कैलाश मानसरोवर यात्रा: विदेश मंत्री जयशंकर ने रवाना किया पहला जत्था, चीन के बारे में कही ये बात
कैलाश मानसरोवर की इस वर्ष की यात्रा मंगलवार से प्रारंभ हो गई। विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू भवन में उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होकर जाने वाले यात्रियों के पहले जत्थे को शुभकामनाओं के साथ विदाई दी। उन्होंने कहा कि इस यात्रा के आयोजन में चीन सरकार के योगदान का ज़िक्र करना चाहूंगा, जो आपसी रिश्तों को बेहतर करने की दिशा में अहम कदम है। आपको बता दें कि उत्तराखंड की व्यास घाटी से होकर गुजरने वाली ऐतिहासिक कैलाश मानसरोवर यात्रा 12 जून से शुरू हो रही है और इसके लिए प्रशासन ने सभी तैयारियां पूरी कर ली है।
विदेश मंत्री ने इस मौके पर तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कामना कि उनकी यात्रा पूर्णत: सुरक्षित और अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव से परिपूर्ण हो। उन्होंने यात्रियों को सलाह दी कि वे जत्थे के साथ जाने वाले संपर्क अधिकारियों की सुरक्षा सलाह का पूरी तरह से पालन करें। उन्होंने कहा कि यात्रा का मार्ग जितना कठिन है, उतना ही मनोरम भी है। यात्रियों को निश्चित रूप से यात्रा में उनकी कल्पना से कहीं अधिक रोमांचकारी एवं आध्यात्मिक अनुभव की प्राप्ति होगी।
डॉ. जयशंकर ने यात्रा के उत्तम प्रबंधन के लिए उत्तराखंड, दिल्ली एवं सिक्किम की राज्य सरकारों को धन्यवाद दिया तथा जनवादी चीन गणराज्य की सरकार के प्रबंधों की भी सराहना की एवं आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस साल कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए 3000 से अधिक आवेदन आये थे जिनमें से 1580 लोगों को जाने का अवसर मिलेगा। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि लोगों में इस तीर्थस्थल के लिए रुचि लगातार बढ़ रही है।
भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी एवं देश के विदेश सचिव रह चुके डॉ. जयशंकर ने अपने संबोधन की शुरुआत हिन्दी में की। संबोधन के बाद जलपान के दौरान उन्होंने यात्रियों के बीच रहकर अनौपचारिक रूप से खुल कर बातचीत भी की जिससे तीर्थयात्री काफी खुश दिखाई दिये।
लिपुलेख दर्रे से होकर 60 यात्रियों के 18 जत्थे जाएंगे जबकि सिक्किम में नाथूला दर्रे से होकर 50 यात्रियों के 10 जत्थे जाएंगे। मंगलवार को रवाना हुए जत्थे में 57 यात्री एवं दो संपर्क अधिकारी गये हैं।
कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) के यात्रा प्रबंधक जीएस मनराल ने बताया कि निगम की ओर से कैलाश यात्रा को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। इस बार की यात्रा में खास बात यह है कि पैदल यात्रा लगभग 18 किमी कम हो गई है। इसके साथ ही यात्रा हेलीकॉप्टर के बजाय अपने परंपरागत रास्तों से पैदल होकर गुजरेगी। उत्तराखंड में कैलाश यात्रा को लेकर काफी उत्साह है। खासकर पैदल यात्रा से व्यासघाटी के छोटे कारोबारी काफी आशान्वित हैं। जानकारों का मानना है कि इस बार पैदल यात्रा संचालित होने से व्यासघाटी की रौनक वापस लौट आयी है।