एक्सक्लूसिवः मुख्यमंत्री की विधानसभा में स्कूल बंद, संशय में गुदड़ी के लाल

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Uttarakhand-CM

देहरादूनः प्रदेश में स्कूली शिक्षा पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बदहाल होती शिक्षा व्यवस्था की सुध लेने वाला कोई नहीं है। यह स्थिति तब है जब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की बागडोर संभालने वाला इसी प्रदेश से ताल्लुक रखता हो। इससे बड़ी बिडंबना और क्या हो सकती है कि खुद मुख्यमंत्री की विधानसभा में स्कूलों की हालत दयनीय है। स्थिति यह है कि खुद मुख्यमंत्री के क्षेत्र में शिक्षा विभाग ने स्कूलों को मर्ज कर डाला। सवाल उठना लाजमी है कि जब प्रदेश के मुखिया के क्षेत्र में विद्यालयों का ऐसा हश्र है तो सुदूर पहाड़ में विद्यालयों की दशा क्या होगी। इस बात की चिंता न तो मुख्यमंत्री को सता रही है और न ही विद्यालयी शिक्षा विभाग के कारिंदों को। लेकिन बदहाल शिक्षा व्यवस्था के आगे गुदड़ी के लाल बेबस हैं।

सुधार नहीं सीधे सरेंडर

प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिर रहा है। इसे संभालने के लिए शिक्षा विभाग की कोई ठोस रणनीति नहीं है। विभाग द्वारा शिक्षा के गिरते स्तर का कभी भी मूल्यांकन नहीं किया। इसके उलट विभाग ने छात्रों की कमी का हर बार रोना रोया है। छात्र संख्या में प्रत्येक शैक्षणिक सत्र में हो रही गिरावट को लेकर विभाग कभी इसके मूल में जाने की हिम्मत नहीं जुटाई। अगर विभाग छात्र संख्या में हो रही कमी के प्रति सचेत होता तो वह इसे रोकने में जरूर कामयाब होता। लेकिन विभाग ने कभी इस ओर प्रयास ही नहीं किये। बल्कि उल्टी नीतियां अपना कर कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को मर्ज कर डाला। जो कि शिक्षा विभाग का सबसे आत्मघाती कदम है। धरातल पर अगर देखें तो जहां शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों को मर्ज किया गया वहां उसके बाद निजी स्कूल बढ़िया चल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब वहां निजी स्कूल चल सकता है तो सरकार स्कूल क्यों नहीं चल पाये। यानी शिक्षा विभाग के सुधार की जगह सरेंडर करने की नीति ही सबसे शिक्षा के सुधार में में सबसे बड़ी बाधा है।

मुख्यमंत्री की विधानसभा में स्कूल बंद

शिक्षा विभाग के स्कूलों का मर्ज करने का अभियान मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में भी चला। सीएम के विधानसभा क्षेत्र में स्कूलांे के विलीनीकरण की कार्यवाही की जा रही है। इसके लिए मुख्य शिक्षा अधिकारी द्वारा खंड शिक्षा अधिकारी का पत्र भेजा गया है। जिसमें राजकीय विद्यालय शमशेरगढ़ और घमंडपुर को क्रमशः मियांवाला और रानीपोखरी में मर्ज करने का आदेश दिया गया है। इसके साथ ही विलय किये गये स्कूल के बच्चों को भी अन्य स्कूलों में शिफ्ट करने के आदेश दिये गये हैं। शिक्षा विभाग ने स्कूलों के विलय के आदेश तो दे दिये लेकिन क्या बंद किये गये स्कूलों के बच्चे घर से दूर दूसरे स्कूल में जा पायेंगे। इस ओर शिक्षा विभाग ने कभी ध्यान ही नहीं दिया। शिक्षा विभाग ने जिस तर्क के आधार पर स्कूल का मर्ज किया, वहीं तर्क उसकी मुसीबत बन सकता है। सवाल उठाता है जब बच्चे अपने ही स्कूल नहीं आ रहे हैं तो फिर घर से इतनी दूर दूसरे स्कूल में कैसे आयेंगे। शायद विभाग ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया अगर दिया होता तो वह स्कूल मर्ज की जगह कोई दूसरा रास्ता तलाशता जब स्कूल भी बचता और शिक्षा की स्तर को भी मजबूती मिलती।

मानक से ज्यादा छात्र फिर भी स्कूल मर्ज

उत्तराखंड शिक्षा विभाग के मानकों पर अगर गौर करें तो साफ है कि उस स्कूल का विलयीकरण किया जायेगा। जिसकी कुल छात्र संख्या 30 से कम हो। लेकिन राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय घमण्डपुर में छात्र संख्या में ईजाफा हुआ है। लेकिन इसके बावजूद भी विभाग ने इसका विलयीकरण राजकीय इंटर काॅलेज रानी पोखरी कर दिया है। यानी छात्र संख्या बढ़ने के बावजूद भी विभाग ने इसका मजमाफिक मर्ज कर डाला।

बढ़ गई स्कूल की दूरी कैसे जायें?

स्कूलों के विलयीकरण के चलते सबसे बड़ी समस्या छात्रों के सामने आ पड़ी है। अभिभावक का कहना है कि पहले स्कूल नजदीक थे तो बच्चे खुद ही स्कूल जाया करते थे। लेकिन स्कूलों के मर्ज होने पर उनकी समस्या बढ़ गई है। दूसरी ओर अभिभावकों का आरोप है कि विद्यालय का पहले कोई भवन नहीं था बच्चे पीपल के पेड़ के नीचे पढ़ते थे तो लोग अपने बच्चों को यहां नहीं भेजते थे अब स्कूल की बिल्डिंग बन गई थी तो छात्रों की संख्या भी बढ़ने लगी थी लेकिन सरकार ने स्कूल बंद कर हमारे बच्चों का भविष्य चैपट कर दिया है। हम मुख्यमंत्री से हिसाब लेंगे कि हमारे बच्चों रानी पोखरी ही जाना था तो ये स्कूल बनाया ही क्यों?

बरसात में कैसे जायेंगे स्कूल

राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय घमण्डपुर के बंद होने से स्थानीय लोगों में भारी रोष है। लोगों का कहना है कि इस स्कूल का उच्चीकरण किया गया था। पहले स्कूल के पास पूरे संसाधन नहीं थे। स्कूल पीपल के पेड़ के नीचे चलता था। हम लोगों ने अपने बच्चों को यहां पढ़ाना शुरू कर दिया था। बच्चों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही थी। स्कूल के भवन भी तैयार हो रहे थे। लेकिन विभाग ने अचानक इसके विलयीकरण का फैसला लिया। हम इतने सक्षम नहीं अपने बच्चों को रानीपोखरी भेजें। दूसरी बात आजकल बरसात है जिस पुल से रानी पोखरी जाया जाता है वह बरसात के चलते तीन महीने के बंद रहता है। ऐसे में तीन महीने तक हमारे बच्चे पढ़ाई से वंचित रह जायेंगे। हम चाहते हैं कि स्कूल का विलयीकरण निरस्त किया जाय। वरन हम आंदोलन के लिए बाध्य हो जायेंगे

मुख्यमंत्री जी, अपने लोगों क्या देंगे जवाब

शिक्षा की बेहतरी के लिए किसी भी नेता या जनप्रतिनिधि ने यह प्रयास नहीं किया कि स्कूलों की समस्या का निराकरण किया जाय। स्कूलों का विलयीकरण का मामला खुद मुख्यमंत्री की विधानसभा का भी है। सीएम की विधानसभा में ऐसे स्कूलों को मर्ज किया गया। जहां संसाधनों का आभाव था। धीरे-धीरे संसाधन जुट रहे थे कि उससे पहले ही स्कूलों को मर्ज करने का फरमान जारी कर दिया गया है। ऐसे स्कूलों के मर्ज हो जाने पर स्थानीय लोगों में भी रोष है। मामला मुख्यमंत्री की विधानसभा का होने के चलते यह चर्चा का विषय बन गया है। स्कूलों के विलयीकरण से पहले अगर इसे बचाने के ठोस प्रयास किये जाते मोहल्ले के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलती। लेकिन किसी ने भी इसके लिए ठोस प्रयास नहीं किये लिहाजा इसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ेगा।

क्या कहते है अधिकारी

मामला संज्ञान में आया है , जिसकी तत्काल समीक्षा की जायेगी। अगर छात्र संख्यापूर्ण है और भवन निर्माण का कार्य भी चल रहा है तो ऐसे में विद्यालय बंद नही कराया जायेगा। इसके लिए संबंधित अधिकारियों को तत्काल निर्देश जारी किये जायेंगे। हमारा उददेश्य छात्रों को शिक्षा देना है उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं करना है।
आर मीनाक्षी सुंदरम
सचिव शिक्षा, उत्तराखंड शासन।

इस संबंध में संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिया गया है। स्कूल बच्चे कैसे आयेंगे ये तय करने का काम अभिभावकों का है। फिल हाल तो विद्यालय बंद करने के निर्देश जारी कर दिये गये है। किसी को ज्यादा जानकारी चाहिए तो वह सूचना के अधिकार अधिनियम का प्रयोग कर सकता है।
आशा रानी पैन्यूली
मुख्य शिक्षा अधिकारी देहरादून।

क्या कहते है जनप्रतिनिधि

सरकार शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है। 2015 में विद्यालय का उच्चीकरण इसी आधार पर किया गया था कि स्थानीय लोगों को इसका फायदा मिल सके। लेकिन जब मुख्यमंत्री अपनी ही विधानसभा में विद्यालय नहीं बचा पा रहे है तो उनसे प्रदेश की क्या उम्मीद की जा सकती है। में पूर्व में इस क्षेत्र से विधायक रहा हॅू इस नाते भी स्कूल बंद होने के खिलाफ आवाज उठायी जायेगी।
हीरा सिंह बिष्ट, पूर्व विधायक डोईवाला

यह मामला अहुत ही गंभीर है। सरकार शिक्षा के प्रतिगंभीर नहीं है। इस संबंध में मुख्यमंत्री जी से मुलाकात की जायेगी। हमे तो इस बात का डर है कि विद्यालय बंद होने से क्या इसमें पढने वाले छात्र दूसरी स्कूल तक पहुंच भी पायेंगे या नहीं। इस लिए अधिकारियों के इस फैसले का विरोध किया जायेगा।
अजय कुमार,
समाजिककार्यकर्ता।

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