उत्तराखंड में उच्च शिक्षा का गजब हाल सूबे में 51 प्रतिशत कॉलेजों में प्रिंसिपल ही नहीं

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उत्तराखंड में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को लेकर शोध में ऐसा खुलासा हुआ है कि पढ़कर हैरान रह जाएंगे।

उत्तराखंड में उच्च शिक्षा का गजब हाल है। प्रदेश में हर गली-मोहल्ले तक विश्वविद्यालय और कॉलेज होने के बावजूद केवल 18 प्रतिशत संस्थान ही ऐसे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) से प्रमाणन मिला है। वहीं, सूबे में 51 प्रतिशत कॉलेजों में प्रिंसिपल ही नहीं हैं तो शिक्षकों के 44 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं।

ऐसे में यहां गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा की बात करना बेमानी है। श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.उदय सिंह रावत की बीते दिनों आई शोध रिपोर्ट में यह बातें सामने आई हैं। यह रिपोर्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी ने प्रकाशित की है

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में प्रिंसिपल के 51, शिक्षकों के 44 और नॉन टीचिंग के 29 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं।
-गुणवत्ता के पैमाने के तौर पर केवल 18 प्रतिशत संस्थानों के पास ही नैक का सर्टिफिकेट है।
-प्रदेश में शिक्षकों की क्लासरूम परफॉर्मेंस आंकने के लिए कोई फीडबैक सिस्टम नहीं बना है।
-वर्ष 2000 से 2016 तक प्रदेश में सरकारी कॉलेजों की संख्या 34 से बढ़कर 99 पर पहुंच गई।

-इनमें से 78 कॉलेज पर्वतीय क्षेत्रों में हैं, लेकिन सुविधाएं नहीं होने के कारण छात्र परेशान हैं।
-179 सेल्फ फाइनेंस कॉलेज प्रदेश में मौजूद हैं, लेकिन सभी केवल मैदानी जिलों में प्रोफेशनल एजुकेशन दे रहे हैं। चुनिंदा सरकारी कॉलेजों में प्रोफेशनल एजुकेशन की व्यवस्था है।
-वर्ष 2010 से छह साल के भीतर प्रदेश में विश्वविद्यालयों की संख्या 18 से बढ़कर 28 हो गई।
-राष्ट्रीय औसत के मुकाबले यहां जनरल, एससी, एसटी वर्ग के युवाओं का उच्च शिक्षा में दाखिला लेने का प्रतिशत कहीं ज्यादा है।
-चिंताजनक बात यह भी है कि हर साल लाखों की संख्या में यूजी करने के बाद छात्रों का पीजी तक पहुंचने का प्रतिशत महज 11.55 है। इन पीजी वालों में से पीएचडी में पहुंचने वालों का प्रतिशत 0.78, एमफिल में जाने का प्रतिशत 0.01 है।

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