औषधीय पौधों की खेती से किसानों को होगा लाभ
देहरादूनः भारतीय चिकित्सा शास्त्रों में कई असाध्य रोगों के निवारण की जानकारी मिलती है। इन शास्त्रों में रोग मुक्ति के लिए कई जड़ी-बूटियों का विस्तार से विवरण भी दिया गया है। वर्तमान समय में वैज्ञानिकों द्वारा ऐसे कई जड़ी-बूटियों पर शोध कर औषधियों का निर्माण किया जा रहा है। जिससे एक बार फिर मानव समाज का प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के प्रति रूझान बढ़ा है। लगातार आयुर्वेदिक दवाईयों की मांग बढ़ रही है। जिससे औषधीय पौधों की मांग में भी वृद्धि हुई।
इन्हंी तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए वन अनुसंधान संस्थान के विस्तार प्रभाग देहरादून के श्यामपुर गांव में किसानों, गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधियों एवं छात्रों को औषधीय पौधों एवं मशरूम की खेती एवं उपयोगिता पर तकनीकी जानकारी दी। इस कार्यक्रम का उद्घाटन विस्तार प्रभाग के प्रमुख डा0 ए.के. पाण्डेय द्वारा किया गया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि उत्तराखण्ड औषधीय पौधों के लिए जाना जाता है तथा यहां उगाए जाने वाले औषधीय पौधे जिसमें, कुथ, कुटकी, जटामांसी, चिरायता व किल्मोड़ा आदि की भारी मांग है। इस मांग को पूरा करने के लिए किसानों को अपने खेतों में इन औषधीय पौधों की खेती करनी चाहिए। जिसके द्वारा वे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है।
कार्यक्रम में उपस्थित वन परिरक्षण प्रभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 अमित पाण्डेय ने बताया कि खाद्य मशरूम के अलावा किसान संस्थान की तकनीक को अपनाकर औषधीय मशरूम ‘‘गेनोडर्मा लयूसिडम’’ की खेती करके भी अच्छा लाभ कमा सकते हैं। विस्तार प्रभाग के वैज्ञानिक डा0 चरण सिंह ने प्रदर्शन ग्राम के उद्भव एवं भूमिका के बारे में बताया।