November 24, 2024

EXCLUSIVE: UOU का कारनामा पाठ्यक्रम एक, परीक्षा एक, प्रश्नपत्र के प्रकार दो !

uttarakhand open university

जी हाँ ऐसी अंधेरगर्दी उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में चल रही है जहाँ एक ही पाठ्यक्रम की वार्षिक परीक्षा दो अलग अलग प्रारूप के प्रश्नपत्रों पर हुई। चिंताजनक बात यह है कि अंतिम वर्ष की परीक्षा में कोविड -19 संक्रमण के कारण एक प्रकार के प्रश्नपत्र वालों को तो राहत दी गयी जबकि दूसरे प्रारूप वालों पर वही संशोधन भारी पड़ गया ।

उच्च शिक्षा में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की ऐसी उदासीनता से छात्रों का भविष्य अन्धकार में पड़ सकता है । उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने परास्नातक द्वितीय वर्ष की परीक्षा आयोजित की, लेकिन इन प्रश्नपत्रों का जो प्रारूप रखा गया उससे परीक्षार्थी चकरा गए। इस बार कोविड-19 संक्रमण के चलते प्रश्न पत्र से खण्ड-स हटा कर प्रश्नपत्र की अवधि दो घण्टे की कर दी गयी किन्तु चिंताजनक बात यह है कि खण्ड ‘स’ से तो केवल दस एकअंकीय प्रश्न ही होते थे, जिनको हल करने में परीक्षार्थियों को बमुश्किल से दस मिनट भी नहीं लगते थे।

खण्ड ‘अ’ से पहले भी दो दीर्घ उत्तरीय प्रश्न करने होते थे जिनमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया इसी प्रकार खण्ड ‘ब’ से चार दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों को हल करना होता था जो कि पूर्ववत की भाँति ही इस वर्ष भी था।

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उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के नीति नियंताओं ने इतनी ज़हमत भी नहीं उठायी कि प्रश्नों के उत्तर लिखने हेतु कोई शब्द सीमा ही निर्धारित करते, कुल मिलाकर पूर्व में जिस प्रश्नपत्र को हल करने के लिए तीन घण्टे मिलते थे इस बार परीक्षार्थियों को उसी प्रश्नपत्र को हल करने के लिए केवल दो ही घण्टे थे। इसमें अन्तर था तो केवल दस एकअंकीय प्रश्नों की अनुपस्थिति का।

विश्वविद्यालय स्तर के प्रश्नपत्र का ऐसा ब्लू-प्रिंट होना बताता है कि परीक्षा के अनिवार्य मानकों की धज्जियाँ उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने किस प्रकार उड़ाई और कैसे छात्र-छात्राओं के भविष्य को अंधकार में धकेल दिया।सम्भवतया प्रश्नपत्रों का यह प्रारूप विश्वभर में आयोजित होने वाली परीक्षाओं में पहला ऐसा प्रारूप होगा जिसमें किसी प्रश्न के उत्तर के लिए कोई शब्द सीमा तय ही नहीं की गयी ।

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विश्वविद्यालय की इस ढिलाई का सबसे अधिक ख़ामियाज़ा ऐसे विद्यार्थियों को झेलना पड़ सकता है जो शोध व उच्च शिक्षा में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं, क्योंकि बिना शब्द सीमा के प्रश्नों का मूल्याँकन अब परीक्षक पर निर्भर करेगा कि कितने शब्द सीमा पर कैसे अंक दे। ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता की बात करना बेईमानी प्रतीत होता है जहाँ परीक्षा जैसे गम्भीर मुद्दे के साथ ऐसा मज़ाक़ किया जा रहा हो। प्रश्नपत्रों में त्रुटियों की इतनी भरमार कि पेपर सेटर एक बार प्रश्नपत्र के टाइप होने के बाद उसके प्रूफ़ रीडिंग की ज़हमत तक नहीं उठाते ।

विश्वविद्यालय से सम्पर्क करने पर विश्वविद्यालय द्वारा विगत वर्ष का एक प्रश्नपत्र दिखाया गया जिसका प्रारूप विगत वर्ष के उसी पाठ्यक्रम के प्रश्नपत्र से भिन्न था । एक ही पाठ्यक्रम की परीक्षा दो अलग अलग प्रारूपों के प्रश्नपत्रों पर कैसे हुई और एक प्रारूप के लिए किया गया संशोधन इस वर्ष दूसरे प्रारूप पर बिना सोचे समझे कैसे लागू किया गया इस सम्बंध में विश्वविद्यालय से कोई जवाब नहीं मिल सका ।

इस पूरे प्रकरण में जब उत्तराखंड मुक्त विवि के परीक्षा नियंत्रक पीडी पंत से सवाल पूछा गया तो वह संतोष जनक जवाब नही दे पाये। जब दस्तावेज द्वारा कहा गया कि इस संबंध में वह विवि अनुदान आयोग से भी सवाल करेंगे तो उनका जवाब था कि यह आप का काम है।

जिन छात्रों ने जून 2017 में प्रथम वर्ष की परीक्षा दी और इस वर्ष अक्टूबर माह में अन्तिम वर्ष की परीक्षा दी उनके साथ बदले हुए प्रारूप में अन्याय हुआ है जिसकी भरपाई विश्वविद्यालय को अपने स्तर से करनी चाहिए ।

कोविड-19 संक्रमण के कारण जून 2020 की परीक्षा अक्टूबर 2020 में आयोजित की गयी इसलिए विश्वविद्यालय को इस परीक्षा में परिवर्तन लाना था जून 2019 के प्रारूप के अनुसार लेकिन विश्वविद्यालय कर बैठा दिसम्बर 2019 के प्रारूप के अनुसार परिवर्तन ।क्योंकि जिन परीक्षार्थियों ने बदले प्रारूप पर परीक्षा दी उनका तो दिसम्बर 2019 के बदले प्रारूप से कोई वास्ता ही नहीं था बल्कि उन्होंने जून 2019 के प्रारूप पर अपनी पिछले वर्ष की परीक्षा दी।


दस्तावेज द्वारा सवाल पूछा गया —
प्रश्न 1- क्या बैक पेपर के लिए अलग से प्रश्नपत्र होते हैं ?
प्रश्न 2- आपके भेजे प्रश्नपत्र से पता चलता है कि एम॰ए॰ शिक्षाशास्त्र की विगत वर्ष की परीक्षा दो अलग अलग प्रारूपों के प्रश्नपत्रों से हुई, जिसमें एक प्रारूप के लिए तो इस वर्ष के प्रश्नपत्र में परिवर्तन हुए जबकि दूसरे प्रारूप वालों के लिए नहीं, ऐसा क्यों ?

जिसके जवाब में पीडी पंत द्वारा बताया गया कि जिस भी Year के programme mai प्रवेश लिया हो उसी तरह प्रश्नपत्र बनते हैं। जैसे MAED_16, MAED_17 अब MAED_20.