महिला कांस्टेबल के छेड़छाड़ में एएसपी के माफी मांगने पर बढ़ा बवाल
हरिद्वार में महिला कांस्टेबल के छेड़छाड़ प्रकरण में एएसपी परीक्षित कुमार के माफीनामे को लोगों ने सर्व खाप की पंचायताें के फैसलाें से जुदा नहीं माना है।लोगों का कहना है कि इस घटना ने बरसों पुरानी कबीलाई संस्कृति के अलावा पंचायतों के तुगलकी फरमानों की याद ताजा करा दी है। पंचायतों में ही माफी मांग लेने पर अपराध को रफा-दफा करने की परंपरा रही है। एएसपी के पीड़ित कांस्टेबल से माफी मांगने के बाद सीधे तौर पर अपराध की पुष्टि होती है।
ऐसे में अफसरों को खास तौर पर यौन उत्पीड़न आरोपी एएसपी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर संदेश देना चाहिए कि कानून से बड़ा कोई नहीं है। काफी तादाद में जागरूक पाठकों ने अमर उजाला को एसएमएस भेजकर पुलिस कार्रवाई को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है। पाठकाें द्वारा भेजे गए एसएमएस को हूबहू प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि जनमानस की भावना से पुलिस अधिकारी रूबरू हो सकें।
क्या कहती है जनता
भारत का कानून सभी के लिए एक समान है तो माफी मांगकर एएसपी ने अपना अपराध कबूल कर लिया है। यदि पुलिस विभाग इससे संतुष्ट हो गया है तो पुलिस को आगे थानों में आने वाले महिला उत्पीड़न के मामलों में एएसपी की माफी के आधार पर दूसरों के मामले भी निपटाने पडे़ंगे और माफी से काम चलता तो आसाराम, राम रहीम, रामपाल जैसे ऐसे अनेकों मामले है तो उन्हीं भी माफी मंगवाकर छोड़ दिया जाए। सरकार को अब कानून में भी एएसपी की माफी को नजीर बनाकर माफी वाले कानून को पास कर देना चाहिए।
-अब्दुल सत्तारआरटीआई कार्यकर्ता
इस कार्रवाई से बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूं। जिस एसपी ने महिला सिपाही से दुर्व्यवहार किया है। उसे ऐसी सजा दी जानी चाहिए थी कि बाकी अधिकारियाें के लिए नजीर बन सके। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के लिए बाकायदा कानून है, तब उसका का क्या ?।
– राजेश कुमार बुद्धिराजा
मेरा मानना यह है कि जो भी हुआ सही नहीं हुआ। कानून सबके लिए एक समान होना चाहिए। चाहे अधिकारी हो या आम नागरिक। आरोपी अधिकारी के केवल माफी मांगने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे तो फिर हर आरोपी गुनाह करने के बाद माफी मांगने लगा तो उसे कैसे पता चलेगा कि उसने जो अपराध किया है, उसकी सजा क्या है।
-अर्पित
यह न्याय नहीं है। अगर ऐसे ही होता है तो फिर शिकायत की क्या जरूरत है। अब बात सब के सामने है तो न्याय भी होना चाहिए। अपराध तो अपराध है। इस मामले में यदि कार्रवाई होती है तो आगे इस तरह की घटनाआें में कमी आएगी।
– प्रियंका
जिस पुलिस विभाग से लोगों की सुरक्षा, सम्मान और संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाती है। उसी विभाग की भीतरी संरचना के अधिकारी द्वारा महिला सिपाही के साथ अश्लील दुर्व्यवहार करना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण आरोपी को दोष मुक्त करार देना है। इससे समाज में यह संदेश जाएगा कि आरोपी बड़ा व्यक्ति या बड़ा अधिकारी हो तो वह सजा से बच निकलने में कामयाब हो जाता है। केवल माफी मांगकर कार्यवाही पूर्ण करना महिलाओं की सुरक्षा के लिए खिलवाड़ होगा।
– अनिरुद्ध पुरोहित
एएसपी परीक्षित कुमार पर दंडनीय कार्रवाई होनी चाहिए। मैं अमर उजाला के माध्यम से कहना चाहता हूं कि अगर कोई आरोपी जुर्म करता है तो केवल माफी मांग लेने पर छोड़ना न्यायोचित नहीं है।
-सुभाष रेड्डी
महिला कांस्टेबल के साथ इस तरह का उत्पीड़न पुलिस विभाग में शर्म की बात है। सवाल माफी मांगने का नहीं है। सवाल भारतीय दंड संहिता की धारा 354 का है। क्या पुलिस-प्रशासन के आला अधिकारी ऐसी घटनाओं में खुद को माफीनामे से निर्दोष साबित करते रहेंगे।
– आशीष कुमार कुकरेतीपीड़ित महिला कांस्टेबल पुलिस विभाग द्वारा बनाए गए दवाब के कारण ही अपने बयान से बदली है। पुलिस विभाग वर्दी के दाग को छुपाने में लगा है, ताकि पुलिस प्रशासन की छवि धूमिल ना हो सके। जब आला अधिकारी इस तरह से अपने विभाग में इस तरह की शर्मनाक हरकत करेंगे तो शहर में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों पर कैसे अंकुश लग पाएगा।
– आशीष कुमार
मित्र पुलिस के काले कारनामे प्रकाशित होने के बाद शिकायत करने वाली महिला कांस्टेबल के बदले स्वर और एएसपी द्वारा माफी मांगने का ढकोसला सब कुछ बयां कर रहा है। अगर निष्पक्ष जांच हो तो कई और चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं।
– राजीव ढौंडियाल
मैं माफीनामे से संतुष्ट नहीं हूं। मुझे लगता है कि अगर किसी ने गुनाह किया है तो उसे सजा मिलनी चाहिए। चाहे वो किसी भी पद पर बैठा अधिकारी हो या आम व्यक्ति। महिलाओं का सम्मान सर्वोच्च है।
– हर्ष सैनी
जब अधिकारी ने स्वयं अपराध स्वीकार कर लिया है तो विभाग को ऐसे अधिकारी की सेवा समाप्त कर देनी जानी चाहिए, क्योंकि उसके माफीनामे से अपराध की पुष्टि हो चुकी है। निश्चित रूप से पुलिस अफसरों को इस मामले में आरोपी अधिकारी खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
– रियल मिश्रा
क्या कहते है वरिष्ठ अधिवक्ता
अभी तक जो हुआ, वो कानून के दृष्टिकोण से गलती नहीं है। यदि वादिनी नहीं चाहती तो पुलिस अपने स्तर से वैधानिक कार्रवाई नहीं कर सकती है। पुलिस अधिकारी विभागीय कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। दूसरा पीड़िता व्यस्क है। वह अपने अच्छे और बुरे का निर्णय लेने में सक्षम है।
– आरएस राघव, वरिष्ठ अधिवक्ता
पुलिस एएसपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को तैयार है, लेकिन वह तभी हो सकता है जब पीड़िता या उसके परिजन सामने आए। जांच समिति के सामने पीड़िता ने किसी तरह की कार्रवाई से इंकार किया है। ऐसे में एएसपी परीक्षित कुमार के खिलाफ विभागीय कार्रवाई का विकल्प बचा है। जल्द ही एएसपी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
– अशोक कुमार, पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था