एक्सक्लूसिव: विवादित कुलपतियों से इतर, एक कर्तव्यनिष्ठ कुलपति की लकीर खींच गये डाॅ. यू.एस.रावत
देहरादूनः किसी भी मानव समाज के उत्थान में शिक्षण संस्थानों की अहम भागीदारी रही है। जब-जब उच्चकोटि के शिक्षण संस्थान स्थापित हुए तब-तब समाज में नई चेतना का संचार हुआ। लेकिन इसके उलट जब शिक्षण संस्थानों की स्थितियां बिगड़ी तो समाज के नैतिक मूल्यों में ह्रास देखने को मिला। इससे स्पष्ट होता है कि शिक्षण संस्थान समाज में ‘पाॅवरहाउस’ की तरह काम करते हैं। उत्तराखंड के सदंर्भ में अगर बात करें तो यहां शिक्षण संस्थानों के हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। शिक्षण संस्थानों के चिंतनीय स्थिति के पीछे कई कारण है। जिसमें सबसे बड़ा कारण शिक्षण संस्थानों को उपयुक्त व्यक्ति न मिलना रहा है। उत्तराखंड के तमाम विश्वविद्यालयों का अगर रिकाॅर्ड देखें तो पता चलता है कि विश्वविद्यालयों में कुलपति की कुर्सी हमेशा विवादों में रही। जिस कारण कई कुलपतियों को या तो इस्तीफा देना पड़ा या फिर उन्हंे हटाया गया। हाालंकि इस बीच कुछ ऐसे भी कुलपति रहे जिन्होंने निर्विवाद न सिर्फ अपना कार्यकाल पूरा किया बल्कि उम्मीदांे पर भी खरे उतरे। ऐसे कुलपतियों में डा. यू.एस.रावत का नाम सबसे ऊपर रहा। जिन्होंने अभावों में भी श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय को न सिर्फ स्थापित किया बल्कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कई आयाम स्थापित कर एक लंबी लकीर खींची।
कर्तव्यनिष्ठ कुलपति
एक ओर जहां प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में कुलपति विवादों में रहे, वहीं दूसरी ओर श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. यू.एस.रावत ने एक लंबी पारी खेली। डा. रावत ने लगतार सात साल तक निर्विवाद विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी निभाई। अपने कार्यकाल के दौरान डा. रावत ने विश्वविद्यालय को न सिर्फ स्थापित किया बल्कि श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय को प्रदेश के अग्रणी विश्वविद्यालय भी बनाया। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर रचनात्मक पहल भी की। वह प्रदेश के एक मात्र कुलपति रहे जिन्होंने अपने कार्यकाल में कई बड़े सेमीनार सहित राष्ट्रीय स्तर के ‘ज्ञानकुंभ’ जैसे सम्मेलन का आयोजन किया। इसके साथ ही उन्होंने नवगठित विश्वविद्यालय के दो दीक्षांत समारोह आयोजित कर अन्य विश्वविद्यालयों के सामने नजीर पेश की। इतना हीन हीं डा. रावत ने दोनों ही दीक्षांत समारोह पहाड़ में आयोजित किये। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी विश्वविद्यालय में पर्वतीय क्षेत्र में दीक्षांत समारोह का अयोजन किया हो। डा. रावत प्रदेश के एक मात्र ऐसे कुलपति रहे जिन्होंने विश्वविद्यालय के तहत पांच गांव गोद लिये और उनके विकास में भागीदार बने। अपने प्रशासनिक कौशल प्रबंधन, ईमानदारी और कर्मठता से डा. रावत ने निसंदेह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक लंबी लकीर खींच दी, जो अन्य कुलपतियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी।
विवादों के कुलपति
वहीं दूसरी ओर अन्य विश्वविद्यालयों में कुलपति पद विवादों में रहा। आलम यह रहे कि कुछ विश्वविद्यालय में कुलपति विवाद को लेकर खुद न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। लिहाजा विवादों के चलते कुलपतियों ने या तो इस्तीफा दिया या फिर उन्हें हटाया गया। विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुछ चर्चित विवाद इस प्रकार रहे।
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालयः- आयुर्वेद विश्वविद्यालय हर बार विवादों का केंद्र बिंदु रहा है। यहां भी कुलपति पद को लेकर विवाद रहा। इस विश्वविद्यालय में प्रो. एस.पी. मिश्र को कुलपति पद की जिम्मेदारी दी गई। मिश्र ने विश्वविद्यालय में अपना पहला कार्य सफलता पूर्वक पूरा किया। उन्हें दूसरी बार कुलपति बनाया गया लेकिन इस बार उन पर तथ्य छुपाने के गंभीर आरोप गये। लिहाजा मामला कोर्ट पहुंचा जिसके बाद राजभवन ने उन्हें हटा डाला।
उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालयः- इस विश्वविद्यालय की नींव भी विवादों से पड़ी। यहां भी कुलपति पद को लेकर विवाद रहा। दरअसल राजभवन द्वारा प्रो. पी.के. गर्ग को विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया।लेकिन कुछ ही समय बाद उन पर आरोप लगने शुरू हो गये। जब उन पर गंभीर आरोप लगे तो राजभवन ने उनके खिलाफ कार्यवाही कर उन्हें पद से मुक्त कर दिया।
भरसार विश्वविद्यालयः- पौड़ी स्थित भरसार विश्वविद्यालय में भी कुलपति पद को लेकर विवाद रहा। यहां प्रो. मैथ्यू प्रसाद को भी अपना कार्यकाल बीच में छोड़ना पड़ा। हालांकि उन्होंने अपना पहला कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया। लेकिन दूसरे कार्यकाल में उन पर भर्तियों को लेकर आरोप लगे।
दून विश्वविद्यालयः- हाल ही में उत्तराखंड हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने दून विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वी.सी. नौटियाल की नियुक्ति को नियम विरूद्ध पाया। हाईकोर्ट ने कुलपति नौटियाल की नियुक्त निरस्त के आदेश दिये। उत्तराखंड राजभवन ने कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए कुलपति नौटियाल को पद से मुक्त कर दिया।
एचएनबी मेडिकल विश्वविद्यालय- एचएनबी मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति विवादों में तो नहीं रहे लेकिन वहां के दो कुलपतियों ने शासन की बेरूखी के चलते पद से इस्तीफा दिया। मेडिकल विवि के कुलपति डा सौदान सिंह ने सहित डाॅ. एम.सी. पंत ने सरकार से अपनी नाराजगी जता कर पदभार छोड़ा। वहीं तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डी.एस. चैहान ने भी शासन से नाराजगी जताकर पद त्याग किया।
प्रदेश में पिछले कुछ सालों में कुलपति विवाद थमने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। जिससे शासन द्वारा गठित सर्च कमेटियों पर सवाल उठने लाजमी है। अगर सर्च कमेटियों द्वारा कुलपति के चुनाव करने में ऐसी ही परिपाटी अपनाई जाती रही तो इससे न सिर्फ प्रदेश का अहित होगा बल्कि उन लाखों होनहारों के भविष्य के अधर में होगा जो नई उम्मीदों के साथ विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण के लिए आते हैं।