March 29, 2024

उत्तराखंड का हर नागरिक पशुओं का अभिभावक: हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने राज्य में हवा, पानी और धरती पर रहने वाले सभी जीवों को विधिक अस्तित्व का दर्जा देते हुए उत्तराखंड के समस्त नागरिकों को उनका संरक्षक भी घोषित किया है। वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने पर्यावरण प्रदूषण, नदियों के सिकुड़ने इत्यादि कारणों से लुप्त हो रही प्राणियों और वनस्पतियों की जैव विविधता पर भी चिंता जताई। 

बनबसा चंपावत निवासी नारायण दत्त भट्ट ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में बनबसा से नेपाल के महेंद्रनगर की 14 किमी की दूरी में चलने वाले घोड़ा बुग्गी, तांगा, भैंसा गाड़ियों का जिक्र करते हुए इन जानवरों के स्वास्थ्य परीक्षण, टीकाकरण आदि की अपील की गई थी। इसके अलावा, याची ने इन बुग्गियों और तांगों से यातायात प्रभावित होने और इनके जरिये अवैध हथियारों, ड्रग्स और मानव तस्करी की आशंका जताई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि भारत-नेपाल सीमा पर इनकी जांच नहीं की जाती है। भारत-नेपाल सहयोग संधि 1991 के प्रावधानों का उल्लंघन किया जा रहा है। जनहित याचिका पर 13 जून को हुई सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। 

बुधवार को जारी फैसले में कोर्ट ने जानवरों की सुरक्षा और संरक्षण को ध्यान में रखते हुए समस्त जीवों को विधिक व्यक्ति का दर्जा देते हुए उन्हें मनुष्य की तरह अधिकार, कर्तव्य और जिम्मेदारियां देते हुए लोगों को उनका संरक्षक घोषित किया है। खंडपीठ ने नगर पंचायत बनबसा को निर्देश दिए हैं कि वे नेपाल से भारत आने वाले घोड़ों और खच्चरों का परीक्षण करें और सीमा पर एक पशु चिकित्सा केंद्र खोलें। साथ ही पंतनगर विवि के कुलपति को निर्देश दिए हैं कि पशुपालन विभाग के किसी उच्चाधिकारी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाने के निर्देश दिए। इस कमेटी में विवि के दो प्रोफेसरों को सदस्य बनाने को कहा है। यह कमेटी पशुओं द्वारा खींची जाने वाली गड़ियों में वजन के संबंध में निर्धारित सीमा की जांच कर बताएगी कि यह उचित है या नहीं। अदालत ने कहा है कि कुलपति मुख्य सचिव को रिपोर्ट भेजें, जो जरूरत पड़ने पर अधिनियम में संशोधन कर वजन की सीमा कम करें।
 

पशुओं के वजन से अधिक वजन के भार न ढुलवाए जाएं

कोर्ट ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि पशुओं के वजन से अधिक वजन के भार न ढुलवाए जाएं। कोर्ट ने जानवरों के माध्यम से ले जाने वाले भार को भी तय कर दिया है। कोर्ट ने जानवरों से 37 डिग्री से अधिक व 5 डिग्री से कम तापमान में काम न लेने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने तांगा, बैलगाड़ियों सहित उनमें जोते गए पशुओं पर भी रेडियम रिफ्लेक्टर लगाने के निर्देश दिए। नगर पालिकाओं को कहा है कि वे पशुओं के लिए शेल्टर बनाएं। कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को भी निर्देश दिए हैं कि वे यह सुनिश्चित कराएं कि जानवरों से तय वजन से अधिक न भार न ढोया जाए। कोर्ट ने पशु चिकित्सकों को बीमार जानवरों का इलाज करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि यदि जानवर को चिकित्सक के पास नहीं लाया जा सके तो चिकित्सक जानवर के पास जाएं। 

हाईकोर्ट के निर्देश 
प्रदेश के समस्त पशु, पक्षी, जलीय प्राणियों का हो विधिक अस्तित्व, मनुष्यों की भांति उनके भी अधिकार, प्रदेश का हर नागरिक पशुओं का अभिभावक घोषित। 
सड़कों में वाहन चालक पहले बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी इत्यादि को देंगे रास्ता, नहीं बाधित होगी उनकी राह। 
काम लिए जाने वाले पशुओं को हर दो घंटे में पानी, चार घंटे में भोजन देना आवश्यक, एक बार में 2 घंटे से ज्यादा पैदल चलाने पर रोक। 
पशुओं के स्वास्थ्य, भोजन, इलाज के साथ ही उनकी भावनाओं और संवेदनाओं का ध्यान रखना आवश्यक। 
बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी के आगे, पीछे व खींचने वाले पशु के शरीर पर रेडियम का कवर लगाना आवश्यक। 
किसी वाहन में 6 से अधिक पशु न लादे जाएं, साथ में एक अटेंडेंट व फर्श पर मैटिंग आवश्यक। 
पशुओं को हांकने के लिए चाबुक, नुकीली खूंटी, डंडे सहित किसी भी प्रकार की अन्य उत्पीड़क विधि पर रोक। 
पशुओं के नाक, मुंह में लगाम लगाने पर रोक, केवल रस्सी से गर्दन बांधने की अनुमति। रस्सी का मुलायम होना आवश्यक। 
बनबसा से नेपाल तथा नेपाल से बनबसा के मध्य चलने वाली घोड़ागाड़ी के घोड़ों के स्वास्थ्य की नियमित जांच हो व प्रमाणपत्र जारी हों। 

कोर्ट ने निर्धारित की पशुओं द्वारा भार ढोने की सीमा 
छोटा बैल या भैंसा 75 किलो, मध्यम बैल या भैंसा 100 किलो, बड़ा बैल या भैंसा 125 किलो, टट्टृ 50 किलो, खच्चर 35 किलो, गधा 150 किलो, ऊंट 200 किलो। कोर्ट ने कहा कि मार्ग में चढ़ाई या ढलान होने पर यह सीमा इसकी आधी मानी जाय। हाईकोर्ट ने जैन धर्म, महात्मा गांधी, दलाई लामा, उपनिषदों सहित विभिन्न लेखकों के उदाहरण देते हुए कहा कि इन सभी ने पशुओं के प्रति दयालुता और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार पर बहुत जोर दिया है। भारतीय परंपरा में तमाम पशुओं को देवताओं से जोड़ा गया है। इंसानियत का एक पैमाना यह भी है कि पशुओं से अच्छा व्यवहार हो। हाईकोर्ट ने कहा है कि बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी आदि में कोई यांत्रिक व्यवस्था नहीं होती और वे तेजी से मुड़ नहीं सकते इसलिए ट्रैफिक में उनका वे ऑफ राइट माना जाए और पहले उन्हें रास्ता दिया जाय।


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