुओं से लेकर मुस्लिम संगठन खामोश हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाएं बेकार साबित हो रही हैं। इन महिलाओं के केस से जुड़ी एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इसको मुख्यमंत्री के सामने प्रस्तुत किया जाएगा। ताकि इनको इंसाफ मिल सके। साथ ही तीन तलाक पर जल्द बिल पास करने के लिए सरकार को भी पत्र लिखा जाएगा। इस मौके पर अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य कुंवर इकबाल, सोफिया अहमद, सुख दर्शन सिंह बेदी, सरदार परविंदर सिंह, मनोज कुमार मसीह मौजूद रहे। 

पहले सुसर फिर देवर के साथ हलाला की शर्त
तीन तलाक का दर्द पहले से क्या कम था कि हलाला के जख्म ने महिलाओं को तोड़ना शुरू कर दिया है। कभी ससुर, देवर तो कभी मौलवी के साथ हलाला का दर्द सह चुकी महिलाएं इंसाफ की आस में बुधवार को राज्य अल्पसंख्यक आयोग पहुंची। बरेली की पीड़िताओं ने आयोग के समक्ष आपबीती सुनाई

एक पति दो बार दी तीन तलाक 
आयोग के सामने शबीना ने बताया कि मेरी शादी 2009 में बरेली में हुई थी। मामूली बात को लेकर पति ने 2011 में मुझे तीन तलाक दे दिया। सुलह के बाद पति मुझे रखने को तैयार हो गया लेकिन शर्त रखी गई के पहले ससुर जलील हुसैन के साथ हलाला करो। हलाला के बाद मुझे मेरे पति ने 5 साल साथ रखा और फिर तलाक दे दिया। अब साथ रखने के लिए देवर से हलाला करने का दबाव बनाया जा रहा है। अपना दर्द बयां करते-करते बरेली की शबीना की आंखे भर आईं। शबीना का कहना है कि जो दर्द वह सह रही हैं। उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। सरकार अगर इन महिलाओं के दर्द के प्रति गंभीर है तो तीन तलाक से जुड़ा बिल जल्द से जल्द पास करें। 

बेटियां हुई तो दे दिया तलाक 
बरेली की बेबी अफरोज बताती हैं कि उनकी शादी 2010 में हारुन के साथ हुई थी। शादी के बाद उनको एक बेटी हुई तो परिवारवालों के मुंह बन गए। कुछ साल जब दूसरी बेटी हुई तो मानो जुल्म के पहाड़ टूट पड़े। मारपीट की घटना रोज की बात हो गई। 2016 में मेरे पति ने मुझे तीन तलाक दे दी। परिवारजन बीच में पड़े तो वह मुझे रखने को तैयार हो गया लेकिन पति ने एक शर्त रख दी कि पहले मुझे अपने ससुर बदरुद्दीन के साथ हलाला करना पड़ेगा। अफरोज पति की शर्त के आगे नहीं झुकी। उन्होंने पुलिस केस कर दिया। इसके बाद भी उनको इंसाफ नहीं मिला। 

घर में बेटी की लाश पिता ने कर ली दूसरी शादी
बरेली से आई रहीमा खातून का दर्द उनके आंसू ही बयान कर दे रहे थे। बेटी की मौत और तीन तलाक के जख्म ने उनको पूरी तरह से तोड़ दिया था। रहीमा बताती है कि मेरे पति ने अपनी बेटी का जनाजा उठने का इंतजार भी नहीं किया और मुझे तीन तलाक देकर दूसरी शादी कर ली। रहीमा ने बताया कि उनकी एक साल की बेटी कैंसर से पीड़ित थी। पति ने इलाज में मदद करने से इंकार कर दिया। उसको खून चढ़वाने के पैसों के लिए भी मुझे मिन्नतें करना पड़ती थी। हद तो यह हो गई कि जिस दिन बेटी की मौत हुई। उसी दिन मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली। इंसाफ के लिए पुलिस प्रशासन सबके चक्कर लगाए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। 

तीन साल की शादी में हुआ तलाक
पंजाब की रहने वाली रंजीता कौर का इस्लाम धर्म की ओर रूझान बढ़ा तो उन्होंने इस्लाम धर्म कुबूल कर अपने दो बच्चों के साथ बरेली में रहना शुरू कर दिया। 2001 में उन्होंने बरेली के ही एक युवक से शादी कर ली लेकिन उनकी शादी तीन साल भी नहीं टिक पाई। दहेज की प्रताड़ना के बाद उनके पति ने 2004 में तीन तलाक दे दिया। बुधवार को वह भी अल्पसंख्यक आयोग पहुंची और इंसाफ दिलाए जाने की मांग उठाई। 

राजनीति पार्टी ज्वाइन करना फिलहाल चर्चा, लेकिन इंकार नहीं-निदा खान

बरेली के आला हजरत खानदान की बहू व तीन तलाक पीड़ित निदा खान बुधवार को कई पीड़िताओं के साथ राज्य अल्पसंख्यक आयोग पहुंची। निदा ने बताया कि दो साल से वह इस लड़ाई को लड़ रही है। पति को सलाखों को पीछे पहुंचाना ही मेरा मकसद है। इंसाफ मिलने में देर जरुर लग रही है लेकिन पूरी उम्मीद है कि इंसाफ जरुर मिलेगा। वहीं, निदा खान के राजनीति में जाने की चर्चाएं जोरों पर है।  निदा ने कहा कि फिलहाल ये एक चर्चा ही है लेकिन उन्होंने इससे इंकार भी नहीं किया। उनका कहना है कि वह केन्द्रीय स्तर की राजनीति का हिस्सा बनना चाहेंगी। 

राजनीति में कदम रख कर इंसाफ दिलाना होगा आसान
राजनीति पार्टी में शामिल होने को लेकर निदा कहती है कि अभी इस बारे में नहीं सोचा है लेकिन राजनीति में जाकर तीन तलाक व हलाला पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलाने में काफी मदद हो सकती है। राजनीति में जाने को लेकर अभी कोई विचार नहीं किया।


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