राफेल पर फैसला हैरत भरा, मगर ये ‘क्लीनचिट’ नहीं: सिन्हा, शौरी, भूषण
राफेल सौदे में विवादास्पद ढंग से 36 विमानों की खरीद के संबंध में अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग कर रहे याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अत्यंत दुखद और हैरत भरा बताया है। शुक्रवार शाम को जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आज रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर आश्चर्यजनक ढंग से अपनी ही न्यायिक समीक्षा के दायरे को छोटा कर लिया है।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को झूठी जानकारी देकर गुमराह किया है…
याचिकाकर्ता ने कहा, मोदी सरकार इस सौदे में भ्रष्टाचार के जिन आरोपों के संतोषजनक जवाब भी नहीं दे पा रही थी, अब उनकी स्वतंत्र जांच भी न हो तो यह गलत होगा।इस सौदे से जुड़े कई सवाल देशवासियों के सामने मौजूद हैं। ऐसे में तो उन सवालों के रहस्य से कभी पर्दा नहीं हटेगा। प्रशांत भूषण ने कहा, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को झूठी जानकारी देकर जिस तरह गुमराह किया है, वह देश के साथ एक धोखा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का एक आधार यह बताया गया कि केंद्र सरकार ने सीएजी से लड़ाकू विमान की कीमतें सांझा की हैं।
इसके बाद सीएजी ने पीएसी (लोकलेखा समिति) के पास रिपोर्ट जमा करा दी। पीएसी ने संसद के समक्ष राफेल सौदे की जानकारी दे दी है जो कि अब सार्वजनिक है। याचिकाकर्ता के मुताबिक, हमें यह नहीं पता कि सीएजी को कीमत का ब्यौरा मिला है या नहीं, लेकिन बाकी सारी बातें झूठ हैं। न ही सीएजी की तरफ से पीएसी को कोई रिपोर्ट दी गई है और न ही पीएसी ने ऐसे किसी दस्तावेज का हिस्सा संसद के समक्ष प्रस्तुत किया है। न ही राफेल सौदे के संबंध में ऐसी कोई सूचना या रिपोर्ट सार्वजनिक है। सबसे हैरत की बात है कि इन झूठे आधार पर देश की शीर्ष अदालत ने राफेल पर फैसला सुना दिया।
दो अलग अलग कम्पनियों का खेल…
प्रशांत भूषण और अरुण शौरी के अनुसार, ऑफसेट पर उठ रहे सवालों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय दस्सो एविएशन का था जो कि वर्ष 2012 से ही रिलायंस के चलते चर्चा में था। जबकि सच्चाई यह है कि जिस रिलायंस पर आज सवाल उठ रहे हैं वो अनिल अंबानी की कंपनी है और 2012 से जो दस्सो की चर्चा हो रही थी वो मुकेश अम्बानी की कम्पनी है। ये दोनों दो अलग अलग कंपनियां हैं और अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस तो 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा फ्रांस में राफेल सौदे की घोषणा के कुछ ही दिनों पहले गठित की गई थी। यानी, अनिल अंबानी की रिलायंस को ऑफसेट का फायदा पहुंचाने के मामले में भी अदालत को गुमराह किया गया।
उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत अपनी न्यायिक समीक्षा के दायरे को आधार बनाकर याचिका खारिज की है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे में सरकार को क्लीन चिट दे दी है। राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप देशवासियों को तब तक आंदोलित करते रहेंगे जब तक कि मामले में निष्पक्ष जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी न हो जाए।