कोरोना संकट: EXCLUSIVE: ये कैसा ऊर्जा प्रदेश, जहां संकट में भी समय पर चाहिए बिजली का बिल
देहरादून: ये ऊर्जा प्रदेश है ज़नाब, जहां ऊर्जा पैदा करने के लिए लोगों को विस्थापित कर दिया जाता है। उनके खेत-खलियान डुबो दिए जाते हैं। ऊर्जा प्रदेश का तमगा हासिल किया जाता है। खुद को प्रॉफिट में चलने वाला संस्थान घोषित किया जाता है। लेकिन संकट के समय जब अन्य संस्थाओं ने लोगों से तीन महीने तक बिल न लेने की घोषणा कर हो तब प्रदेश का ऊर्जा निगम उपभोक्ताओं से समय पर बिजली बिल जमा करने की मुनादी पीट रहा है।
क्या यही ऊर्जा प्रदेश का सच? क्या प्रदेश के मुखिया इस खबर से अनजान है या अनजान बन रहे हैं। वह भी टैब जब वह स्वयं इस विभाग के सर्वेसर्वा हैं। उन्हें आगे आना चाहिए और यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक को तलब करना चाहिए। वरना अग्रज योगी से सिख लेना कैसे जनसरोकारों के लिए कड़े फैसले लेने होते हैं। कैसे नौकरशाही पर लगाम लगानी होती है।
एक ओर पूरा देश कोरोना संकट से भयभीत है। तमाम राज्यों में नागरिकों की सलामती के लिए बिजली-पानी के बिल स्थगित किये जा रहे है। लेकिन ऊर्जा प्रदेश का तमगा लिए फिर रहे उत्तराखंड की तो बात ही कुछ और है।संकट के इस दौर में यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा जनता से बिजली का बिल जमा करने की अपील कर रहे हैं। वह अपील कर बता रहे हैं कि कोरोना के कारण उत्पन्न स्थिति के दृष्टिगत विद्युत उपभोक्ता संकट की इस घड़ी में निरंतर विद्युत आपूर्ति के लिए आवश्यक धनराशि की उपलब्धत करना सुनिश्चित करे। इसके लिए विद्युत बिलों का भुगतान कर दें।
गजब देखिए यूपीसीएल ने इसके लिए बाकायदा दर्जनभर भुगतान के तरीके भी सुझाए हैं, जिसमें वेबसाइट पर जाकर डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग, यूपीआई, आरटीजीएस, एनईएफटी तथा भारत क्यूआर आदि माध्यम बताए हैं। इसके अलावा अन्य माध्यम जैसे कि पेटीएम, फोन पे, अमेजॉन पे, गूगल पे, मोबाइल ऐप जैसे भुगतान के तरीके भी ओल्ड तथा रंगीन अक्षरों में दर्शाए हैं। जो विभाग खुद को हमेशा प्रॉफिट में दिखता है वह कह रहा है कि विद्युत उत्पादन पारेषण और विद्युत वितरण इकाइयों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक बी सी के मिश्रा तर्क दे रहे हैं कि सभी फैक्ट्रियां बंद हैं और उनके कर्मचारी भी बिजली बिल की रीडिंग तथा भुगतान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, इसलिए ऑनलाइन पेमेंट ही एक मात्र माध्यम है, वरना उनके विभाग में भी वेतन के भी लाले पड़ जाएंगे। वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण भविष्य में निर्बाध विद्युत आपूर्ति बनाए रखने के लिए दिन प्रतिदिन कठिनाई बढ़ते जाना स्वभाविक होगा।
उधर उर्जा सचिव राधिका झा को भी इस बात से कोई फर्क नहीं पडता है कि उर्जा प्रदेश के उपभोक्ता इस समय किस संकट से गुजर रहे है। जबकि देश की निजी कंपनिया भी इस समय देश के नागरिकों की सहूलियत के लिए आगे आ रही है, बल्कि कई आवश्यक बिलों को माफ भी कर रहे है। इतना ही नहीं आरबीआई की पहल पर सरकारी बैंकों ने कर्जदाताओं की तीन माह की ईएमआई तक माफ करने का निर्णय लिया है। लेकिन सचिव महोदय है कि वह ठस से मस होने के लिए तैयार नहीं है।
एक ओर जहां अन्य राज्यों में सरकारें लोगों को सांत्वना दे रही है और कह रही है “कुछ नहीं होगा, जो भी नुकसान होगा सरकार भरेगी।” यहां तक कि किरायेदारों को किराया लेने तक के लिए मना कर दिया गया है। वहीं बिजली विभाग की अपील ने उपभोक्ताओं के सामने चिंता की लकीर तो खींची साथ में सरकार की नीतियों की पोल भी खोल दी।