रिश्वत दी तो 7 साल की सजा होगी,राष्ट्रपति की स्वीकृत के बाद नया भ्रष्टाचार रोधी कानून लागू
घूस देने वालों को अब सात साल तक जेल की सजा हो सकती है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की स्वीकृत के बाद नया भ्रष्टाचार रोधी कानून लागू हो गया।
कानून में जनसेवकों, नेताओं व बैंकरों को अभियोजन से ‘संरक्षण’ भी दिया गया है। अब, सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों के लिए उनके विरूद्ध जांच करने से पहले सक्षम प्राधिकार से मंजूरी लेना अनिवार्य होगा। भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम, 1988 के तहत कोई भी पुलिस अफसर किसी भी जनसेवक द्वारा किए ऐसे अपराध की पूर्व अनुमति के जांच नहीं कर सकता है, जिसका संबंध ऐसे जनसेवक द्वारा अपनी सरकारी जिम्मेदारी के निर्वहन के संबध में की गई सिफारिश या लिए गए निर्णय से हो। वैसे यह कानून यह भी कहता है कि जब किसी व्यक्ति को अपने या अन्य किसी के अनुचित लाभ केे लिए रिश्वत लेने या देने का प्रयास करने के आरोप में मौकेे पर ही गिरफ्तार किया जाता है तो ऐसे मामलों में मंजूरी लेना जरूरी नहीं। कानून के अनुसार यह संरक्षण सेवानिवृत जनसेवकों को भी मिलेगा।
केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने हाल ही में कहा था कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम में संशोधन से सुनिश्चित होगा कि जनसेवकों के नेक कार्यों की जांच नहीं होगी। उन्होंने कहा कि पहले इस कानून में अस्पष्ट व्याख्या के चलते जांच एजेंसियां पेशेवरपन छोड़ देती थीं और जांचकर्ता बस संदेह के आधार पर आरोपपत्र दायर कर देते थे। फलस्वरुप कई ईमानदार व्यक्तियों को परेशान किया गया लेकिन उनका दोष साबित नहीं हुआ। निर्णय लेने वाले नौकरशाहों की छवि खराब हुई और उनके अंदर डर बैठ गया। ऐसे में नौकरशाह जोखिम लेने के बजाय फैसला टाल देते थे और उसे अपने उत्तरवर्ती पर छोड़ देते थे।
संशोधित कानून के अनुसार जनसेवक को अनुचित लाभ देने या देने का वादा करने वाले व्यक्ति को सात साल तक कैद या जुर्माना हो सकता है या फिर दोनों हो सकते हैं। जिन व्यक्तियों को जबरन रिश्वत देनी पड़ती है उसे सात दिन के अंदर कानून प्रवर्तन प्राधिकार या जांच एजेंसी को मामले की रिपोर्ट करनी होगी। रिश्वत लेने वाले के लिए संशोधित कानून में न्यूनतम तीन साल और अधिकतम सात साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। इस कानून ने वाणिज्यिक संगठन को अपने दायरे में शामिल किया है।