रेप और मैरिटल रेप में क्या है अंतर, और क्या विवाद चल रहे हैं इसके अंर्तगत
रेप और मैरिटल रेप को लेकर कईं विवाद हुए। मैरिटल रेप पर जनहित याचिका ऋतु फ़ाउंडेशन और आॅल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमन एसोसिएशन ने दिल्ली हाई कोर्ट में दो साल पहले याचिका डाली थी। जिसके खिलाफ अनेक विरोध भी हुए।
वहीं ऋतु फाउंडेशन की अध्यक्ष चित्रा अवस्थी ने इस याचिका को डालने के पीछे की मंशा बताते हुुए कहा कि रेप की परिभाषा में शादीशुदा औरतों के साथ भेदभाव दिखता है। उनके तर्क है कि पति का पत्नि के साथ रेप परिभाषित कर इस पर क़ानून बनाया जाना चाहि। इसके लिए कई महिलाओं की आपबीती को उन्होंने अपनी याचिका का आधार बनाया हैं।
यह जनहित याचिका दो साल पहले दायर की गई थी, उस समय दिल्ली हाई कोर्ट पर यह टिप्पणी दी थी कि “पश्चिमी देशों में इसे अपराध माने जाने का ये मतलब नहीं कि भारत भी आंखे मूंदकर वही करे।”
वहीं हाल ही में दो साल बाद दिल्ली हाई कोर्ट का नया बयान आया है कि “शादी का ये मतलब बिल्कुल नहीं की बीवी सेक्स के लिए हमेशा तैयार बैठी है”
ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या फर्क है ‘रेप’ और ‘मैरिटल रेप’ में?
जानिए क्या है रेप?
किसी भी उम्र की महिला की मर्जी के खिलाफ या उसकी सहमति के बिना-उसके शरीर (वजाइना या एनस) में अपने शरीर का कोई अंग डालना रेप है। उसके निजी अंगों को पेनिट्रेशन के मकसद से नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना, रेप है। उसके मुंह में अपने निजी अंग का कोई भी हिस्सा डालना, रेप है, उसके साथ ओरल सेक्स करना, रेप है.
आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक, कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ नीचे लिखी परिस्थितियों में यौन संभोग करता है तो कहा जाएगा कि रेप किया गया.
1. महिला की इच्छा के विरुद्ध
2. महिला की मर्जी के बिना
3. महिला की मर्जी से, लेकिन ये सहमति उसे मौत या नुकसान पहुंचाने या उसके किसी करीबी व्यक्ति के साथ ऐसा करने का डर दिखाकर हासिल की गई हो।
4. महिला की मर्जी से, लेकिन ये सहमति देते वक्त महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हो या फिर उस पर किसी नशीले पदार्थ का प्रभाव हो और लड़की सहमति देने के नतीजों को समझने की स्थिति में न हो।
लेकिन इसमें एक अपवाद भी है।. पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना अपराध है और इसे रेप माना जा सकता है। कोर्ट के अनुसार, नाबालिग पत्नी एक साल के अंदर शिकायत दर्ज करा सकती है।इस कानून में शादीशुदा महिला ( 18 साल से ज्यादा उम्र ) के साथ उसका पति ऐसा करे तो उसे क्या माना जाएगा, इस पर स्थिति साफ नहीं है. इसलिए मैरिटल रेप पर बहस हो रही है।
क्या है मैरिटल रेप
भारत में ‘वैवाहिक बलात्कार’ यानी ‘मैरिटल रेप’ कानून की नजर में अपराध नहीं है। इसलिए आईपीसी की किसी धारा में न तो इसकी परिभाषा है और न ही इसके लिए किसी तरह की सजा का प्रावधान है। लेकिन जनहित याचिका डालने वाली संस्था ऋत फाउंडेशन की चित्रा अवस्थी के मुताबिक़ पति अपनी पत्नी की मर्जी के बगैर उससे जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध माना जाए.
महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने 2016 में मैरिटल रेप पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “भले ही पश्चिमी देशों में मैरिटल रेप की अवधारणा प्रचलित हो, लेकिन भारत में गरीबी, शिक्षा के स्तर और धार्मिक मान्यताओं के कारण शादीशुदा रेप की अवधारणा फिट नहीं बैठती”
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में श्मैरिटल रेपश् को श्अपराध करार देने के लिए दायर की गई याचिका के जवाब में 2017 में कहा कि इससे श्विवाह की संस्था अस्थिरश् हो सकती है।
दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा, “मैरिटल रेप को अपराध नहीं करार दिया जा सकता है और ऐसा करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है। पतियों कोउ सताने के लिए ये एक आसान औजार हो सकता है।”क्या है विवाद?
एक तरफ रेप का क़ानून है और दूसरी तरफ हिंदू मैरेज एक्ट – दोनों में परस्पर विरोधी बातें लिखी है जिसकी वजह से श्मैरिटल रेपश् को लेकर संशय की स्थिति बनी है.मेन वेलफेयर ट्रस्ट के अमित लखानी का तर्क है कि रेप शब्द का इस्तेमाल हमेशा श्थर्ड पार्टीश् की सूरत में करना चाहिए. वैवाहिक रिश्ते में इसका इस्तेमाल गलत है.
जबकि ऋत फाउंडेशन का तर्क है कि क़ानून न होने की सूरत में महिलाएं इसके लिए दूसरे क़ानून जैसे घरेलू हिंसा क़ानून का सहारा लेती हैं, जो उनका पक्ष को मजबूत करने के बजाय कमजोर करता है. निर्भया रेप मामले के बाद बनी जस्टिस वर्मा कमेटी ने भी मैरिटल रेप के लिए अलग से क़ानून बनाने की मांग की थी. उनकी दलील थी कि शादी के बाद सेक्स में भी सहमति और असहमित को परिभाषित करना चाहिए.