एनडीए को बड़ा झटका, टीडीपी ने समर्थन वापस लिया, आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने से थी नाराज
राजनीतिक क्षेत्र से बड़ी खबर सामने आ रही है। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने से लगातार नाराज चल रही तेलुगू देसम पार्टी (टीडीपी) ने एनडीए से नाता तोड़ दिया है। इस मांग को लेकर पिछले कई दिनों से टीडीपी संसद भवन में भी विरोध-प्रदर्शन कर रही थी। पार्टी लगातार आरोप लगा रही थी कि भाजपा ने अपना वादा पूरा नहीं किया।
टीडीपी पोलित ब्यूरो ने आज सुबह पार्टी के प्रमुख व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के साथ एक टेली कॉन्फ्रेंस के दौरान यह फैसला लिया। जबकि पहले आज शाम होने वाली बैठक में इस पर तय किया जाना था। मगर सुबह ही पार्टी नेताओं के साथ नायडू की नियमित टेली-कॉन्फ्रेंस में ही सारी औपचारिकता पूरी कर ली गई। टीडीपी की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और एनडीए के दूसरे घटकों को पत्र लिखकर अपने फैसले की जानकारी देगी और इस फैसले के पीछे की वजह भी बताएगी।
संसद में अविश्वास प्रस्ताव
टीडीपी की नाराजगी को देखते हुए इस बात का पहले से अंदेशा था कि वह एनडीए से अलग होने का फैसला ले सकती है और आखिरकार वही हुआ। इस बीच, टीडीपी सांसद थोटा नरसिम्हन का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है हमारी पार्टी आज संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगी। हमने फैसला कर लिया है। हम एनडीए से बाहर हो गए हैं।
मंत्रियों ने दिया था इस्तीफा
लंबे समय से चली आ रही इस तनातनी में हाल ही में उस वक्त एक नया मोड़ देखने को मिला था, जब टीडीपी प्रमुख व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार से अपने दो मंत्रियों को हटाने का एलान किया था। वहीं इस पर भाजपा का भी कड़ा रुख देखने को मिला था। आंध्र प्रदेश में भाजपा मंत्रियों ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया था।
नायडू की थी ये नाराजगी
नायडू का कहना था कि भाजपा के साथ गठबंधन इसलिए किया गया था, ताकि आंध्र प्रदेश को न्याय मिल सके, लेकिन ऐसा हो न सका। इस सिलसिले में मुख्यमंत्री नायडू दर्जनों बार दिल्ली में प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों से मिले। फिर भी उनके अनुरोध पर गौर नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश को अवैज्ञानिक तरीके से बांटा गया था। इससे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। चार साल से राज्य के लोग अपने साथ इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन बजट में भी आंध्र प्रदेश को फंड नहीं दिए गए।
विशेष राज्य का दर्जा संभव नहीं
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा कई कारणों से संभव नहीं है। एक तो 14वें वित्त आयोग ने विशेष राज्य के दर्जे का प्रावधान ही खत्म कर दिया है। दूसरे इसके लिए नियमों में व्यापक बदलाव करने पड़ेंगे। अगर नियमों में बदलाव कर भी दिया गया तो बिहार, झारखंड जैसे अन्य राज्य भी इसी तरह की मांग शुरू कर देंगे। इसलिए मोदी सरकार टीडीपी की मांग के आगे किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं है। फिलहाल देश में मेघालय, असम, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, उत्तराखंड समेत कुल 11 राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त है।
आंध्र में भी सियासत गरमाई
लोकसभा के साथ ही होने वाले आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए टीडीपी और वाइएसआर कांग्रेस के बीच भी शह-मात का खेल जारी है। एक तरफ टीडीपी ने एनडीए बाहर होने का फैसला कर लिया है तो वहीं वाइएसआर कांग्रेस ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का दांव चल दिया है।
ध्यान रहे कि अविश्वास प्रस्ताव पेश करने और उसे स्वीकार करने के लिए लोकसभा के कम से कम 50 सदस्यों का हस्ताक्षर जरूरी होता है। खुद वाइएसआर कांग्रेस पास नौ सदस्य हैं और श्रेय लेने की होड़ में अगर टीडीपी भी शामिल हो जाए तो उसके 16 सदस्यों के साथ केवल 25 का अंक प्राप्त होगा। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, अन्नाद्रमुक जैसे बड़े विपक्षी दलों को अहसास है कि आंध्र की अंदरूनी राजनीति में उलझना उनके लिए फायदेमंद नहीं है। ऐसे में इसका पेश होना बहुत मुश्किल है।