April 19, 2024

विश्व पर्यावरण दिवस: हिमालयी स्वर्गारोहिणी सतोपंथ झील का जलस्तर घटा, पर्यावरणविद बेहद चिंतित

समुद्रतल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित स्वर्गारोहिणी सतोपंथ झील का जलस्तर घट गया है।इसे कम बर्फबारी कहें या ग्लोबल वार्मिंग का असर, मई माह में जहां कम से कम बीस ग्लेशियर पार कर सतोपंथ पहुंचा जाता था, वहीं इस बार सतोपंथ तक ट्रैकर और पर्यटक आसानी से पहुंच रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही लोकल वार्मिंग का भी असर पड़ रहा है।

बदरीनाथ धाम से करीब 23 किलोमीटर दूर स्वर्गारोहिणी सतोपंथ झील स्थित है। बदरीनाथ की यात्रा शुरू होने पर जून माह के मध्य तक ट्रैकर और पर्यटक सतोपंथ झील तक पहुंच जाते हैं। पिछले वर्षों में सतोपंथ झील तक पहुंचने के लिए रास्ते में जमीं बर्फ और करीब बीस ग्लेशियरों को कठिनाई से पार करना पड़ता था, लेकिन इस वर्ष मई माह में ही सतोपंथ तक ट्रैकर, पर्यटक और तीर्थयात्री आसानी से पहुंचने लगे हैं। पिछले तीन-चार वर्षों में चमोली जिले के अन्य स्थानों पर भी बर्फबारी कम हुई है।

अब यह असर उच्च हिमालयी क्षेत्र में भी देखने को मिल रहा है। इस वर्ष सतोपंथ झील का जलस्तर भी बहुत कम हो गया है। पर्यावरणविद् इससे खासे चिंतित हैं।

भूमिगत जल और नदियों के जलस्तर में आई कमी

इस वर्ष उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी कम हुई है, जिससे भूमिगत जल और नदियों के जलस्तर में भी कमी आ गई है। सतोपंथ झील के जलस्तर में आई कमी को देखने के लिए गढ़वाल विश्वविद्यालय की टीम मौके पर भेजी जाएगी। तभी इसका सही आकलन किया जा सकता है।
 -डा. डीपी डोभाल, हिम वैज्ञानिक, वाडिया संस्थान, संस्थान 

ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही लोकल वार्मिंग से भी मौसम में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। सतोपंथ झील का जलस्तर घटना चिंता बढ़ाने वाला है। उच्च हिमालय क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ रहा है। पहले उच्च हिमालयी क्षेत्र के बुग्यालों में जहां जाना प्रतिबंधित था, आज वहां बिना रोक-टोक लोगों की आवाजाही हो रही है। बदरीनाथ में अस्सी के दशक में जहां प्रतिदिन करीब दस हजार यात्री पहुंचते थे, वहीं आज यहां हर रोज बीस से पच्चीस हजार यात्री पहुंच रहे हैं। दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा तो सीएनजी वाहन संचालित किए गए। ऐसे ही बदरीनाथ धाम में भी सीएनजी वाहनों का संचालन किया जाना चाहिए, ताकि प्रदूषण पर नियंत्रण रखा जा सके।
-चंडी प्रसाद भट्ट, पर्यावरणविद्, चमोली


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