April 26, 2024

समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाए या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रैणी में रखा जाए या नहीं, इस पर भारत में बहस चल रही है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर आज सुनवाई करेगा। समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से बनाए जाने वाले शारीरिक संबंध सहित अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध के दायरे में लाने वाली आईपीसी की धारा 377 निरस्त करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में छह नई याचिकाएं दायर की गई हैं।

केंद्र को देना है जवाब

पिछली सुनवाई (23 अप्रैल) में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध बताए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया था। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने होटल कारोबारी केशव सूरी की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया। केन्द्र को एक सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया गया है।

पीठ ने कहा कि इस याचिका पर पहले से ही इस मामले पर तथा अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ विचार करेगी। सूरी ने अपनी याचिका में कहा है, ”भारतीय दंड संहिता की धारा 377 कानून की किताब में रहने के कारण अनेक वयस्क और परस्पर सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाने वाले एलजीबीटीक्यू (समलैंगिक, उभय लिंगी, ट्रांसजेन्डर और क्वीर) सदस्यों को झूठे मुकदमों की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है और कुछ तो वास्तव में इसका सामना कर रहे हैं”।

किन लोगों ने दायर की है याचिका

नवतेज सिंह जौहर, सुनील मेहरा, अमन नाथ, रितू डालमिया और आयशा कपूर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर समलैंगिकों के संबंध बनाने पर IPC 377 के कार्रवाई के अपने फैसले पर विचार करने की मांग की है। उनका कहना है कि इसकी वजह से वो डर में जी रहे हैं और ये उनके अधिकारों का हनन करता है। इसके अलावा एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए मुंबई के गैर सरकारी संगठन हमसफर ट्रस्ट की भी याचिका शामिल है।

2013 में समलैंगिकता को कोर्ट ने माना था अपराध

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था। 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था। इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर, डी वाय चंद्रचूड़, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच कर रही है।

क्या है धारा 377

आईपीसी की धारा 377 के अनुसार यदि कोई वयस्‍क स्वेच्छा से किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करता है तो, वह आजीवन कारावास या 10 वर्ष और जुर्माने से भी दंडित हो सकता है।


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