March 29, 2024

चारा घोटाला : जानेें कब क्या हुअा

23 जून 1997 को हुआ था चार्जशीट
चारा घोटाला का मुकदमा 20 साल से चल रहा है। इस दौरान 23 का संयोग उनका पीछा नहीं छोड़ रहा। बात 20 साल पहले से शुरू करें तो चारा घोटाला में सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव व डॉ. जगन्नाथ मिश्रा सहित 55 आरोपियों के खिलाफ 23 जून 1997 को चार्जशीट दाखिल की थी।

घपले की पोल
बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपए की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए। रातों-रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई सौ कर्मचारी गिरफ्तार कर लिए गए, कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और राज्य भर में दर्जन भर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई, राज्य के विपक्षी दलों ने मांग उठाई कि घोटाले के आकार और राजनीतिक मिली-भगत को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई से कराई जाए। सीबीआई ने मामले की जांच की कमान संयुक्त निदेशक यूएन विश्वास को सौंपी और यहीं से जांच का रुख बदल गया।

व्यापक षड्यंत्र
सीबीआई का कहना रहा है कि ये सामान्य आर्थिक भ्रष्टाचार का नहीं बल्कि व्यापक षड्यंत्र का मामला है जिसमें राज्य के कर्मचारी, नेता और व्यापारी वर्ग समान रूप से भागीदार थे। मामला सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल तक सीमित नहीं रहा। इस सिलसिले में बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र को गिरफ्तार किया गया। राज्य के कई और मंत्री भी गिरफ़्तार किए गए।

एक अन्‍य मामले में 23 नवंबर 2006 को बहस पूरी हुई थी, लालू हुए थे बरी
चारा घोटाले से इतर आय से अधिक संपत्ति मामले में विशेष सीबीआई न्यायाधीश मुनि लाल पासवान ने 18 दिसंबर 2006 को लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मामले से बरी कर दिया था, जिसमें लालू पर उस समय आय के ज्ञात स्रोतों से 46 लाख रुपए अधिक की संपत्ति अर्जित करने का आरोप था, जब वह 1990 से 1997 के बीच मुख्यमंत्री थे। इस मामले में भी बहस 23 नंवबर को ही पूरी हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था झटका
झारखंड हाईकोर्ट ने नवंबर 2014 में लालू को राहत देते हुए उनपर लगे घोटाले की साजिश रचने और ठगी के आरोप हटा दिए थे। फैसले में कहा गया था कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार सजा नहीं दी जा सकती। इस फैसले को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए लालू पर आपराधिक केस चलाने की अनुमति दे दी थी। साथ ही नौ महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने का आदेश भी दिया था।


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