दस्तावेज एक्सक्लूसिवः यूजेवीएनएल का कारनामा, नियुक्ति अवैध, प्रमोशन पक्का
देहरादूनःउत्तराखंड जल विद्युत निगम में बड़े-बड़े खेल शालीनता से खेले जाते हैं। ताकि किसी को भनक भी न लगे और काम पूरा भी हो जाय। लेकिन इस बार निगम के आलाधिकारी अपने ही खेल में फंस गये। दरअसल निगम में तीन लोगों को अधिशासी अभियंता के पद पर प्रमोट किया गया। जिन तीन लोगों को निगम ने पदोन्नति का लाभ दिया उनकी नियुक्ति ही उनके प्रमोशन के आड़े आ गई है। गजब देखिए कि इन तीनों इंजीनियरों की नियुक्ति निगम में बिना कायदे-कानून की हुई है। यानि साफ है कि तीनों लोग बैक डोर इंट्री लेकर निगम में नौकरी पर लगे थे। राजनेताओं के कृपा पात्र और आलाधिकारियों के चहेते होने के कारण इनकी नियुक्ति की न तो कभी जांच हुई और न ही विभाग ने समीक्षा करनी उचित समझी। उल्टा इन्हें प्रमोशन देकर निगम में एक नई कुप्रथा को जन्म दिया। जब प्रदेश में बैक डोर से इंट्री पाकर ही नौकरी और प्रमोशन मिलना है तो फिर मुख्यमंत्री का ‘जीरो टाॅलरेंस’ का राग अलापना बेमानी साबित होता है। वह भी तब जब मुख्यमंत्री स्वयं इस विभाग के सर्वेसर्वा हैं। नियम विरूद्ध दिये गये इन प्रमोशनों से स्पष्ट है कि निगम पर मुख्यमंत्री का नियंत्रण नहीं है ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि निगम में उन लोगों का खैरख्वाह कौन होगा जो भ्रष्टाचार की चक्की में बेवजह पिस रहे हैं।
चहेतों को प्रमोशन बाकी को ठेंगा
उत्तराखंड जल विद्युत निगम की स्थापना भलमनसाहत से की गई हो लेकिन निगम की कार्यप्रणाली पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। ताजा मामला निगम में प्रमोशन विवाद का है। जिसका शोर अब निगम की चारदीवारी फांद कर सचिवालय की गैलरियों में गूंजने लगा है। दरअसल लम्बे समय से निगम में सहायक अभियंताओं के प्रमोशन लंबित थे, चूंकि मामला कोर्ट में विचाराधीन हैं। लेकिन एकाएक निगम को ऐसा क्या सूझा कि उसने तीन लोगों को सहायक अभियंता से अधिशासी अभियंता पद पर पदोन्नत कर दिया। जबकि ऐसे लोगों के पदोन्नति के खिलाफ निगम के प्रबंधक को कर्मचारियों द्वारा प्रत्यावेदन भी दिया जा चुका था। वहीं मामले की जब ‘दस्तावेज डाॅट इन’ ने तफ्तीश की, तो पता चला कि जिन तीन लोेगों का चयन प्रमोशन के लिए किया गया निगम में उनकी नियुक्ति ही अवैध है। लेकिन निगम के आलाधिकारियों और राजनेताओं के मुंह लगे होने के कारण उन्हें आउट आफ वे जाकर प्रमोशन दिया गया। जो कि निगम के नियम-कानूनों से सीधा खिलवाड़ है। इतना ही नहीं प्रमोशन पाने वाले तीनों अधिकारियों की तैनाती का आंकलन किया जाय तो उन्हें हमेशा निगम ने ऐसे स्थान पर नियुक्त किया जहां से मोटी कमाई की जा सके।
अवैध है नियुक्ति
यूजेवीएनएल ने जिन तीन अधिकारियों को प्रमोशन दिया है दरअसल उनकी नियुक्ति ही अवैध है। इनमें राम सिंह बिष्ट और शांति प्रसाद दोनों वर्ष 2002 में संविदा के आधार पर नियुक्त किये गये थे। लेकिन आपसी मिलीभगत के चलते विभाग द्वारा दोनों को पदोन्नति कर अधिशासी अभियंता बना दिया है। जबकि विभाग में किसी संविदा या अनुबंध पर रखे गये कर्मचारी को पदोन्नति करने का कोई नियम नहीं है। वहीं जिस तीसरे व्यक्ति अरविंद त्रिपाठी को निगम ने प्रमोशन दिया है। वह भी बैकडोर एंट्री पाकर निगम में नियुक्त किया गया है। अरविंद त्रिपाठी उस सीधी परीक्षा का अनुत्तीर्ण अभ्यर्थी है जिसे उत्तराखंड पाॅवर कार्पोरेशन लिमिटेड द्वारा वर्ष 2002 में आयोजित किया था। यानी साफ है कि यूपीसीएल के एक फेल अभ्यर्थी को यूजेवीएनएल ने नौकरी प्रदान की। दुनियां का ऐसा कोई सरकारी संस्थान नहीं है जो फेल हुए अभ्यर्थी को नौकरी देता हो। लेकिन यूजेवीएनएल ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है। ऐसे में सवाल उठाता है कि इन तीनों लोगों के प्रति निगम का ऐसा क्या अनुराग है कि अवैध नियुक्ति देने के बाद भी अन्य कर्मचारियों के हितों को दरकिनार कर उन्हें प्रमोशन दिया। एक ओर जहां प्रदेश में नौकरी में फर्जीवाडे को लेकर एसआईटी जांच चल रही है वहीं दूसरी ओर यूजेवीएनएल अवैध नियुक्ति वालों पर मेहरबानी बरसा रहा है। यानी साफ है कि निगम में आला अधिकारी अपनी मनमानी पर उतर आये हैं।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भले ही कहते फिरते हों कि उनकी सरकार जीरो टोलरेंस के फाॅर्मूले पर चल रही है। लेकिन उन्हीं के विभाग में भ्रष्टाचार के गुल खिल रहे हैं। जिसकी भनक उन्हें भी नहीं लग रही है। मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह इस प्रकरण की जांच कर प्रदेश की जनता के साथ न्याय करे।
आरटीआई में हुआ खुलासा
यूजेवीएनएल में नियुक्ति को लेकर बड़ा फर्जीवाड़ा है। निगम में कई ऐसे प्रकरण पड़े हैं जिनका बाहर आना अभी बाकी है। वहीं इस प्रकरण में जब विभाग से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई, तो विभाग में हुए फर्जीवाडे की कलाई खुल गई। दरअसल फरवरी 2019 में आरटीआई के माध्यम से तीनों अधिकारियों की नियुक्ति के संदर्भ में जानकारी मांगी गई थी। विभाग द्वारा सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी प्रदान की गई उससे साफ होता है कि तीनों अधिकारियों की नियुक्ति ही अवैध तरीके से हो रखी है। विभाग ने स्पष्ट किया कि तीनों व्यक्तियों की नियुक्तियां ना तो निदेशक मंडल से पास हुई और ना ही कोई प्रस्ताव शासन से अनुमोदित कराया गया था। यानी तीनों व्यक्तियों को बैक डोर से इंट्री कराई गई। एक ओर जहां देश भर में रोजगार के लिए युवा कड़ी मेहनत कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में अपने चहेतों को चोर दरवाजे से नियुक्ति दी जा रही है।
इलाहबाद हाई कोर्ट ने नहीं मानी थी दलील
अविभाजित उत्तर प्रदेश में जो कानून उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड के संचालन के लिए बने थे वहीं नियम-कानून यूजेवीएनएल में भी सीधे-सीधे लागू किये गये हैं। इस तथ्य को आधार बना कर वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम के एक संविदाकर्मी ने अवर अभियंता पद पर नियमितीकरण के लिए इलाहबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका में संविदाकर्मी ने यूजेवीएनएल के संविदाकर्मियों के नियमितीकरण का हवाला दिया। लेकिन इलाहबाद हाईकोर्ट नेअपनी पहली ही सुनवाई में इस याचिका को खारिज कर याची के आधार को नियम विरूद्ध ठहराया। हाईकोर्ट के इस निर्णय से साफ होता है कि उत्तराखंड जल विद्युत निगम में संविदा से नियमित हुए लोगों की नियुक्ति भी अवैध है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि यूजेवीएनएल ने किस नियम-कानून को आधार बना कर संविदाकर्मियों को नियमित कर प्रमोशन दिये। ऐसे में प्रदेश के मुखिया को चाहिये वह यूजेवीएनएल में हुई नियुक्ति के खिलाफ एसआईटी का गठन कर ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाये।
गजब! प्रबंधक को प्रत्यावेदन की जानकारी नहीं
यूजेवीएनएल द्वारा अवैध नियुक्ति प्राप्त करने वाले अधिकारियों को प्रमोशन दिये जाने पर कई अधिकारी-कर्मचारियों में भारी नाराजगी है। हितों के टकराव को देखते हुए यूजेवीएनएल के कर्मचारियों ने जून 2019 में निगम के प्रबंधक को प्रत्यावेदन सौंपा। जिसमें कर्मचारियों ने सभी तथ्यों को उजागर कर पारदर्शिता के साथ प्रमोशन देने की मांग की। लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद निगम ने अपने चहेतों को प्रमोशन दे डाला। यह बात भी दीगर है कि प्रमोशन की लिस्ट में कई नाम है लेकिन उन सब को भी दरकिनार कर सिर्फ तीन चहेते अधिकारियों को ही पदोन्नती दी। निगम द्वारा प्रमोशन में जो खेल खेला गया उससे साफ होता है कि निगम में सिर्फ एक ही व्यक्ति की मनमानी चलती है। वहीं इस संदर्भ में निगम के प्रबंधक एस.एन.वर्मा का कहना है कि विभाग के सहायक अभियंताओं ने उन्हें किसी प्रकार का प्रत्यावेदन नहीं दिया है। ऐसा नहीं है कि निगम के प्रबंधक इससे अनविज्ञ हैं, पूरा प्रकरण उनकी संज्ञान है लेकिन बावजूद इसके उन्होंने अपने चहेतों को प्रमोशन देने में भलाई समझी।