भारत के बैंकिंग क्षेत्र में सुधार, लेकिन आधार अभी भी कमजोर
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के संकेत दिख रहे हैं, लेकिन बुनियादी आधार में अभी भी कमजोरी बनी हुई है और इसे ‘स्वस्थ स्तर’ पर आने में अभी काफी समय लगेगा। यह बात डीबीएस ने अपनी एक रिपोर्ट में कही।
वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी डीबीएस ने अपनी रिपोर्ट में किया इसका जिक्र
वैश्विक स्तर की वित्तीय सेवा कंपनी डीबीएस के अनुसार हाल ही की दो तिमाही में भारतीय बैंकों की आय में सुधार दिखा है। उनकी परिसंपत्तियों की गुणवत्ता भी पहले से थोड़ी बेहतर हुई है। रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर बैंकों का सकल गैर-निष्पादित कर्ज (एनपीएल) में कमी आई है और नए गैर-निष्पादित कर्ज निचले स्तर पर बढ़ रहा है। कुछ बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता आने वाली तिमाहियों में और बेहतर होने की भी संभावना है।
भारतीय स्टेट बैंक और आईसीआईसीआई बैंक फिर से लाभ स्तर पर आए
सितंबर तिमाही में देश के दो प्रमुख बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और आईसीआईसीआई बैंक फिर से लाभ स्तर पर आ गए हैं, जबकि इससे पहले की तिमाहियों में वे नुकसान झेल रहे थे। कर्ज की कम लागत से बैंकों के मुनाफे को समर्थन मिला है। डीबीएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हमारे नमूनों में सकल एनपीएल का अनुपात 10 फीसदी से ऊपर बना हुआ है, जबकि उनका पूंजीकरण सिर्फ पर्याप्त स्तर (टियर 1 अनुपात 9 से 10 फीसदी) पर है। समयानुसार बैंकों में पूंजी डाल कर सरकार इस पर्याप्त स्तर को बनाए रखेगी।
बैंकों की आय में सुधार के साथ संपत्तियों की गुणवत्ता भी सुधरी
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि परिसंपत्ति गुणवत्ता के मुद्दों को बिना किसी असाधारण उपाय के हल करना संभव नहीं है, इसलिए यह मुद्दा लंबे समय तक चलने वाला मुद्दा है। डीबीएस ने हालांकि चेताया भी है कि एकबार सारी बेहतरीन गुणवत्ता वाली परिसंपत्ति की बिक्री के बाद हाल ही में दिख रहे दिवालियापन प्रस्तावों से सुधार की रफ्तार धीमी भी हो सकती है। भारतीय बैंक डॉलर बांड का मूल्यांकन अपेक्षाकृत महंगा ही रहेगा और मौजूदा स्तर से बहुत अधिक सुधार नहीं मुहैया कराएगा। बैंकों के बांड ने दूसरी तिमाही के परिणामों पर बैंकों के शेयरों की तरह प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की थी, जिनमें सुधार हुआ था। रिपोर्ट में कहा गया कि बांड का मूल्यांकन सरकार के स्वामित्व पर निर्भर करता है और मजबूत उद्योग से इसे सहारा मिलता है।