यूपी,जम्मू कश्मीर,उत्तराखंड के बीच 17 साल बाद होगा समझौता
17 साल से लंबित उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिवहन करार पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मौजूदगी में बुधवार को हस्ताक्षर होगा। उत्तराखण्ड के परिवहन मंत्री यशपाल आर्य , उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और परिवहन मंत्री जम्मू सुनील कुमार शर्मा भी उपस्थित रहेंगे। परिवहन करार पर हस्ताक्षर 5 कालीदास मार्ग लखनऊ में शाम 6 बजे होगा।
करार होने के बाद से उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के बीच रोडवेज बसें निश्चित फेरों के हिसाब से न केवल संचालित होंगी, ट्रांसपोर्टरों को भी राहत मिलेगी। उन्हें 4 माह में टैक्स कटाने से छूट मिलेगी और एक बार में ही सीधे 5 वर्ष का टैक्स चुका सकेंगे। इस करार से उत्तराखण्ड सरकार को सालाना 15 करोड़ रुपये टैक्स भी मिलेगा।
17 साल से नहीं हो पा रहा था उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच ये करार
17 साल से लंबित उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिवहन करार पर रविवार 3 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मौजूदगी में हस्ताक्षर होना था। लेकिन एक बार फिर यह स्थगित हो गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की व्यस्तताओं के कारण यह कार्यक्रम कुछ दिन के लिए स्थगित हो गया। उत्तराखण्ड के परिवहन मंत्री यशपाल आर्य भी इस कार्यक्रम के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे। उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री भी गुजरात चुनाव प्रचार में व्यस्त थे।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस समझौते पर जल्द ही हस्ताक्षर हो जाएंगे। संभवत: अब समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर लखनऊ में ही होगा। करार होने के बाद से दोनों राज्यों की रोडवेज बसें निश्चित फेरों के हिसाब से न केवल संचालित होंगी, ट्रांसपोर्टरों को भी राहत मिलेगी। उन्हें 4 माह में टैक्स कटाने से छूट मिलेगी और एक बार में ही सीधे 5 वर्ष का टैक्स चुका सकेंगे। इस करार से उत्तराखण्ड सरकार को सालाना 15 करोड़ रुपये टैक्स भी मिलेगा।
2000 में उत्तर प्रदेश से अलग हुआ उत्तराखण्ड
उत्तर प्रदेश से वर्ष 2000 में पृथक होने के बाद 3 वर्ष तक उत्तर प्रदेश रोडवेज की यहां सुविधाएं देता रहा। 2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम का गठन हुआ जिसके बाद दोनों प्रदेशों में बसों के संचालन और परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन सकी।
14 वर्षो में हुई 12 बैठके, नहीं निकला था हल
14 वर्षो में साल में 12 बार उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक सिरे नहीं चढ़ सकी। करार पर मुहर लगने के बाद से परमिटो को लेकर कोई विवाद नहीं होगा व नए रूटों पर बसों का संचालन आसानी से होगा।