राजस्थान की 199 सीटों पर मतदान जहां कांग्रेस को सत्ता पाने की उम्मीद लेकर आया है, वहीं वसुंधरा राजे के चेहरे पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को अपने राजनीतिक कौशल से काफी उम्मीदें हैं। भाजपा के एक बड़े नेता का कहना है कि हर चुनाव में पार्टी की सत्ता बदलने वाले राजस्थान में पार्टी कमजोर पिच पर खेल रही थी, लेकिन मतदान की तारीख करीब आते-आते काफी कुछ बदल चुका है। नाम न छापने की शर्त पर सूत्र ने कहा कि 11 दिसंबर को सुकून भरा नतीजा आने की पूरी उम्मीद है। आइए डालते हैं कुछ समीकरणों पर नजर-
ब्राह्मण
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद को कौल, दत्तात्रेय ब्राह्मण बताया है। 7 फीसदी ब्राह्मण आबादी वाले राजस्थान में इसे मतदाताओं को लुभाने वाला कदम बताया जा रहा है। भाजपा के पूर्व नेता घनश्याम तिवाड़ी का भाजपा में अपमान भी कांग्रेस अपने हक में देख रही है। इसके अलावा पार्टी ने राजस्थान में ब्राह्मण नेताओं को मैदान में उतारा है। भाजपा ने भी इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। भाजपा के नेताओं को भी इस समाज से काफी उम्मीदें हैं। भाजपा नेता कौशलेन्द्र शर्मा के अनुसार ब्राह्मण का वोट हर चुनाव में बंटता है। इस बार भी बंटेगा, लेकिन फासदे में भाजपा रहेगी।
अन्य पिछड़ा वर्ग
गुर्जर, माली, जाट सब इसी वर्ग में आते हैं। माली समाज के अशोक गहलोत हैं। राज्य में माली पांच प्रतिशत हैं। इस समाज को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने अपने गणित बिठाए हैं। राजस्थान भाजपा अध्यक्ष मदन लाल सैनी ने भाजपा को बढ़त दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वहीं मिर्धा, मदेरणा ओला, सारण परिवार पुराना कांग्रेसी रहा है।
दलित और आदिवासी
राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटें हैं। राज्य में आबादी भी 18 फीसदी की है। इनमें से 2013 में 32 सीटें भाजपा के पास थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा को केवल 3.37 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि 2008 में छह फीसदी वोट के साथ छह सीटें जीतने में सफल रही थी। इस बार बसपा 197 सीट पर और अंबेडकर पार्टी ऑफ इंडिया 30 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि 34 में से 20 से अधिक सीटें उसके पाले में आएंगी। जबकि भाजपा के वीरम देव सिंह का कहना है कि दलित भाजपा की सरकार से खुश हैं। पार्टी अच्छी संख्या में सीटें जीतेगी।
मेवाड़ क्षेत्र में 16 सीटें आदिवासी प्रभाव वाली हैं। राज्य में अनुसूचित जनजाति के लोग 13 प्रतिशत के करीब हैं। इनपर पिछली बार भाजपा का दबदबा था। इस बार कांग्रेस ने भी उम्मीदों के पंख लगाए हैं।
जाट
राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजा रीम मील का कहना है कि पिछले चुनाव में जाट भाजपा के साथ थे। राजस्थान में 9 प्रतिशत के करीब जाट हैं। मील के अनुसार राज्य के अधिकतर जाट किसान हैं। जाटों को काफी उम्मीद थी, लेकिन किसान का भला नहीं हुआ। न ही आय दो गुनी हुई और न ही खर्चा घटा। उल्टे परेशानी बढ़ गई। इस बार भाजपा और कांग्रेस ने 33-33 जाट प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। मील के अनुसार राजस्थान में जाट करीब 100 सीटों पर असर डालते हैं। इसलिए जाट कांग्रेस और भाजपा में बंटेंगे। भाजपा के पंकज मीणा को उम्मीद है कि जाट भाजपा का ही साथ देंगे। वहीं जाट समाज से जुड़े नेताओं का कहना है कि इस बार कांग्रेस को जाटों का समर्थन मिल सकता है।
गुर्जर
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पालट गुर्जर समाज से आते हैं। राज्य में पांच प्रतिशत गुर्जर हैं। कांग्रेस को इस बार गुर्जरों से काफी उम्मीदें हैं। वहीं भाजपा ने गुर्जरों को अपने पाले में करने के लिए हर दांव चला है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गुर्जर प्रभाव वाली एक-एक सीट पर नाप-तौलकर प्रत्याशी उतारा है। हालांकि भाजपा के जयपुर के एक नेता मानते हैं कि गुर्जर आरक्षण के मुद्दे को लेकर भाजपा से थोड़ा नाराज चल रहे हैं।
मीणा
राजस्थान में अच्छी संख्या(सात फीसदी) में मीणा हैं। अनुसूचित जन जाति में आते हैं, चार प्रतिशत के करीब भील भी अनुसूचित जनजाति में आते हैं। मीणा समाज को अपने पक्ष में रखने के लिए वसुंधरा राजे किरोडी लाल मीणा को भाजपा के पाले में किया था। टिकट बंटवारे में भी किरोड़ी लाल मीणा के सुझाव को अहमियत दी गई। मीणा समाज वैसे भी राजस्थान में गुर्जर समाज से छत्तीस का आंकड़ा रखता है। भाजपा के नेता इसे जहां पार्टी के पक्ष में मान रहे हैं, वहीं कांग्रेस को अशोक गहलोत के मैदान में उतरने के बाद यह कोई बड़ा कारण नहीं नजर आ रहा है।
राजपूत और राजघराना
राजपूतों की पहली पसंद हमेशा से भाजपा रही है। राजपूत सभा, जयपुर के अध्यक्ष गिरिराज सिंह भी इसे तस्दीक करते हैं। राज्य में छह प्रतिशत राजपूतों की आबादी हैं। राजपूतों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी ने ही राजघराने के हाथ से रियासत खींची थी। लेकिन इतिहासकार प्रो. आरएस खंगारोत का मानना है कि इस बार राजपूत भ्रम में हैं। गिरिराज सिंह भी मानते हैं कि राजपूत बंट सकते हैं। कांग्रेस को लाभ मिल सकता है। हालांकि भाजपा ने 26 और कांग्रेस ने करीब एक दर्जन राजपूत प्रत्याशी उतारा है। भाजपा के पास पहले दिग्गज राजपूत नेता भी रहे हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत, जसवंत सिंह समेत अन्य। लेकिन शेखावत और जसवंत सिंह परिवार की उपेक्षा के कारण भाजपा को यह नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। लोकेन्द्र सिंह कालवी को भी लग रहा है कि कांग्रेस का पलड़ा भारी है। रावणा राजपूत भी भाजपा से नाराज हैं। राजघराने में जयपुर की दीया कुमारी को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। अंदरखाने से कहा जा रहा है कि वह विधायक दीयाकुमारी टिकट की इच्छुक थी, लेकिन वसुंधरा की नाराजगी के कारण नहीं पा सकी। कोटा राज घराने से राजेश्वरी राजलक्ष्मी भी भाजपा का टिकट नहीं पा सकी। हालांकि कोटा की कल्पना, बीकानेर की सिद्धी कुमारी भरतपुर राजघराने की कृषेन्द्र कौर दीपा और विश्वेन्द्र सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस का दामन थामने और वसुंधरा के खिलाफ चुनाव लडऩे से कांग्रेस की इस समाज में उम्मीदें बढ़ी है।
वैश्य
वैश्य समाज(चार प्रतिशत) अपने पत्ते नहीं खोल रहा है। इसको लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों को काफी उम्मीदें हैं। जयपुर के हेमजीत मालू कहते हैं कि नोटबंदी ने समाज को काफी तकलीफ पहुंचाई। जीएसटी को लागू करने के तरीके ने भी काफी असर डाला। अब धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आ रही है, लेकिन लोगों में भाजपा सरकार के प्रति नाराजगी है। इसलिए इस विधानसभा चुनाव में वोटों का बंटवारा होगा। इसमें कांग्रेस का पलड़ा भारी रह सकता है।
अल्पसंख्यक
राजस्थान में थोड़े से अल्पसंख्क हैं। सीमित सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं। भाजपा ने केवल वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे युनुस खान को टिकट दिया है। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के नेताओं ने हिन्दुत्व के एजेंडे को प्रमुखता दी। हालांकि कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। राहुल गांधी ने खुद को कश्मीर का कौल दत्तात्रेय ब्राह्मण तक बताया। अजमेर के मो. इदरीश का कहना है कि इस बार कांग्रेस की सरकार आने की संभावना अधिक है।
मेवाड़
मेवाड़ क्षेत्र में 28 सीटें आती हैं। राजस्थान के नेता मेवाड़ क्षेत्र में अब भीलवाड़ा को भी शामिल कर लेते हैं। इस आधार पर कुल 35 सीटें इस क्षेत्र से आती हैं। भीलवाड़ा को छोड़ दें तो उदयपुर, राजसमंद, चित्तोड़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा की कुल 28 सीटें हैं। इनमें से कांग्रेस के पास केवल दो सीटें थी। 2013 में एक निर्दल प्रत्याशी जीता था और 25 सीट भाजपा के खाते में गई थी। कांग्रेस को इस बार यहां बाजी पलटने की उम्मीद है। जबकि भाजपा का कहना है कि 11 दिसंबर तक का इंतजार कीजिए।