500 करोड़ का घोटाला, जांच अधिकारियों के भी छूटे पसीने
समाज कल्याण विभाग में वर्ष 2010-11 से 2014-15 की अवधि में विद्वानों स्कला नमेदारों की नाक के नीचे चलता रहता है और किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। परिणामजा, बढ़ते-बढ़ते इस लेख का आकार लगभग 500 करोड रुपए तक पहुंच गया। इस बीच जो शिकायतें आईं वह उसी जिम्मेदार लोगों में किसी-किसी ने दबवा दीं। निश्चित रूप से का विस्तार उत्तराखंड, यूपी सहित पांच राज्यों में स्थित शिक्षण संस्थानों से जुड़ा बताया जा रहा है, लेकिन प्राधिकरण की बड़ी रकम हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर में भी ठिकाने लगाई गई है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत यदि एसआईटी जांच के आदेश नहीं देते तो ये घोटाला फाइलों में दफन हो जाता। हालांकि उनके आदेश के बाद भी शासन स्तर पर एसआईटी गठन में महीनों गुजर गए। कई महीनों बाद जांच शुरू हुई तो जांच अधिकारी को छात्रवृत्ति से संबंधित दस्तावेज जुटाने में पसीने छूट गए। जांच में हो रही हीलाहवाली के बाद सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र जुगरान को उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करनी पड़ी।
एसआईटी प्रभारी मंजूनाथ टीसी ने अदालत में हलफनामा दिया कि उन्हें जांच में सहयोग नहीं किया जा रहा है। उनके इस खुलासे से शासन स्तर के अफसरों में हड़कंप मच गया। अमर उजाला आरंभ से ही इस मामले की परत दर परत खोलता रहा है। इस कड़ी में अमर उजाला ने वर्ष 2010 से लेकर अब तक समाज कल्याण विभाग में उन अफसरों के नामों की पड़ताल की, जिनके कार्यकाल के दौरान आवंटित छात्रवृत्ति को लेकर सवाल उठ रहे हैं।