ईवीएम पर सुप्रीम कोर्ट के बाद विपक्ष को चुनाव आयोग का भी झटका, कहा- ‘ऑल इज वेल’
लोकसभा चुनाव के नतीजों से पहले एक्जिट पोल आने के बाद घबराए विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट के बाद चुनाव आयोग से भी झटका लगा है। वीवीपैट के ईवीएम से 100 फीसदी मिलान की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बार फिर से खारिज कर दिया था, वहीं उत्तर प्रदेश में ईवीएम की सुरक्षा को लेकर विपक्ष की ओर से उठाए गए सवालों को भी चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया। इस दोहरे झटके के बाद विपक्ष अपने तरीकों से ईवीएम की सुरक्षा की कोशिश में लगा हुआ है।
उत्तर प्रदेश के चार जिलों में ईवीएम की सुरक्षा को लेकर विपक्ष की ओर से सवाल उठाए गए थे। चुनाव आयोग ने ईवीएम सुरक्षा को लेकर उठाए गए सवालों के जवाब में मंगलवार को साफ किया कि गाजीपुर, चंदौली, डुमरियागंज और झांसी में ईवीएम को लेकर जो विपक्ष की ओर से आरोप लगाए गए वो असल तथ्यों से परे है। जिन ईवीएम का मतदान में इस्तेमाल हुआ है वो पूरी तरह सुरक्षित हैं। दरअसल, मंगलवार को उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो वायरल कर दिए गए थे, जिसमें कथित रूप से ईवीएम हटाए जाने का दृश्य दिखाया गया था। इसे लेकर कुछ जगहों पर प्रदर्शन भी हुए थे।
केंद्रीय नियंत्रण कक्ष बना, सुनी जाएंगी शिकायतें
चुनाव आयोग ने विपक्ष से कहा कि ईवीएम सुरक्षित है और वे विश्वास बनाए रखें। साथ ही एक केंद्रीय स्तर पर एक कंट्रोल रूम भी बना दिया है जहां स्ट्रांगरूम की सुरक्षा से जुड़ी शिकायतें की जा सकेंगी। वहीं, आयोग ने लापरवाही के सभी आरोपों को निराधार करार दिया है। कहा कि सभी मामलों में ईवीएम और वीवीपैट को राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के सामने सील किया गया था और वीडियोग्राफी भी कराई गई थी। ऐसे में निराधार आरोप न लगाए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को ‘बकवास’ बताया
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में 100 फीसदी वीवीपैट पर्चियों की जांच किए जाने को लेकर डाली गई याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने याचिका को बकवास बताते हुए कहा कि ऐसी अर्जियों को बार-बार नहीं सुना जा सकता। चेन्नई के एनजीओ ‘टेक फॉर ऑल’ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि तकनीकी तौर पर वीवीपैट से जुड़ी ईवीएम नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर पहले ही मुख्य न्यायाधीश की बेंच फैसला दे चुकी है फिर अवकाश कालीन पीठ के सामने इस मामले को क्यों उठाया जा रहा है?याचिका को बकवास करार देते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि हम लोग जनप्रतिनिधियों के निर्वाचन के तरीके के बीच में नहीं आ सकते। कोर्ट की टिप्पणी थी कि देश को सरकार चुनने दिया जाए।