एक्सक्लूसिव न्यूज़ः यूजेवीएनएल के प्रबंध निदेशक के लिए जुमला है ‘जीरो टाॅलरेंस’, सीएम की नाक के नीचे किया करोड़ों का भ्रष्टाचार

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देहरादूनः उत्तराखंड सरकार का दावा है कि प्रदेश में ‘जीरो टाॅलरेंस’ की नीति का असर दिखने लगा है। सरकार यह दावा भी कर रही है कि मुख्यमंत्री ‘जीरो टाॅलरेंस’ की नीति को लेकर खासे सजग है और समय-समय पर वह इसका फीडबैक भी लेते हैं। लेकिन सच यह है कि मुख्यमंत्री के ‘जीरो टाॅलेरेंस’ अभियान को उनके ही कारिंदे सिर्फ चुनावी जुमला मानते हैं। यहीं वजह है कि उनके ही अधीन विभागों में जमकर भ्रष्टाचार की बयार बह रही है। ताजा प्रकरण उत्तराखंड जल विद्युत निगम का है। जहां निगम के प्रबंध निदेशक की शाह पर करोड़ों के घोटाले को अंजाम दिया जा रहा है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम में भ्रष्टाचार का यह पहला मामला नहीं है बल्कि समूचा ही निगम भ्रष्टचार से आकंठ डूबा हुआ है और मुख्यमंत्री हैं कि ‘जीरो टाॅलरेंस’ की मुनादी पीट रहे हैं।

दस्तावेज की पड़ताल, निगम में भ्रष्टचार

दस्तावेज की पड़ताल

यूं तो यूजेवीएनएल में कई घोटालों के राज दफन है। लेकिन हाल ही में भ्रष्टचार का एक और जिन्न बंद बोतल से बाहर निकल आया है। भ्रष्टाचार के इस जिन्न ने निगम के प्रबंध निदेशक की कलई खोल कर रख दी है। दरअसल वर्ष 2017 में छिबरो पाॅवर प्रोजेक्ट के तहत 33 केबी सब स्टेशन के लिए ठपमबबव स्वूतपम मेक के वैक्यूम सर्किट ब्रेकर (वीसीबी) व अन्य सामाग्री की सप्लाई के साथ-साथ उसे लगाने के कार्य का टेंडर होना था। लेकिन निगम के प्रबंध निदेशक ने प्रोक्योरमेंट नियमावली की धज्जियां उडाते हुए सिंगल कोटेशन के आधार पर सहारनपुर की एक अनाम कंपनी मित्तल मशीन्स प्राइवेट लिमिटेड को मनमाने दरों पर सप्लाई देने के आदेश दिये। प्रबंध निदेशक ने ठपमबबव स्वूतपम कंपनी का चैनल पार्टनर बता कर इस खेल को अंजाम दिया। यूजेवीएनएल में हुई इस घोटाले की जब परत खुली तो मामला उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग पहुंचा। जहां आयोग ने मामले में भारी अनियमितता पाई और ठोस जांच के आदेश दिये। लेकिन सवाल यह है कि जब इस पूरे मामले में प्रबंध निदेशक और उसकी मंडली संलिप्त है तो ऐसे में जांच करेगा कौन?

निशाने पर परचेज कमेटी

एस.एन. वर्मा, प्रबंध निदेशक

यूजेवीएनएल में भ्रष्टचार को अंजाम के लिए बड़ी सर्तकता बरती गई। इसके लिए पहले एक सेंट्रल परचेज कमेटी का गठन किया गया। जिसमें सभी सदस्य प्रबंध निदेशक के खास राजदार माने जाते हैं। इस कमेटी में प्रबंध निदेशक एस.एन. वर्मा के अलावा तत्कालीन निदेशक आॅपरेशन बी.सी.के. मिश्रा, निदेशक परियोजना संदीप सिंघल, निदेशक वित्त एल.एम. वर्मा और तत्कालीन महाप्रबंधक यमुना वैली संजय मित्तल शामिल थे। इन सभी ने मिलकर सिंगल कोटेशन के आधार पर छिबरो पाॅवर हाउस के 33 केबी सब स्टेशन पर Biecco Lowrie मेक के वैक्यूम सर्किट ब्रेकर और अन्य सामग्री की सप्लाई सहित इसे लागने का ठेका अपनी चहेती कंपनी को दे दिया। जबकि नियमानुसार इस कार्य के लिए निगम द्वारा ई-निविदा प्रक्रिया अपनानी चाहिये थी। लेकिन निगम प्रबंधन ने अपनी मनमानी कर प्रदेश के मुखिया की जीरो टाॅलरेंस की नीति की जमकर धज्जियां उड़ाई। बिडम्बना देखिए कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस विभाग को स्वयं देखते हैं। ऐसे में सवाल उठने लाजमी है कि आखिर यूजेवीएनएल के प्रबंध निदेश सख्त छवि के मुख्यमंत्री का डर भी नहीं रहा। आखिर कैसे परचेज कमेटी ने नियमों को ताक पर रख सिंगल कोटेशन के आधार पर टेंडर आवंटित कर दिया।

सब गोलमाल है…!

छिबरो पाॅवर प्रोजेक्ट

इस प्रकरण को अगर ठीक से देखें तो साफ होता है कि किस प्रकार सिंगल कोटेशन के आधार पर चहेती कंपनी को बड़ा फायदा पहुंचाया गया। दरअसल सिंगल कोटेशन के तहत सिर्फ वैक्यूम सर्किट ब्रेक्रर यानी वीसीबी ही Biecco Lowrie कंपनी के सप्लाई होने थे। लेकिन इसकी आड़ में कई अन्य सामाग्री जिसमें चैनल, एल टी पैनल, एमसीसीबी, एक्स एल पी ई केबल, केबल टर्मिनेशन किट, कण्ट्रोल केबल, परफोरेटेड ट्रे, जी आई स्ट्रिप, चकर प्लेट, अर्थ प्लेट, बैटरी चार्जर की भी खरीद की गई। जबकि ये सारी सामग्रियां Biecco Lowrie कंपनी के बजाय किसी अन्य कंपनी से भी खरीदी जा सकती थी। लेकिन परचेज कमेटी ने इसे प्रोपराॅयटी उत्पाद बताकर सिंगल कोटेशन अपना कर अपनी चहेती कंपनी को ठेका दे डाला। वहीं तकनीकी जानकारों की माने तो सब स्टेशन पर किसी भी बेहत्तर कंपनी के वैक्यूम सर्किट ब्रेक्रर लगाये जा सकते हैं। ऐसा कहीं नहीं लिखा गया है कि जिस कंपनी के ब्रेकर पहले इस्तेमाल हो रहे हैं उसी के उत्पाद को दोबारा लगाये जाय। जबकि बाजार में कम दामों में भी उन्नत और गुणवत्ता युक्त ब्रेकर उपलब्ध हैं। लेकिन परचेज कमेटी ने Biecco Lowrie कंपनी ब्रेकर लगाने के लिए मित्तल मशीन्स को मनमाने तरीके से ठेका देकर अपने हितों को बखूबी साधा।

निगम से वसूले मनमाने दाम

यूपीसीएल की रेट लिस्ट से तुलना

यूजेवीएनएल प्रबंधन ने जब चहेती कंपनी को ठेका दिया तो उसने भी निगम से मनमाने दाम वसूले। कंपनी ने जो रेट निगम को दिये वह बाजार से कई गुना अधिक थे। वहीं जब इन्हीं सामाग्रियों की दर की तुलना यूपीसीएल की रेट लिस्ट से की गई तो कंपनी ने प्रत्येक सामाग्री के चार गुना अधिक दाम निगम से वसूले। इस प्रकरण से साफ होता है कि अगर एक ठेके में निगम को दो करोड़ का चूना लगाया जा रहा है तो ऐसे में निगम की अन्य परियोजनाओं में भी लूट का मंजर क्या होगा। वह भी तब जब जीरो टाॅलेरेंस की बात कही जा रही हो।

ठेंगे पर नियामक आयोग के आदेश

उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने दिये जांच के आदेश

उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग में जब यह प्रकरण पहुंचा तो आयोग ने इसमें भारी अनियमितता पाई। आयोग ने इस पर कड़ी अपत्ति जताते हुए इस खरीद प्रक्रिया के जांच के आदेश दिये। लेकिन यूजेवीएनएल में यह कहावत आम है कि ‘जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे’। कहने का आशय यह है कि जब इस पूरे प्रकरण में निगम के प्रबंध निदेशक का हाथ तो फिर किस के खिलाफ कार्यवाही होगी। हालांकि आयोग ने टैरिफ आदेश में साफ किया कि यूजेवीएनएल प्रबंधन ने प्रोक्योरमेंट नियमावली और टेंडर प्रक्रियाओं को ताक पर रख कर मानमाने दरों पर पैसे की बंदरबांट की। आयोग ने बिना टेंडर प्रक्रिया के सिंगल कोटेशन के आधार पर 14 लाख से लेकर 215 लाख तक के आॅर्डर पर आपत्ति जताई। साथ ही आयोग ने एक ही कंपनी के स्वमित्व वाली सामाग्री खरीद पर भी प्रश्न उठाये। इतना ही नहीं आयोग ने पाया कि जो सामाग्री यूजेवीएनएल ने खरीद की वही सामाग्री यूपीसीएल में चार गुना कम दर पर खरीद की गई। जिससे साफ होता है कि यूजेवीएनएल प्रबंधन ने कंपनी को आर्थिक लाभ पहुंचाने में मदद की। इतना ही नहीं यूजेवीएनएल के विभिन्न पावर हाउसों में एक ही सामाग्री की खरीद दरों में भारी अंतर होना बताता है कि निगम में भ्रष्टचार की जड़ंे कितनी गहरी है। आयोग ने इस पूरे प्रकरण पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि निगम इसकी आंतिरक जांच करे और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करें। लेकिन निगम ने आयोग के आदेशों को धज्जियां उठाते हुए अब तक दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। वहीं देखना यह भी होगा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस मामले में क्या एक्शन लेते हैं। क्या यूजेवीएन में ऐसे ही भ्रष्टचार होते रहेंगे या फिर मुख्यमंत्री इस पर कठोर कार्रवाही करेंगे।

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