सुप्रीम कोर्ट में अल्पसंख्यक घोषित करने का मानदंड तय करने को याचिका
देश में अल्पसंख्यक कौन हैं, यह परिभाषित करने और राज्यों में अल्पसंख्यकों का निर्धारण करने संबंधी मानदंड बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है।
यह याचिका भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय ने दी है। इसमें कहा गया है उत्तर-पूर्व में हिंदू दो से आठ फीसदी तक हैं, लेकिन वहां के 80 से 90 फीसदी इसाई देश में अल्पसंख्यक बनकर लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इससे पहले दो फैसलों में कह चुका है कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक का निर्धारण राज्य आधारित होना चाहिए। उसका निर्धारण देश की जनसंख्या के आधार पर नहीं होना चाहिए।
याचिकाकर्ता के अनुसार, देश के आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। वे लक्षदीप में 2.5 फीसदी, मिजोरम में 2.75 फीसदी, नगालैंड में 8.75 फीसदी, मेघालय में 11 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 28 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 29 फीसदी, मणिपुर में 31 फीसदी और पंजाब में 38.40 फीसदी हैं।
उपाध्याय के अनुसार, लेकिन उनके अल्पसंख्यक अधिकार वहां बहुसंख्यक लोग अनधिकृत तरीके से ले रहे हैं, क्योंकि केंद्र ने उन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून की धारा 2 (सी) के तहत अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है। इस कारण ये लोग संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 के तहत मिले अधिकारों से वंचित हैं। S
याचिका में आग्रह किया गया है कि मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसियों को ही अल्पसंख्यक घोषित करने वाली केंद्र की 1993 की अधिसूचना निरस्त की जाए क्योंकि यह अतार्किक है।
दो से ज्यादा बच्चे होने पर चुनाव लड़ने से वंचित किया जाए
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह दो से ज्यादा संतान वालों को चुनाव लड़ने से रोकने का नियम बनाए। याचिका में कहा गया कि सरकार को निर्देश दिया जाए कि दो बच्चों वालों को ही नौकरी, सब्सिडी और अन्य कल्याण योजनाओं में छूट दी जाए, ताकि जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सके।