सिब्बल बोले- सिद्धांतों की लड़ाई में समर्थन का करना पड़ता है इंतजार, सोनिया ने ‘नाराज’ आजाद से की बात

Next up, Nithyananda's Hindu parliament of Kailaasa.

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कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में हुई गरमा-गरमी बहस के बीच पार्टी अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। पार्टी के भीतर असंतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो गई है, ताकि स्थिति को सामान्य किया जा सके। कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी से नाराज चल रहे वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से फोन पर बात की है। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि सिद्धांतों की लड़ाई में समर्थन का इंतजाम करना पड़ता है। 

गौरतलब है कि पत्र विवाद पर राहुल गांधी के बयान से आहत आजाद ने कार्यसमिति की बैठक में कहा था कि यदि भाजपा से संबंध की बात साबित हो जाती है तो वह इस्तीफा दे देंगे। वह इस बयान से खासा नाराज थे। वहीं, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुलाम नबी आजाद से फोन पर बातचीत की है। 

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक समाप्त होने के बाद सोनिया ने आजाद के साथ फोन पर बातचीत की। माना जा रहा है कि इस बातचीत में मतभेदों को दूर करने पर जोर दिया गया। बताया गया कि असंतुष्ट गुट के विवादित पत्र लिखने के समय को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर करने वाले राहुल गांधी ने भी गुलाम नबी आजाद को फोन किया था। 

सिद्धांतों से लड़ते समय विपक्ष तो मिलता है लेकिन समर्थन नहीं: सिब्बल

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद से कपिल सिब्बल लगातार ट्वीट कर अपनी बात रख रहे हैं। बुधवार को उन्होंने ट्वीट कर कहा, सिद्धांतों के लिए लड़ते समय जीवन में, राजनीति में, अदालत में, सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर विपक्ष तो मिल ही जाता है, लेकिन समर्थन का इंतजाम करना पड़ता है।

कांग्रेस के भीतर हलचल उस समय तेज हो गई, जब पार्टी नेतृत्व में ऊपर से नीचे तक बदलाव को लेकर पत्र लिखने का मामला सामने आया। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में गुलाम नबी आजाद का भी नाम लिया गया। 

राहुल ने कार्यसमिति की बैठक में कहा कि पत्र लिखने वाले नेताओं की भाजपा से सांठगांठ है, इस पर आजाद ने खासी नाराजगी जाहिर की। बैठक में उन्होंने कहा कि यदि भाजपा से संबंध होने की बात सच साबित होती है तो वह अभी इस्तीफा दे देंगे। 

दूसरी तरफ, सोनिया और राहुल गांधी का आजाद को फोन करना इस बात का संकेत है कि पार्टी वरिष्ठ नेताओं को छिटकने नहीं देना चाहती है और वह असंतुष्ट गुट से सुलह करना चाहती है। हालांकि, अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिली है कि तीनों नेताओं ने एक-दूसरे से क्या बातचीत की, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतभेदों को दूर करने पर ही चर्चा हुई है।  

पत्र लिखने वाले नेताओं ने कहा: हम विरोधी नहीं

वहीं सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल कई नेताओं ने कहा कि उन्हें विरोधी नहीं समझा जाए और उन्होंने कभी भी पार्टी नेतृत्व को चुनौती नहीं दी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि पत्र लिखने वाले नेताओं का इरादा देश के मौजूदा माहौल को लेकर साझा चिंताओं से नेतृत्व को अवगत कराना था और यह सब पार्टी के हित में किया गया।

पार्टी सांसद विवेक तन्खा के एक ट्वीट के जवाब में शर्मा ने कहा, ‘अच्छा कहा। पार्टी के हित में और देश के मौजूदा माहौल एवं संविधान के बुनियादी मूल्यों पर लगातार हो रहे हमलों को लेकर अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए पत्र लिखा गया।’

पत्र लिखने वाले नेताओं में शामिल राज्यसभा सदस्य तन्खा ने ट्वीट किया, ‘ हम विरोधी नहीं हैं, बल्कि पार्टी को फिर से मजबूत करने के पैरोकार हैं। यह पत्र नेतृत्व को चुनौती देना नहीं था, बल्कि पार्टी को मजबूत करने के उद्देश्य से कदम उठाने के लिए था। चाहे अदालत हो या फिर सार्वजनिक मामले हों, उनमें सत्य ही सर्वश्रेष्ठ कवच होता है। इतिहास बुजदिल को नहीं, बहादुर को स्वीकारता है।’

इनके इस ट्वीट के जवाब में कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक ने कहा कि इस पत्र को अपराध के तौर पर देखने वालों को आज नहीं तो कल, इसका अहसास जरूर होगा कि पत्र में उठाए गए मुद्दे विचार योग्य हैं। वासनिक ने भी पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।

इन 23 नेताओं में शामिल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली ने सोनिया गांधी के नेतृत्व की तारीफ करते हुए और उनके अंतरिम अध्यक्ष बने रहने का स्वागत करते हुए यह भी कहा कि पत्र का मकसद पार्टी को अगले लोकसभा चुनाव और अन्य चुनावों के लिए तैयार करना था तथा पार्टी के प्रति उनकी वफादारी जीवन भर रहेगी।