September 21, 2024

बजट से रेलवे का निजीकरण होगा तेज! व्यापक विरोध करेगा रेल यूनियन

बजट से यह बात उजागर हो गई है कि सरकार रेलवे के कॉरपोरेटीकरण और निजीकरण पर ‘आक्रामक तरीके से’ आगे बढ़ना चाहती है. नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे मेन (NFIR) ने यह आरोप लगाया है. यूनियन ने कहा कि उसके सभी संगठन इसका देशव्यापी विरोध करेंगे.

गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को अपने बजट भाषण में कहा था कि रेलवे के तीव्र विकास के लिए मालवाहन और रोलिंग स्टॉक मैन्युफैक्चरिंग आदि में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल (PPP) पर आगे बढ़ा जाना चाहिए. वित्त मंत्री ने बजट भाषण में बताया था कि साल 2018 से 2030 के बीच रेलवे को अपनी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 50 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी.

बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिश से हो रहा निजीकरण

भारतीय रेल के निजीकरण को और ज्यादा तेज करने के लिए एक सात सदस्यों की कमेटी नीति आयोग के सदस्य तथा अर्थशास्त्री बिबेक देबराय की अध्यक्षता में सितंबर 2014 में स्थापित की गयी थी. इस कमेटी की ड्राफ्ट रिपोर्ट में ही सुझाव दिया गया था कि भारतीय रेल को फायदे में लाने के लिए निजी क्षेत्र को सवारी तथा माल गाड़ियां चलाने की अनुमति देनी चाहिए. रेल सम्बंधित आधारभूत सेवाएं तथा उत्पादन और निर्माण कार्य जैसे काम, जो रेलवे के लिए मूल काम नहीं हैं, उनमें निजी क्षेत्र के सहभाग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए.

समिति ने कहा था कि राजधानी/शताब्दी गाड़ियों को चलाने का व्यवसायिक काम निजी क्षेत्र को देना चाहिए और उसके लिए उनसे सालाना फ़ीस लेनी चाहिए. सरकार ने इसे मंजूर भी कर लिया है और कुछ ट्रेनों को निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी चल रही है.

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक NFIR के महासचिव एम. राघवैया ने सभी महासचिवों को भेजे लेटर में कहा है, ‘रेलवे कर्मचारियों द्वारा जबरदस्त विरोध को दर्शाने के लिए एनएफआईआर अपने सभी संगठनों को यह निर्देश देता है कि पूरे देश के रेलवे में 10 से 13 जुलाई तक विरोध प्रदर्शन और रैलियों का आयोजन करें.’  

निजीकरण संवेदनशील मसला

गौरतलब है कि रेलवे का निजीकरण काफी संवेदनशील मसला रहा है. भारतीय रेल में निजीकरण के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि रेलवे को ट्रेन चलाने के अपने मूल काम तक ही सीमित रहना चाहिए और मुनाफा कमाने योग्य होने चाहिए,  लेकिन रेलवे 125 अस्पताल, 586 दवाखाने चलाता है. रेलवे डिग्री कॉलेज और स्कूल चलाता है. इंडियन रेलवे 12,000 से अधिक ट्रेनों का संचालन करता है, जिसमें 2 करोड़ 30 लाख यात्री रोज यात्रा करते हैं. इसमें करीब 13 लाख कर्मचारी काम करते हैं और इस लिहाज से यह दुनिया का सातवां सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला संस्थान है.

पीएम मोदी ने भी साल 2015 में वाराणसी के डीजल लोको वर्क्स के मजदूरों को संबोधित करते हुए कहा था कि रेलवे का निजीकरण नहीं किया जाएगा. लेकिन इसके पहले ही अगस्त 2014 में पिछली मोदी सरकार ने रेलवे में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति का ऐलान किया था. नवंबर 2014 में रेलवे बोर्ड ने 17 उन मुख्य क्षेत्रों का ऐलान किया था जिनमें 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति होगी. 

इन क्षेत्रों में 100 फीसदी एफडीआई

जिन क्षेत्रों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति होगी, वे हैं- तेज गति वाली रेलगाड़ियों की परियोजनाएं, पहियों पर चलने वाली वस्तुएं और उनकी मरम्मत, डीजल और बिजली चालित ईंजन, कोच तथा वैगन का निर्माण, संयुक्त उपक्रम तथा/अथवा पीपीपी द्वारा समर्पित माल वाहक रेल लाइनें, कुछ लाइनों पर निजी सवारी गाड़ियों को चलाना, पीपीपी द्वारा उपनगरीय रेलगाड़ियों के लिए गलियारों (कॉरिडोर) की परियोजना, मानव-चालित तथा मानव-रहित लेवल क्रासिंगों के लिए तकनीकी हल निकालना, सुरक्षा सुधारने तथा दुर्घटनाएं कम करने के लिये तकनीकी हल, नवीन तकनीकों तथा प्रौद्योगिकियों को परखने के लिए सामग्रियां तथा विश्व-स्तरीय लेबोरेट्रियां, रेलवे तकनीकी ट्रेनिंग संस्थाओं की स्थापना, विश्व-स्तरीय सवारी गाड़ियों के लिए टर्मिनल तथा मौजूदा स्टेशनों का नवीनीकरण/मरम्मत और महत्वपूर्ण स्थानों पर माल गाड़ियों के लिए टर्मिनल/लॉजिस्टिक पार्क की स्थापना.   

नई नीति के आधार पर तत्कालीन रेल मंत्री ने तुरंत ही दो बड़ी लागत वाले डीजल तथा विद्युत लोको ईंजन निर्माण के लिए कारखाने स्थापित करने की परियोजनाओं में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दे दी. 1200-1200 करोड़ रुपये की लागत से बिहार में मधेपुरा तथा मरहोरा में ये प्लांट लगाए जाएंगे.


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