November 23, 2024

ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों को झटका, अब नहीं मिलेगा डिस्काउंट और कैशबैक

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अगर आप भी घरेलू और पर्सनल यूज की छोटी-छोटी चीजों के लिए ऑनलाइन शॉपिंग पर निर्भर रहते हैं तो देश में यह कारोबार पूरी तरह बदलने जा रहा है. सरकार की तरफ से लागू किए जाने वाले नए नियमों के बाद फ्लिपकार्ट (www.flipkart.com) और अमेजन (www.amazon.in) जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर एक्सक्लूसिव डील, कैशबैक और बंपर डिस्काउंट जैसे ऑफर खत्म हो जाएंगे. सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नियमों को सख्त कर दिया है.

छोटे कारोबारियों का गुस्सा शांत करने की कोशिश
नए नियम के अनुसार ई-कॉमर्स कंपनियां उन कंपनियों के प्रोडक्ट नहीं बेच पाएंगी जिनमें इनकी हिस्सेदारी है. सरकार ने ऑनलाइन बाजार का परिचालन करने वाले कंपनियों पर उत्पादों की कीमत प्रभावित कर सकने वाले अनुबंधों की रोक लगा दी है. इससे वे किसी इकाई के साथ उसके किसी प्रोडक्ट को केवल व केवल अपने प्लेटफॉर्म पर बेचने का अनुबंध नहीं कर सकेंगी. सरकार के इस फैसले से ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ ही ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले ग्राहकों को झटका लगा है. हालांकि सरकार ने अपने इस कदम से घरेलू कारोबारियों का गुस्सा शांत करने की कोशिश की है. छोटी कारोबारी हमेशा इन कंपनियों के काम करने के तरीके की शिकायत करते रहते थे.

1 फरवरी 2019 से लागू होगा नया नियम
मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स ने ऑनलाइन रिटेल बिजनेस में एफडीआई के बारे में संशोधित नीति में कहा कि इन कंपनियों को अपने सभी वेंडरों को बिना भेदभाव किए समान सेवाएं एवं सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी. मंत्रालय ने कहा संशोधित प्रवधान का लक्ष्य घरेलू कंपनियों को उन ई-कंपनियों से बचाना है जिनके पास एफडीआई के जरिये बड़ी पूंजी उपलब्ध है. संशोधित नीति 1 फरवरी 2019 से प्रभावी होगी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इस कदम से ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा कीमतों को प्रभावित करने पर पूरी तरह से लगाम लगेगी. इससे ई-कॉमर्स कंपनियों के मामले में एफडीआई दिशानिर्देशों का बेहतर क्रियान्वयन भी सुनिश्चित होगा.’

25 प्रतिशत प्रोडक्ट को ही ऑनलाइन मार्केट प्लेस से बेच सकेंगे
नए नियम के अनुसार, कोई भी वेंडर अधिकतम 25 प्रतिशत उत्पादों को ही किसी एक ऑनलाइन मार्केट प्लेस के जरिये बेच सकेंगे. मंत्रालय ने कहा, ‘यदि किसी वेंडर के 25 प्रतिशत से अधिक उत्पादों को किसी एक ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की कंपनी द्वारा खरीदा जाता है तो उक्त वेंडर के इंवेंटरी को संबंधित ई-कॉमर्स कंपनी द्वारा नियंत्रित माना जाएगा.’ उसने कहा, ‘ऐसी कोई भी इकाई जिनके ऊपर ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी का नियंत्रण हो या उनके भंडार में ई-कामर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी की हिस्सेदारी हो तो वह इकाई संबंधित ऑनलाइन मार्केटप्लेस (मंच) के जरिये अपने उत्पादों की बिक्री नहीं कर सकेंगी.’

अधिसूचना में यह भी कहा गया कि ई-कॉमर्स कंपनी किसी भी सेलर को अपना कोई उत्पाद सिर्फ अपने मंच के जरिये बेचने के लिये बाध्य नहीं कर सकती. ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या साझी हिस्सेदारी वाले वेंडरों को दी जाने वाली लॉजिस्टिक जैसी अन्य सेवाएं उचित तथा बगैर भेदभव के होनी चाहिए. इन सेवाओं में लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, विज्ञापन, विपणन, भुगतान और वित्त पोषण आदि शामिल हैं. मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा है, ‘मार्केट प्लेस की समूह कंपनियों द्वारा खरीदारों को दिये जाने वाले कैशबैक भेदभाव से रहित तथा उचित होने चाहिये.’

अधिसूचना में यह भी कहा गया कि इन कंपनियों को हर साल 30 सितंबर तक पिछले वित्त वर्ष के लिये दिशानिर्देशों के अनुपालन की पुष्टि को लेकर विधिवत नियुक्त अपने लेखा-परीक्षक की रिपोर्ट के साथ एक प्रमाण-पत्र रिजर्व बैंक के पास जमा कराना होगा. मंत्रालय ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं को भारी छूट दिये जाने के खिलाफ घरेलू कारोबारियों की आपत्तियों के मद्देनजर ये निर्णय लिये हैं. सरकार ने ई-वाणिज्य मंच का परिचालन करने वाली कंपनियों में शत प्रतिशत विदेशी हिस्सेदारी की छूट दे रखी है पर वे माल की इन्वेंट्री (खुद का स्टाक) बना कर उसकी बिक्री अपने मंच पर नियमत: नहीं कर सकतीं है.

स्नैपडील के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कुनाल बहल ने संशोधित नीति का स्वागत करते हुए ट्वीट किया, ‘मार्केटप्लेस ईमानदार एवं स्वतंत्र विक्रेताओं के लिए है जिनमें से अधिकांश एमएसएमई हैं. ये बदलाव सभी विक्रेताओं को बराबर मौके देंगे और उन्हें ई-कॉमर्स की पहुंच का फायदा उठाने में मदद मिलेगी.’ अमेजन इंडिया के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम परिपत्र का मूल्यांकन कर रहे हैं.’

एक अन्य ई-कॉमर्स कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस बदलाव से निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. खुदरा कारोबारियों के संगठन कैट ने कहा कि यदि इन बदलावों का ईमानदारी से क्रियान्वयन किया गया तो कुप्रथाएं और कीमतों को प्रभावित करने वाले कदम तथा ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा दी जाने वाली अतिरिक्त छूट आदि इतिहास की चीजें हो जाएंगी. कैट ने ई-कॉमर्स नीति लाने तथा क्षेत्र पर निगरानी के लिये एक नियामक बनाने की भी मांग की.


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