EXCLUSIVE: वाह रे श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ‘अंधेर नगरी चैपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’

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देहरादून। प्रदेश के श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय ने चहेतों को एडजस्ट करने के चक्कर में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को ही ठेंगा दिखा दिया है। गजब तो तक हो गया जब अपनों के चक्कर में विश्वविद्यालय भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में बडा फर्जीवाडा किया गया है। यही नहीं भर्ती प्रकृया के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और उत्तराखंड शासनादेश को भी नजरअंदाज कर दिया गया है। इस लिए श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय पर यह कहावत सटीक बैठती है कि वाह रे श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ‘अंधेर नगरी चैपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’। इन दिनों विश्वविद्यालय का हाल कुछ ऐसा ही है।

विश्वविद्यालय में जारी शिक्षकों और अन्य शैक्षिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम अर्हता तथा उच्चतर शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए 2018 रेगूलेशन को बाइपास कर यूजीसी 2010 के तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। भर्ती प्रक्रिया के लिये उक्त विज्ञापन में यह भी छुपा दिया गया है कि विश्वविद्यालय में किस नियम के तहत भर्ती प्रक्रिया को पूरा किया जायेगा। जबकि वर्तमान में सीधी नियुक्ति के लिए किस रेगुलेशन के तहत भर्ती का नियम लागू है। वहीं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कहा है कि शिक्षकों और अन्य शैक्षिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम अर्हता तथा उच्चतर शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए 2018 रेगूलेशन को तत्काल रूप से लागू किया गया है। अब सीधी नियुक्ति के लिए कोई भी विश्वविद्यालय अपने अलग नियम लागू नहीं करे। लेकिन श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय की ओर से जारी विज्ञापन में खुद के नये नियम बनाने के बाद विवि के खिलाफ कई शिकायतें यूजीसी को मिली है।

इस विज्ञापन में कही भी उल्लेख नहीं किया गया है कि नियुक्ति किस नियम के तहत होंगी।

कहा किया श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय ने खेल

आवेदन को गुपचुप तरीके से 2010 के तहत अपलाॅड किया गया।

श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय बादशाहीथौल, टिहरी गढवाल, उत्तराखंड द्वारा विभिन्न समाचार पत्रों एवं विवि की आधिकारिक वैबसाइड पर 18.08.2020 को एक विज्ञप्ती जारी की गयी। विज्ञप्ती में सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर की भर्ती के साथ साथ कुछ अन्य पदों पर सीधी भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से की जानी है। लेकिन मजेदार बात यह है कि यह विज्ञापन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के खिलाफ है। वर्ततमान में देशभर में उक्त नियुक्ति को के लिए एक समान नियम बनाये गये है। जिसके तहत सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय व राज्य विश्वविद्यालयों को यूजीसी द्वारा जारी अधिसूचना 18 जुलाई 2018 के अनुसार नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करना है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा साफ कहा गया है कि विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षकों और अन्य शैक्षिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम अर्हता तथा उच्चतर शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए 2018 रेगूलेशन को तत्काल रूप से लागू किया गया है। लेकिन श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ने यूजीसी को बाइपास कर 2010 के अनुसार नियुक्ति प्रकृया को शुरू कर दिया है।

गुपचुप तरीके से 2018 रेगूलेशन के स्थान पर 2010 के तहत बनाया गया आवेदन पत्र

यह आवेदन पत्र वर्ष 2010 में एचएनबी गढवाल द्वारा जारी किया गया था।

दरसर श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय द्वारा अपनी वैबसाइड पर जो आवेदन पत्र अपलोड किया गया है वह 2010 रेगुलेशन के तहत का है। इस आवेदन पत्र में यूजीसी के 2018 के रेगुलेशन का कही भी हावाला नही दिया गया है। जिससे साफ है कि विश्वविद्यालय गुपचुप तरीके से अपने चहेतों को एडजस्ट करने के चक्कर में यह सब कर रहा है। जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी यूजीसी 2018 के रगूलेशन को राज्य में लागू कर दिया गया है। लेकिन श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय द्वारा जारी आवेदन पत्र में एपीआई का कही भी उल्लेख नहीं किया गया है। जबकि विवि द्वारा यूजीसी 2018 के तहत आवेदक से जानकारी मांगी जानी चहिए थी। विश्वविद्यालय से जुडे सूत्रों की माने तो अधिकारियों ने अपने नंबर बढाने के चक्कर में एचएनबी गढवाल विश्वविद्यालय का पूराने आवेदन पत्र को रिडिजाइन करके अपलोड किया गया है।

प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा के आदेश को भी किया नजरअंदाज

इस पत्र से साफ होता है कि रेगूलेशन 2018 प्रदेश में लागू है।

दस्तावेज को मिले प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा आनन्द बर्द्धन के एक पत्र से यह बात भी साफ हो जाती है कि राज्य के समस्त विश्वविद्यालयों को अनिवार्य रूप से यूजीसी रेगूलेशन 2018 के तत्काल प्रभाव से पालन करने के निर्देश भी जारी किये जा चुके है। प्रमुख सचिव की ओर से निदेशक उच्च शिक्षा एवं कुलपति समस्त राज्य विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा को दिनांक 06 सितंबर 2019 को जारी आदेश में कहा गया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विनियम 2018 जुलाई, 2018 के अनुसार संशोधन अधिनियम को उत्तराखंड राज्य में लागू कर दिया गया है। जिसके द्वारा विवि और महाविद्यालयों में शिक्षकों और अन्य शैक्षिक कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु न्यूनतम अर्हत तथा उच्चतर शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए यूजीसी अधिनियम 2018 का पालन किया जायेगा। अब सवाल यह खडा होता है कि विवि ने किसके इशारे पर यूजीसी के 2010 के तहत भर्ती प्रकृया शुरू करने का फैसला किया है।

क्या कहता है यूजीसी का 2018 रेगूलेशन

यूजीसी ने कहा है कि विश्वविद्यालय या कॉलेज सहायक प्रोफेसर पद पर सीधी नियुक्ति के लिए जरूरी योग्यता के लिए अपने अलग नियम नहीं बनाएं। इस संबंध में यूजीसी की ओर से बनाए गए नियम ही पालन करने के लिए सभी विश्वविद्यालय बाध्य होंगे। यूजीसी के नियमों के मुताबिक इस पद पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम 55 फीसदी अंकों के साथ मास्टर्स की डिग्री और नेट या समकक्ष परीक्षा में पास होना जरूरी होगा। जिन मामलों में पीएचडी को पर्याप्त माना गया है, उनमें यह नेट की जगह ले सकता है।

मैट्रिक और इंटरमीडिएट का नहीं जुड़ेगा अंक

यूजीसी की नई गाईडलाइन के अनुसार विश्वविद्यालयों के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में अभ्यर्थी के मैट्रिक व इंटरमीडिएट के अंक नहीं जुटेंगे। अभ्यर्थियों के स्नातक-पीजी, पीएचडी के आधार पर शैक्षणिक योग्यता का आकलन किया जायेगा और वरीयता सूची निकाली जायेगी। जुलाई 2018 में गाईडलाईन में राज्य सरकार अपने स्तर से निर्धारित कोटि के अंकों में कमी-बेसी कर सकती है और इंटरव्यू के लिए अंक निकाल सकती है।

क्या होगी श्रीदेव सुमन विवि पर कार्यवाही

यदि कोई विश्वविद्यालय इन निनियमों के उपबंधों का उल्लंघन करता है तो ऐसे उल्लंघन किए जाने अथवा उपबंधों का पालन करने में असफल रहने पर उक्त विवि द्वारा दिया गया कारण, यदि कोई हो, पर विचार करते हुए आयोग, अपनी निधियों में से विश्वविद्यालय को प्रदान किए जाने वाले प्रस्तावित अनुदान को रोक देगा।

यह मामला मेरे संज्ञान में नही है। किस आधार पर भर्ती प्रक्रिया को शुरू किया जाना चाहिए था यह काम विवि कुलपति का है। अगर किसी प्रकार से यूजीसी और शासनादेश का उल्लंघन किया जायेगा तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही होगी।
डाॅ धन सिंह रावत, उच्च शिक्षा राज्यमंत्री

शिक्षकों और अन्य शैक्षिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम अर्हता तथा उच्चतर शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए 2018 रेगूलेशन को तत्काल रूप प्रदेश में लागू किया गया है। इसी के आधार पर भर्ती प्रक्रिया को किया जायेगा। अगर किसी विश्वविद्यालय द्वार शासनादेश का पालन नहीं किया जाता है तो ऐसे प्रकरण पर कार्यवाही की जायेगी।
आनन्द वर्द्धन प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा


वर्तमान में उच्च शिक्षा में शिक्षकों और अन्य शैक्षिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम अर्हता के लिए यूजीसी 2018 रेगूलेशन का पालन किया जा रहा है। अब किन परिस्थतियों में श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय द्वारा यह किसी गया है इसका जवाब विवि कुलपति ही बेहतर दे सकते है। प्रो.एस.एस.एम रावत सलाहकार उच्च शिक्षा मंत्री

यह योग्य उम्मीदवारों के साथ खिलवाड है। हमने फिलहाल आवेदन तो कर दिया है, लेकिन यह आवेदन पत्र यूजीसी 2010 के अनुसार है। इस में एपीआई का कही उल्लेख नहीं है। जिससे साफ होता है कि विश्वविद्यालय ने अपने चहेतों के लिये यह सब किया है। शिक्षित बेरोजगार संघ इस संबंध में न्यायालय जाने पर भी विचार कर रहा है।
दीपक जोशी, आवेदक एवं शिक्षित बेरोजगार।