एयर इंडिया जैसी MTNL की भी हालत? मोदी कर रहे देश भक्ति और मैकिंग इंडिया की बात
देश में युवाओं और वोटरों को लुभाने के लिए मोदी सरकार जरूर देश भक्ति की बात कर रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। देश की जिन कंपनियों का नाम नवरत्र की श्रेणी में आता था आज वही कंपनियां बद होने की कगार पर है। हालात यह है कि इन कंपनियों का मुनाफा तो दूर सैलरी देने के भी लाले पड गये है। देश के प्रधानमंत्री एक और मैकिंग इंडिया का नारा दे रहे है तो दूसरी और देश की सरकारी कंपनी दम तौडने को मजबूर है। ताजा मामला महानगर टेलिफोन निगम लिमिटेड (MTNL) कभी केंद्र सरकार की नवरत्न कंपनी थी, लेकिन अब इसके पास कर्मचारियों को सैलरी देने तक के पैसे नहीं हैं। आर्थिक तंगी की वजह से MTNL कर्मचारियों की नवंबर महीने की सैलरी अटक गई है। मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के अंत तक MTNL का कुल कर्ज बढ़कर 19 हजार करोड़ रुपये हो गया है। दूसरी तिमाही में 859 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है, जबकि इस साल 31 मार्च तक संचित घाटा 2,936 करोड़ रुपये था।
- मौजूदा वित्त वर्ष (2018-19) की दूसरी तिमाही में कंपनी को 859 करोड़ रुपये का घाटा
- एयर इंडिया की तरह कर्ज के बोझ तले दब चुकी है कभी नवरत्न में शामिल कंपनी
- MTNL को हर महीने 200 करोड़ रुपये कर्मचारियों की सैलरी पर खर्च करना होता है
- प्राइवेट टेलिकॉम कंपनियों के उत्थान के साथ MTNL का सिमटता गया कारोबार
टेलिकॉम कंपनी की हालत काफी हद तक एयर इंडिया जैसी हो गई है, जिस पर 52 हजार करोड़ रुपये कर्ज का बोझ है। एयर इंडिया को भी अपने कर्मचारियों को मई और जुलाई की सैलरी देने में संघर्ष करना पड़ा। जुलाई की सैलरी अगस्त के दूसरे सप्ताह में मिली, जब इसे केंद्र की ओर से 980 करोड़ रुपये का फंड मिला।
MTNL के डेप्युटी जनरल मैनेजर, बैंकिंग और बजट, ने 28 नवंबर को मुंबई और दिल्ली सर्कल के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर्स को लिखा, ‘फंड की कमी की वजह से, बैंकों को नवंबर 2018 की सैलरी जारी करने को नहीं कहा गया है।’ MTNL में अनुत्पादक कर्मचारियों की संख्या बहुत अधिक है। राजस्व का 92.2 फीसदी हिस्सा कर्मचारियों की सैलरी पर ही खर्च हो जाता है। MTNL के पास कुल 45 हजार कर्मचारी हैं। इसमें से 20,000 मुंबई में हैं। इसका मासिक सैलरी बिल 200 करोड़ रुपये है। MTNL के ऑडिटर्स का कहना है कि कंपनी का नेट वर्थ पूरी तरह खत्म हो चुका है। कंपनी का राजस्व 2004 में 4,921.55 करोड़ रुपये था जो मार्च 2018 में गिरकर 2,371.91 करोड़ रुपये रह गया है।
क्यों हुई यह हालत?
MTNL की स्थिति प्राइवेट कंपनियों के उत्थान के साथ बिगड़ती चली गई। ब्रोकरेज हाउस चॉइस ब्रोकिंग के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट राजनाथ यादव कहते हैं कि इसकी मुख्य वजह इसका रवैया है। जब प्राइवेट टेलिकॉम कंपनियां ग्राहकों को ढेरों ऑफर देकर और लेटेस्ट टेक्नॉलजी में निवेश के जरिए आक्रामक रूप से प्रसार कर रही थीं, तब MTNL ने कस्टमर बेस को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। वह कहते हैं कि जब ततक सरकार कैश नहीं देती, रणनीतिक निवेशक नहीं लाती या BSNL के साथ इसका मर्जर नहीं होता, स्थिति चिंताजनक ही रहेगी।