भारतीय वायुसेना की बढ़ेगी ताकत, इसरो आज लांच करेगा जीसैट-7ए उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंगलवार को अपने संचार उपग्रह जीसैट-7ए को लांच करने का काउंटडाउन शुरू कर दिया है। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से मंगलवार दोपहर 2 बजकर 10 मिनट पर इसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई। बुधवार को शाम 4 बजकर 10 मिनट पर जीएसएलवी-एफ11 रॉकेट को लेकर लांच किया जाएगा। इसरो द्वारा निर्मित जीसैट-7ए का वजन 2,250 किलोग्राम है और यह मिशन आठ साल का होगा। इसरो ने मंगलवार को कहा कि मिशन रेडिनेस रिव्यू कमेटी और लांच ऑथराइजेशन बोर्ड ने काउंटडाउन शुरू कर दिया है।
जीएसएलवी-एफ11 की यह 13वीं उड़ान होगी और सातवीं बार यह स्वदेशी क्रायोनिक इंजन के साथ लांच होगा। यह कू-बैंड में संचार की सुविधा उपलब्ध करवाएगा। इसरो का यह 39वां संचार उपग्रह होगा और इसे खासकर भारतीय वायुसेना को बेहतर संचार सेवा देने के उद्देश्य से लांच किया जा रहा है।
जीसैट-7ए की खूबियां
प्रतीकात्मक तस्वीर- जीसैट-7ए वायुसेना के एयरबेस को इंटरलिंक करने के अलावा ड्रोन ऑपरेशंस में भी मदद करेगा। जानाकारी के लिए बता दें भारत अभी अमेरिका में बने हुए प्रीडेटर-बी या सी गार्डियन ड्रोन को हासिल करने की कोशिश कर रहा है। सैटेलाइट कंट्रोल के जरिए ये ड्रोन अधिक ऊंचाई पर दुश्मन पर हमला करने की क्षमता रखता है।
– 500-800 करोड़ रुपये की लगात में तैयार हुई इस सैटेलाइट में 4 सोलर पैनल लगाए गए हैं। जिनकी मदद से 3.3 किलोवाट बिजली पैदा की जा सकती है।
– इसके साथ ही इसमें कक्षा में आगे-पीछे जाने या ऊपर जाने के लिए बाई-प्रोपेलैंट का केमिकल प्रोपल्शन सिस्टम भी दिया गया है। इससे पहले इसरो ने जीसैट-7 सैटेलाइट को लांच किया था। इसे रुकमिणि के नाम से जाना जाता है।
– 29 सितंबर 2013 में लांच हुई यह सैटेलाइट नेवी के युद्धक जहाजों, पनडुब्बियों और वायुयानों को संचार की सुविधाएं प्रदान करती है। आने वाले समय में वायुसेना को जीसैट-7 सी मिलने के भी आसार हैं।
क्यों जरूरी हैं सैटेलाइट?
इस वक्त धरती के चारों ओर दुनियाभर की लगभग 320 मिलिटरी सैटेलाइट चक्कर काट रही हैं। जिनमें से अधिकतर अमेरिका की हैं। इसके बाद इस मामले में रूस और चीन का नंबर आता है।
इनमें से अधिकतर रिमोट-सेंसिंग हैं। ये धरती की निचली कक्षा में मौजूद रहकर धरती के चित्र लेने में मददगार होते हैं। वहीं निगरानी, संचार आदि के लिए कुछ सैटेलाइट को धरती की भू-स्थैतिक कक्षा में ही रखा जाता है। ये सैटेलाइट पाकिस्तान के खिलाफ भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक में भी मददगार साबित हुई थीं। चीन इस मामले में लगातार प्रगति करता जा रहा है, जिसके बाद भारत भी अब तैयार हो रहा है।