न नौकरी है न काम है, रामराज का ऐलान है

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बातें तो ऐसी थीं कि मानों देश विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। लेकिन रुपये-पैसे का हिसाब- किताब बता रहा है की रसातल में पहुंच गए हैं हम। विकास के नारों की दौड़ में 6 साल का हिसाब आया है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने देश को बताया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी 5 फीसदी के न्यूनतम स्तर पर आ गिरी। इसके पहले वाली तिमाही में जीडीपी फिर भी 5.8 फीसदी रही। पिछले 6 सालों में भारत की अर्थव्यवस्था इससे ज्यादा बुरे हाल में नहीं रही। और आगे सरकार लगातार कह ही रही है सब ठीक ठाक है।

ताजा आंकड़े बताते हैं कि कृषि विकास दर 2018-19 की पहली तिमाही के 5 फीसदी से घटकर 2 फीसदी पर आ पहुंची। मैन्यूफैक्चरिंग ग्रोथ 2018-19 के बाद 12 फीसदी से गिरकर 0.6 फीसदी रह गई है। और निर्माण विकास की दर 2018-19 की पहली तिमाही से 9.6 फीसदी से गिरकर 5.7 फीसदी रह गई। उधर कांग्रेस का कहना है कि ये तो आर्थिक आपातकाल है।

सैकड़ों कंपनियों में छटनी हो रही है। बैंको में दिवालियों की लाइनें लंबी होती जा रही हैं दुर्दशा ऐसी हो गई की सरकार को आरबीआई से पैसे निकालना पड़ा। डूबते बैंक नहीं संभल रहे। नतीजा 10 बैंकों का विलय करना पड़ा। लेकिन सवाल तो यही है 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनाने की जमीन कहां है।

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