त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव: हाइकोर्ट ने फंसाये पेंच, कुछ के चेहरे खिले तो कुछ औंधे मुंह गिरे, सरकार सुप्रीम कोर्ट के रास्ते

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देहरादून: पंचायती राज संशोधन एक्ट को लेकर हाइकोर्ट का फैसला सरकार के खिलाफ आने से सरकार की सांसें उधड़ गयी है। एक्ट में बेइंतहा खामियों का खामियाजा सरकार के गए पड़ गया है। ऐसे में सरकार इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने को तैयार है। हालांकि प्रदेश में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया में कोई परिवर्तन नहीं होगा। सरकार के खिलाफ आये हाईकोर्ट के फैसले से कई लोगों के चेहरे खिल गए तो कई की चुनावी बिसात बिखर गई है। कांग्रेस इसे सरकार की फाजियात के तौर पर देख रही है तो भाजपा का एक खास धड़ा सरकार को चिड़ा रहा है।

पंचायती राज संशोधन एक्ट पर हाईकोर्ट के फ़ैसले से उत्तराखंड की राजनीति में उथल-पुथल मच गई है। कल से नामांकन प्रक्रिया शुरु होनी है और बीजेपी कांग्रेस से लीड लेते हुए आज ही अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान करने जा रही थी कि हाईकोर्ट का फ़ैसला आ गया। बीजेपी में इस फ़ैसले को लेकर मंथन जारी है और सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट के फ़ैसले को पार्टी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है। इस बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने कहा है कि हाईकोर्ट के फ़ैसले से चुनाव प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आएगी और यह बदस्तूर जारी रहेगी।

यह है मामला

बता दें कि राज्य सरकार जून में पंचायती राज संसोधन विधेयक 2019 लाई थी जिसे राज्यपाल की मंज़ूरी के बाद तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया था. इस एक्ट का सबसे बड़ा असर यह हुआ था कि दो से ज़्यादा बच्चे वाले चुनाव नहीं लड़ सकते थे. इसके अलावा चुनाव लड़ने के लिए शैक्षिक योग्यता भी निर्धारित कर दी गई थी. इसे चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद आज हाईकोर्ट ने फ़ैसला सुनाया कि पंचायती राज संशोधन कानून राज्य में 25 जुलाई, 2019 के बाद लागू होगा. यानि कि 25 जुलाई, 2019 से पहले जिनके दो से ज़्यादा बच्चे होंगे वह पंचायत चुनाव लड़ पाएंगे.

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